Thursday 22 April, 2010

चेतना का अनुपात ........थोडा जीवन बाकी मृत्यु

उखड़ा पौधा हरा भरा हैं ,
एकाध दफ़ा तो मरकर देखों ,
फूल खिला हैं कांटे भी हैं ,
काँटों  पर थोडा चलकर देखों ,
मन मैला और हरामी ,मीरा की पायल पहन के देखों ,
मन की आदत जलने कि हैं 
अपने अन्दर हवन जलाकर देखों ,
जलती काया मातम जैसी ,
ज़िस्म में रूह पिरोकर देखों .................







Saturday 17 April, 2010

हथेली में दंतेवाडा

हथेली की लकीरें गुस्से से उबल रही हैं ............
बेशक इनमें कहीं किसी दंतेवाडा का ज़िक्र छुपा हुआ हैं ..........
साँसों के साथ अब हथेली भी सुलगती हैं ,
और सुलगती हुयी कोई भी हथेली कभी सामान्य नहीं रह पाती ..........
सोचता हूँ किसी आदिवासी कि ऐसे ही सुलगती हथेली बन्दूक पकड़ लेती हैं ..................















 



Tuesday 13 April, 2010

तू ..............

मेरा इश्क़  तेरी ज़ुल्फ़ में कहीं उलझा हैं जानम ,
छत पर आ जाओ ,ज़रा अपनी जुल्फ़े संवार लो ,
कि फ़लक पर फिर कोई ग़ज़ल होगी ....................


Monday 12 April, 2010

...............के आप मुझे कुबूल करों

अलाल्ह ! आज़ में फिर से अपनी ज़मीं पर खड़ा हूँ .....................
मेरे दोस्त मुझे युहीं संभाले रखना ....................... 
मृता जी मुझे माफ़ कर दो ...................बड़ा ही बदतमीज़ बच्चा हूँ तुम्हारा माँ ......................