Sunday 10 April, 2011

मैं अन्ना हज़ारे नहीं .........

         स्याला नमक हरम कही का मैं ..............मक्कार ,धोखेबाज़,पाखंडी................ 


दो वक़्त की रोटी बिना मेहनत के मुझे पाखंडी और निकम्मा बनाती हैं. 
मेरे जीवन की पाखण्ड-प्रिय हरकते ,घोर टुच्चा आत्मकेंद्रित व्यक्तित्व ,
अहम् को वो तमाम सलवटे ,जिनसे में बरसो से मैं पाखण्ड मथता आया हू,
और बहुत भ्रमित सी वह सुरक्षा - जिसे मैं परिवार की सरहद में महसूस करता हूँ 
दरअसल मुझे जीवनपर्यंत अपने घर से और अपने आप से भी जुदा कर देने पर आमदा हैं ...........
यह सामाजिक और घरेलु सुरक्षा मेरी लाइफ़ की विलेन हैं. बहुत बड़ा एक भ्रम हैं ...............
घर की इन चार दिवारी के बीच में कब भगोड़ा बन गया .........जान नहीं पाया हूं.......
निश्चित ही भगोड़ा बनना मेरी नियति और मंजिल नहीं हैं ........
पर वर्तमान यही हैं की मैं भगोड़ा हूं ,,,,,,,,,,,,,,निक्कम्मा ..............कमीना .................नमक हराम और घोर पाखंडी हूँ..........
एक मैं हूँ और एक वे हैं अन्ना हज़ारे ...............महाराष्ट्र का गाँधी अब मुल्क़ का गांधी बन रहा हैं .........संभवतः बन गया हैं............
और मैं पाखंडी बन गया हूँ...........दरअसल भ्रष्टाचार और पाखंड के खिलाफ़ बाहर के अलावा भीतर से भी लड़ना पड़ता हैं .............
और पाखंड,निकम्मापन  बस यही नहीं करने देता ............वो कहते हैं न बिल्ली का गू .........ना लीपने का ना पोतने का 
ऐसा ही हूँ मैं भी ............क्या आप मुझे वोट देंगे ???????????????????????