Wednesday 7 January, 2009

भेडिया धसान

"मेरा भारत महान हैं " यह सुनने पड़ने में अच्छा लगता हैं -अरे भई अच्छा हैं ही - और जो ऐसा नही मानता
हम उसे देशद्रोही कहेंगे । दोस्तों मैंने फैसला किया हैं देशद्रोही हो जाने का -दरअसल मुझे अपने वतन से बेइन्तहा
मुहुब्बत्त हैं । सवाल यह हैं की हम कब तलक झूठा झूठा महान भारत चिल्लाते रहेंगे ........
हम वो दिन याद हैं जब मुल्क के मशहूर शायर ने लिखा
"मज़हब नही सिखाता आपस मैं बैर रखना "
पर दोस्तों अक्सर आजाद मुल्क में कई कई सारे गुलाम ख्याल पनपने लगते हैं और हमारा दुर्भाग्य हैं कि हम इस
गुलामियत से सीखने भी लगते हैं , हाल ही के दिनों हमने सीखा हैं
"मज़हब हमें सीखाता तस्लीमा नसरीन को मुल्क से रफा दफा करना "
और मुल्क की सियासत जो अवाम की कभी परवाह नही करती ,ने भी इस मसले पर ना सिर्फ़ गौर फ़रमाया बल्कि अपने वोट बैंक का पूरी तरह ख्याल किया ।
"तस्लीमा उतनी ही हमारी हैं जितना की मुल्क में मोजूद कोई मज़हब "
मोजूदा हालात में मैं इस्लाम की रह पर चलने वाले तमाम बाशिंदों के चरणों में सजदा करता हूँ और एक सवाल
उठाता हूँ - क्या आप जानते हैं तस्लीमा और उनके लेखन के बारे में जिसकी की सज़ा उन्हें दी जा रही हैं ?
जब ख्यात लेखिका के खिलाफ फतवे दर फतवे जारी किए जा चुके थे -और ढाका , कोलकाता ,जयपुर ,नई दिल्ली और पूरे मुल्क में कोई संवेदना नही दिखाई दी ,आख़िर क्यों ? दरअसल इस क्यों का जबाब किसी ने नही
देना चाहा क्योंकि हम सब भेडिया धसान हैं -अपनी बुद्धि का प्रयोग नही करना चाहते ,ना ही अपने दिल की
आवाज़ सुन पा रहे हैं । उन मोलवियों ,धर्मगुरुओं ,जो स्यम काम कुंठित हैं और अपनी बेटी और पोती जैसी
महान सानिया मिर्जा के जिस्म को नापते हैं ,के बहकावे में आ जाते हैं । दोस्तों अगर हम ऐसे ही सोते रहेंगे
आजाद मुल्क में गुलाम ख्याल इसी तरह पनपते रहेंगे । सानिया के बहाने यह गहन आत्म मंथन और शोध का विषय हैं की नवयोवनाओं एवं महिलाओं के यौवन और सोंदर्य को निहारकर लम्पट पुरूष क्योंकर आतंकित
हो जाते हैं एवं प्रायः यह सोचते पाए जाते हैं की अब हमारी संस्कृति का क्या होगा । दरअसल परदा प्रथा की
वकालत करने वाला कोई भी लम्पट पुरूष {इससे फर्क नही की वह किसी मज्जिद का काजी हैं याकि मन्दिर का
पुजारी }औरत की स्वतंत्रता se इतने भयाक्रांत हैं की उसे अपने पुरूष वर्चश्व पर खतरा महसूस होने लगा हैं।
और फ़िर उसे या तो फतवे बनाने होते हैं या वह उसे इतने पीछे धकेल देना चाहता हैं की उसके बिस्तर पर उसके
जिस्म की आवशयकता मात्र रह जाए , और बात यही ख़त्म नही होती अब तो technology से गर्भ में ही आने
वाली नस्ल की हत्या कर दी जाती हैं । घौर आश्चर्य -बहुत सी सर्प्निया इन लम्पतो का साथ निभाती पाई जाती
हैं मानो सात फेरो में से एक यह भी था । यह पतिव्रताएं अपने देवता को प्रस्संं करने वास्ते अपनी ममता और
नारित्त्व की बलि कन्या भ्रूण हत्या कर ऐसे देती हैं मानो गर्भ निर्धारण का यही लक्ष्य था ।
दरअसल यही भेडिया धसान हैं ,जहा तमाम इन्सान एक चाल में भेड़ियों की मानिंद धसते जा रहे हैं बिना सोचे
समझे । बिडम्बना हैं की यह भेडिया धसान हमें विरासत में मिली हैं ।
बहुत से तो यह भी नही जानते तस्लीमा हैं कोन ,पर फ़िर भी विरोध किए जा रहे हैं ।
पूछिये इनसे "लज्जा" क्या हैं ? ये ख़ुद ही लज्जित हो जायेगे .......
वाह रे भेडिया धसान ! कट्टरपंथियों की नज़र में तस्लीमा गुनाहगार हैं क्योंकि उन्होंने कुछ सच लिखा -जो एक
सच्चे अदीब को महसूस हुआ । खैर इन भेड़ियों kई और कितनी कहे ......
पर मुल्क की सियासत को समझना चाहिए की उसने तस्लीमा नसरीन का नही , हमारी संस्कृति .सभ्यता .और साहित्य का अपमान किया हैं । और सिर्फ़ तस्लीमा ही नही हमारी सनातन परम्परा को देश निकाला दिया गया
हैं । हैं माँ सरस्वती हमें ज्ञान का प्रकाश दे । खुदा हाफिज़ दोस्तों ......




प्रेमांचल

"प्रहरी हु तेरे आँचल का माँ, पाषण में भी बसते हैं तेरे प्राण माँ "