tag:blogger.com,1999:blog-45637386923942529352024-02-07T20:42:46.678-05:00प्रेमांचलप्रहरी हु तेरे आँचल का माँ पाषण में भी बसते हैं तेरे प्राण माँ "inu guptahttp://www.blogger.com/profile/05011763526057038704noreply@blogger.comBlogger39125tag:blogger.com,1999:blog-4563738692394252935.post-72986489448552404982016-10-09T06:28:00.001-04:002016-10-09T06:28:41.036-04:00आदित्य आफ़ताब "इश्क़" aditya aaftab 'ishq'http://www.blogger.com/profile/01695360902881473207noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4563738692394252935.post-13403503543273185672014-07-25T01:33:00.000-04:002014-07-25T01:33:07.228-04:00उधेड़बुन <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="color: #37404e; font-family: Verdana, sans-serif; font-size: large;"><span style="background-color: white; line-height: 20px;"><b><u>उधेड़बुन </u></b></span></span><br />
<span style="background-color: white; color: #37404e; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 20px;"><br /></span>
<span style="background-color: white; color: #37404e; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 20px;">मैं मज़दूर हूँ -- सांसारिक बाधाएं पग पग पर हैं ..मेरी मुफ़लिसी दीवारे बना भी रही हैं और गिरा भी रही हैं...मैं अपनी मुफ़लिसी में रिश्तों और दोस्ती की न जांच-पड़ताल करता हूँ -न ज़िंन्दगी के किसी सिरे को पकड़कर उससे बही-खाते का कोई हिसाब ही ले पाता हूँ...अगर कही कोई ज़िम्मेदारी बनती हैं तो मेरे ओछेपन और मेरे निकम्मे निर्णयों की. मैं अब भी मानता हूँ रिश्तेदारी की तरह दोस्ती धन ,बल और समय सापेक्ष नहीं ह</span><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #37404e; display: inline; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 20px;">ोती .. मेरा .कोई भविष्य नहीं हैं .दोस्त रहेंगे ही . शायद मुझे किसी नरक मैं प्रवेश पाते हुए देखते रहने के लिए........... अतीत पर गर्व नही पर . पर अहसास हैं अपनी जड़ों का .और मेरी जड़ें किसी पैतृक सत्ता का आव्हान नहीं करती . न किसी मातृक स्थिति में ही मेरी कोई रूचि हैं. मेरी विचार प्रकिया कथित सोलह संस्कारों , देवताओं , ईश्वरों और धर्मों को जीवन का अभिवाज्य अंग नहीं मान पाती.......जड़ों से तात्पर्य अपने बनने , न बनने और बनते -बनते बिगड़ जाने भर से हैं ...मेरा वर्तमान कुत्ते की तरह वफ़ादार - और निर्दयी हैं. समाज उसे निर्मम मृत्यु देना चाहता हैं........मैं जानता हूँ मैं अपने वर्तमान को अकाल मृत्यु से नहीं बचा पाउगा पर वर्तमान के साथ मृत्यु को भी भोग लेना चाहता हूँ........जीवन तब शर्मिंदा नहीं होगा. मैं आज भी दोस्तों की दुआओं और बद्दुआओं का भिक्षुक हूँ--------------मित्रों मेरी झोली अब भी खाली हैं........और एक बात... मेरे वयस्क होने के बाबजूद मेरे फैसले अवयस्क रह गए ...<br /><br />शिकवा नहीं बेदर्दों तुम्हारी उल्फ़त हैं----<br /><br />बकौल ताहिर फ़राज़ "<br />दोस्ती तेरे दरख्तों में हवाएँ भी नहीं ,दुश्मनी अपने दरख्तों में समर रखती हैं.<br />और कैसे मानू की ज़माने की खबर रखती हैं ,<br />गर्दिशे-इ-वक़्त तो बस मुझ पर नज़र रखती हैं...<br />सफरमाना मेरा जारी नहीं हैं मगर हिम्मत अभी हारी नहीं हैं ..<br />धूप मुझको जो लिए फिरती हैं सायें-सायें हैं तो आवारा पर ज़हन में घर रखती हैं....</span><br />
<span style="background-color: white; color: #37404e; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 20px;">और मेरे पैरो की थकन रूठ न जाना मुझसे एक तू ही तो मेरा राज - इ- सफ़र रखती हैं...."</span></div>
आदित्य आफ़ताब "इश्क़" aditya aaftab 'ishq'http://www.blogger.com/profile/01695360902881473207noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4563738692394252935.post-80979731608336411942011-08-23T03:36:00.002-04:002011-08-23T03:36:59.503-04:00इश्क़ का पता - के-25 होजखास<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span class="Apple-style-span" style="background-color: white; font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;"><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 28px;"><span style="color: #330033;">दोस्तों , इश्क़ ! ! ! तेज़ भागती हमारी दुनिया </span>में दरअसल कोई खबर नहीं बन पाता. खबरे तो देश ,दुनिया और समाज की होती हैं न ,उन लोगो की जो इस समाज में रहते हैं, उन घटनाओ की जो दुनिया में आये दिन घटती रहती हैं. और अंततः इंसान ,समाज ,सरकारों और संस्थाओ के अन्दर पलते-बनते-बिगड़ते रहने वाली अपच की , उन वेगो-संवेगों की जिन्हें हम कभी साज़िश कहते हैं, कभी,राजनीती, कभी पाखण्ड , बुद्धिजीवियों की नज़र में जो डिप्लोमेसी हैं ,क़ानून हैं, इकोनोमी हैं ,इन्फ्लेशन जैसे भारी खरकम शब्द , पेचीदगिया और तमाम मसले......... जो खबर गंभीर खबर बनते हैं.....अभी मैंने क्रिकेट ,करीना कपूर और ऐश्वर्य राय के प्रेगनेंसी वैगेरह की कोई बात ही नहीं की......असल में ये और भी ज़रूरी खबरे हैं , और तमाम खबरे और भी हैं जो शायद इनसे भी ज़रूरी हो .........पर ऐसी खबरों के बारे में आपसे बाते करना मुझे ज़रूरी नहीं लगा. सत्तर फीसदी युवाओं के मुल्क़ में इश्क़ ,अमृता और इमरोज़ किस किस कदर बेखबर हो गए हैं न ये तो कोई खबर हैं और न ही खबर नवीसो को ऐसी कोई फिकर ही हैं. वरना हमें इश्क़ की वो इमारत, इश्क़ का वो घर के-२५ होजखास ज़रा बहुत तो ख़ास लगता.पूछा जा सकता हैं ऐसा क्या हुआ हैं, कितनी ही बिल्डिंगे बिकती हैं...अच्छा अमृता प्रीतम उनका घर था ,कब बिका ,क्यों कुछ ख़ास था. इसमें काहे की खबर आप तो हर एक बात को मुद्दा बना लेते हैं. दोस्तों यह मुद्दा नहीं दरअसल मुद्दतों और शिद्दतों के बाद ऐसे घर बनते हैं . ईंट ,गारे और कांक्रीट आप भी जुटा लेंगे ,हम भी , बढिया से बढिया ड्राइंग बना लेगे.......और तमाम तामझाम और इस हद तक की कोई इमारत, और मकान घर बने न बने बाज़ार की दुनिया में खबर ज़रूर बन जाएगा ...पिछली तारीखों में कई उदाहरण मिल जायेगे ऐसी तमाम बिल्डिंगे बनी भी हैं और बिकी भी. और अब भी बन रही होगी. पर के-२५ होजखास जो भी हैं मात्र बिल्डिंग नहीं हैं,एक अदद घर हैं. अमृता-इमरोज़ का. और अमृता-इमरोज़ हमारे वक़्त और मुल्क का इश्क़ ....हां साहब सही सुना वही ढाई अक्षर जिसका अहसास होने में उम्र बीत जाती हैं ,और ज़रूरी नहीं की इस अहसास को आप जी ही ले.....ज़िंदा रहने के लिए रोटी कपड़ा और मकान चाहिए, और ज़िंदा रहे तो जिंदगी ...और जिंदगी के लिए इश्क़ . और इश्क़ का पता हैं के -२५ होजखास .पर यह पता अब खोने वाला हैं, खो गया हैं . पर दोस्तों यह महज़ पता नहीं हैं. इस पते के साथ इश्क़ भी लापता घूमेगा कही ,कोन जाने किस हालत में . हम प्यार बाटने वाले मुल्क है दोस्तों .तो क्या अपने ही वक़्त और मुल्क का प्यार ,इश्क़ ,हमारे रहते ही कही खो जाएगा ,ज़िंदा कोमे इश्क़ को लावारिस और लापता नहीं होने देती.......पर यह हो रहा हैं,दोस्तों हो गया हैं. अमृता-इमरोज़ के रिश्ते को पहचानिए ,इश्क़ को कही अपनी रूह में टटोलिये .अमृता की नज्मों में ,इमरोज़ के रंगों में ,उनकी दीवानगी ,83 बरस की उम्र में उनकी रूमानियत में और अंततः के-२५ होजखास में हमने इश्क़ को देखा हैं ........और अगर नही देखा हैं तो इश्क़ के इस घर में हमेशा देख सकते हैं.....पर सिर्फ अमृता-इमरोज़ के घर में .........दोस्तों इमरोज़ के दुःख में ज़रा आहिस्ता से शामिल हो जाइए आप भी इश्क़ की इस ईमारत के लिए तड़प उठेंगे ...सोते-जागते -सुबह-शाम-रात और दिन वो अमृता से नज्मे सुनते हैं कभी अमृता को सुनाते हैं ,अपने रंगों और खयालो में अमृता के माथे पर बिंदिया लगाते हैं, कभी चाय पीते हुए इंतज़ार करते हैं की अमृता कोई अधूरी नज़्म कब पूरी कर दे ........चाँद को देखकर इमरोज़ को अमृता की रोटी याद आती होगी और कभी अमृता के वो रूहानी सपने जो के -२५ होजखास में अमृता के साथ अब भी रहते हैं...<span style="color: #3333ff;">बकौल इमरोज़ "रिश्ता बांधने से नहीं बनता -नहीं बंधता" अमृता ने कहीं कहा हैं.. मोहोबत्त और मज़हब दो ऐसी घटनाएँ हैं जो इंसान के अन्दर से आनी चाहिए ..........सच! इश्क़ लाखो लाखो में कभी कभी किसी किसी को घटता हैं....अमृता-इमरोज़ हमारे वक़्त के ऐसे ही दो नाम हैं . ..अल्टीमेट लव लेजेंड ...</span></span><span style="color: #3333ff; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: normal;"><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 28px;">जो धर्म ,समाज क़ानून और संस्स्कारो से कही आगे की बात हैं.......अमृता की नज़्म ज़हन में हैं........</span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 28px;">आदि --धर्म </span></span></span><br />
<div><span style="color: #3333ff; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: normal;"><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 28px;"> </span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 28px;">मैं थी -और शायद तू भी </span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 28px;"><div>शायद एक सांस के फासले पर खड़ा</div><div>शायद एक नज़र के अँधेरे पर बैठा </div><div>शायद अहसास के एक मोड़ पर चलता हुआ </div></span></span><div><div><div style="font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: normal;"><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 28px;"><span style="color: #3333ff;">लेकिन वह परा एतिहासिक समय के बात हैं .........</span></span></div><div style="font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: normal;"><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 28px;"><span style="color: #3333ff;"><br />
</span></span></div><div><span style="color: #3333ff; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: normal;"><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 28px;">यह मेरा और तेरा वजूद था <div>जो दुनिया की आदि-भाषा बना </div><div>मैं की पहचान के अक्षर बने </div><div>तू की पहचान के अक्षर बने </div><div>और उन्होंने आदि-भाषा की आदि पुस्तक लिखी ...........</div><div><br />
</div><div><div>यह मेरा और तेरा मिलन था </div><div>हम पत्थरों की सेज पर सोए </div><div>और अन्हे,होंठ,उँगलियाँ ,पोर </div><div>मेरे और तेरे बदान के अक्षर बने</div><div>और उन्होंने उस आदि पुस्तक का अनुवाद किया </div><div>रेग्वेद की रचना तो बहुत बाद की बात हैं .............</div><div><div><div>मैं ने जब तू को पहना </div></div><div>तू दोनों ही बदन अंतर्ध्यान थे </div></div><div>अंग फूलो की तरह गूँथ गए और रूह की दरगाह पर अर्पित हो गए <div>तू और मैं हवं की सामग्री </div><div>जब एक-दूसरे का नाम होंठो से निकला </div><div>तो वह नाम पूजा के मंत्र थे </div></div></div><div><br />
</div></span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 28px;">यह तेरे और मेरे वजूद का एक यज्ञ था </span></span><div style="font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: normal;"><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 28px;"><span style="color: #3333ff;"><div><div><div>धर्म-कर्म की गाथा तो बहुत बाद की बाद हैं.......।।।।।।।</div></div></div></span></span></div><span style="color: #3333ff; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: normal;">दोस्तों! इमरोज़ उस शख्स ,शख्शियत और अहसास का नाम हैं जो अमृता की नज्मों में बहुत होले से ,आहिस्ता से नुमायाँ हुआ हैं ,जहाँ कोरी बोध्धिकता के लिय कोई जगह नहीं हैं असल में हमें इसे इश्क़ का नूर कहना होगा जो हमारे हांथों में इश्क़ हकीकी का पैगाम हैं....... अमृता के लिए हमें हमारे इमरोज़ संभाल कर रखना होगा. <span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;"><div> </div></span></span><div style="font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: normal;"><span style="color: #3333ff;">जिस माटी ने , वक़्त ने , मुल्क़ ने हमें ऐसा हसीं रूह और इश्क़ बक्शा हो उसके लिए की हम ज़रा बहुत ही इमानदारी नहीं बरत सके.....! 1 ! </span></div><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 28px;"><div><br />
</div>.</span><span style="background-color: white;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;"><span class="Apple-style-span" style="line-height: 28px;">-इमरोज़ आनायास ही ऐसे विस्मय लोक में पहंचा दिए गए हैं ,जहा वो चाह कर भी अपनी हथेली की लकीरों पर लिखे अमृता के नाम को छू नहीं पा रहे हैं ,और यही तड़प उनकी वसीयत हैं प्यार करने वालो को तड़पता हुआ देखना शायद हमें अच्छा भी लगता हैं ,अमृता के बच्चो को भी अच्छा लग रहा हैं .राधा-कृष्ण से लेकर हीर-रांझा तलक कही किसी न किसी रूप में इश्क़ तड़पता रहा हैं और हम हरबारी खुश होकर अपना मिथिहास और इतिहास बोध पुख्ता करने का भ्रम पालते रहे हैं. इमरोज़ ,के-२५ होजखास और अमृता के साथ भी हम यही करने जा रहे हैं. दोस्तों यह हमारा सौभाग्य हैं की हम हमारे वक़्त और मुल्क के इश्क़ अमृता-इमरोज़ को समय के किसी न किसी हिस्से में देख पाए हैं .वक़्त हमें इश्क़ का पता बता चुका हैं, यही वक़्त हैं जब हमें इस पते को इतिहास में दर्ज़ करना हैं...क्या राधा-कृष्ण ,शीरी-फरहाद के इस मुल्क़ में अमृता-इमरोज़ का घर हमेशा हमेशा के लिए इश्क़ और प्रेम के स्मारक के तौर पर नहीं पहचाना जाना चाहिए ? क्या इमरोज़ की तड़प में हमें उन्हें अकेला छोड़ देना चाहिए ? क्या मुल्क़ के और हमारे वक़्त में इश्क़ की जीवित किवदंती बन चुके अमृता-इमरोज़ को ऐसे ही भुला दिया जाना चाहिए? और इश्क़ की ईमारत के-२५ होजखास को यु ही बिक जाना चाहिए? क्या कोई साहित्यिक ,सामाजिक संस्थाए के २५ होजखास को बचाने के लिए कोई रचनात्मक पहल करेगी या सरकार के साथ किसी तरह का सकारात्मक बातचीत संभव होगी ? क्या हमारी यह ज़िम्मेदारी नहीं बनती की हम के - २५ होज्खास को हमारे समय-समाज और देश का प्रेम स्मारक, art gallery या स्रजन क कि कोइ निषाणि बनाकर अमर कर दे ? </span></span></span><span style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: normal;"> </span></div></div></div></div></div>आदित्य आफ़ताब "इश्क़" aditya aaftab 'ishq'http://www.blogger.com/profile/01695360902881473207noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4563738692394252935.post-51980985733087534642011-04-20T13:01:00.001-04:002011-04-20T13:03:15.379-04:00पी लू .........तेरी नज़र से बस एक मुठ्ठी ज़ी लू<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span class="Apple-style-span" style="line-height: 25px;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: Georgia, 'Times New Roman', serif;"><span class="Apple-style-span" style="color: #93c47d;"><b>पिके मय का प्याल मै बदनाम हुआ- बेहोश हुआ ,धीरे धीरे आँखों से घूँट घूँट भर लेने दो,</b></span></span></span><br />
<div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: Georgia, 'Times New Roman', serif;"><span class="Apple-style-span" style="color: #93c47d;"><b>ज़िस्म तड़पता हैं मेरा ,मेरे यौवन को रोने दो, सांसों में उलझा हैं जीवन ,</b></span></span></div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: Georgia, 'Times New Roman', serif;"><span class="Apple-style-span" style="color: #93c47d;"><b>इन साँसों को थम जाने दो,,</b></span></span></div></div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: Georgia, 'Times New Roman', serif;"><span class="Apple-style-span" style="color: #93c47d;"><b>एकाध दफा तो यारो अब शमशान में भी सो जाने दो।।।।।।।।।।।।।।।। </b></span><br />
-- </span></div></div>आदित्य आफ़ताब "इश्क़" aditya aaftab 'ishq'http://www.blogger.com/profile/01695360902881473207noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4563738692394252935.post-52155867887417180002011-04-16T06:09:00.000-04:002011-04-16T06:09:58.496-04:00चलो कि फिर से रावन दहन कर आये.......<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;">वैसे मेरी इतनी औकात नहीं की मैं मनु जोसेफ के बारे में कोई टिप्पणी करूँ. फिर जैसे की स्टुडेंट लाइफ में एक सो- काल्ड दुःख हुआ करता हैं कि एक्साम में कुछ सवाल आउट ऑफ़ सेलेबस पूछे गए ,उसी तरह पोस्ट-स्टुडेंट लाइफ का सो- काल्ड सुख हुआ करता हैं अपनी औकात और हैसियत के बाहर जाकर कुछ काम और बात करने का. तो बात यह हैं कि मनु सच्चे सक्षम ,और संभावनाशील पत्रकार हैं, ऑफ-बीट जर्नलिस्म के लिए जानी जाने वाली पत्रिका ओपन के सम्पादक हैं.(मनु के बारे में मैं जो भी बोलू वह ऐसा ही हैं जैसे महारथी अर्जुन के बारे में कोई अनाड़ी योध्धा )</div><div style="text-align: left;"> कुछ लोग होते हैं जो मीडिया की सुर्खियाँ बनते हैं- बनाते हैं.इस बार अन्ना हज़ारे टॉप कर गए. </div><div style="text-align: left;">तीस साल से कम के महेंद्र भाई जी धोनी हो या सत्तर पार के हज़ारे साहब मीडिया में सम्भावनाये सभी के लिए हैं. नो नीड टू बी फ्रसटेड . मेरा नंबर भी आएगा ,इसी उम्मीद के सहारे तो अपुन टाइप भाई लोग ज़ी रहे हैं सभी. खैर "विषय से भटक जाना मेरी फ़ितरत हैं "- यह जाने-माने पत्रकार रविश जी का डायलोग हैं. अपुन भी फोल्लो कर गए. काश! रविश कुमार को कर पाते . देखिये फिर मत केना ,वो सुरु में ही बता दिया था .......आउट ऑफ़ औकात बगेरह ......चलिए तो अब मैं अपनी औकात पर उतरु . यह कतई ज़रूरी नहीं कि गंभीर मसले पर बातचीत से पहले उसकी भूमिका भी गंभीर हो. दरअसल यह सिर्फ मेरा नहीं हमारी सरकार भी रवैया हैं.और आज से नहीं पिछले ४२ सालो से ...कई सरकारे आई - गई पर लोकपाल विधेयक नहीं आ सका और जब सरकार से लोकपाल को साकार करने कि माग उठी तो उसने ४२ साल पुराने वही कागज़ (लोकपाल विधेयक प्रारूप)निकाल लिए जिन्हें सरकार ने कभी भी रद्दी से अलावा और कुछ नहीं समझा . और हकीकत भी यही हैं जी हां सरकार का लोकपाल वाकई महज़ एक कोरी ओपचारिकता हैं,कि अगर यह प्रस्ताव पास हो भी जाए तो इस लोकपाल कानून के आधार पर कभी भी भ्रष्टाचार के खिलाफ़ कोई इबारत नहीं लिखी जा सकती. जाहिर हैं बात हैं सरकार खुद ही अपने पैर पर कुल्हाड़ी क्यों कर मारेगी. तो अब सरकार ने ऐसा कुछ इंतजाम कर दिया कि जो कुल्हाड़ी पिछले ४२ सालो में नहीं बन पायी उसे अगर बनाना भी पढ़े तो उसकी धार बोथरी कर दो. कहने कि ज़रुरत ही नहीं कि सरकार ने ऐसा ही किया भी. कुल्हाड़ी अभी बनी नहीं हैं और दरअसल यही अन्ना हज़ारे के लोकप्रिय आमरण अनशन का आधार हैं कि कुल्हाड़ी बने पर धारदार बने,वैसी नहीं जैसी सरकार चाहती हैं ,बल्कि वैसी जो जनता और लोकतंत्र के हित में हो . अन्ना हज़ारे ने मायूस चेहरों पर ख़ुशी की एक किरण ....और ऐसे एक एक कर असंख्य किरणे फैलाई दी है. हज़ारे की गतिविधियाँ और ड्राफ्टिंग कमेटी ,जन लोकपाल का मसोदा ,सर्कार के लोकपाल का प्रारूप ,वगेरह अन्य तकनिकी मसलों पर पहले ही काफी कुछ पढ़ा सुना और लिखा जा चुका हैं,और लिखा जा रहा हैं. मानसून सत्र तक यह सम्पादकीयों का प्रिय विषय रहेगा ,रहना ही चाहिए. यहाँ मुझे आपसे दो तरह की बात करनी हैं, एक जो महोदय मनु जोसेफ साहब ने इस आन्दोलन को लेकर कही और लिखी हैं ,और दुसरे क्या वाकई जन लोकपाल इतना ज़रूरी हैं,और इतना मज़बूत कि भ्रष्टाचार ९०% ,जैसा कि अन्ना कह रहे हैं,ख़त्म हो जाएगा. पहले जोसेफ महोदय क्या बतिया रहे हैं, कान थोडा उधर करते हैं. महोदय के लेख का शीर्षक हैं- द अन्ना हज़ारे शो , मसलन ये कोई आन्दोलन नहीं बल्कि प्रदशन मात्र हैं, अंग्रेजी का शो शब्द अपने आप में नकारात्मक हरगिज़ नहीं ,किन्तु महोदय जोसेफ ने लेख के अंत में हमें बताया हैं कि कैसे कोई दस वर्ष पूर्व महाराष्ट्र के एक गाँव में जहाँ मीडिया को आने-जाने में ख़ासी तकलीफ़ हो रही थी, पत्रकारों के साथ म्यु चुअल अंडर स्टेंडिंग स्थापित कर अन्ना ने अपना अनशन समाप्त कर दिया था. जब आप वाकई अच्छे इंसान और सच्चे पत्रकार होते हैं ,मनु जोसेफ की तरह साहस दिखाते हैं. टेस्ट क्रिकेट कि कोई ऐसी पारी जो तकनिकी द्रष्टि से उत्तम ,अतिउत्तम,और उत्क्रत्तम हो ज़रूरी नहीं कि सभी क्रिकेट-खेल प्रेमियों को पसंद आये ही . बहुत संभव हैं ऐसी पारी ज़्यादातर लोगो को उबाऊ लगे. लोगो को चोके छक्के चाहिए ,दे दनादन,इस वर्ल्ड कप का थीम सोंग भी कुछ ऐसा ही था दे घुमा कर,यहाँ वीरेंदर सहवाग टाइप खिलाडी पसंद किये जाते हैं,भले कोई वी वी एस लक्ष्मण सदी कि सबसे महान पारी खेले या राहुल द्रविड़ द वाल बनकर क्रिकेट कि किताब का हर शोट किताब के मुताबिक ही क्यों न खेले. टेस्ट क्रिकेट कम ही देखा जाता हैं. धूम आईपी एल ,वनडे और टी-ट्वेंटी की होती हैं. अन्ना हज़ारे मीडिया के साथ मिलकर फटाफट क्रिकेट खेल रहे हैं, और जोसेफ महोदय विशुद्ध टेस्ट संस्करण के लोप से चिंतित दिखाई दे रहे लगते हैं.और देश कि जनता को यह अन्ना का यह फटाफट खेल बहुत पसंद आया ,तभी तो जो युवा, कप्तान धोनी के साथ हैं,बिना देर किये अन्ना के साथ हो लिए. महोदय जोसेफ को चिंता हैं अन्ना के तौर-तरीको को लेकर. मीडिया और अन्ना के अग्रीमेंट को लेकर.निसंदेह अन्ना का तरिका विशुद्ध गांधीवादी नहीं कहा जा सकता. पर फटाफट क्रिकेट ऐसे ही होता हैं रन बन्ने चाहिए ,फिर वो कैसे भी बने. और टेस्ट क्रिकेट का अपना एक तरिका होता हैं,कि खेल होगा तो खेल के तमाम नियम कायदे के साथ. पर वीरेंदर सहवाग जैसे खिलाडी जो भी क्रिकेट खेले अपने मुताबिक खेलते हैं चाहे तो टेस्ट मेच हो,वनडे या फिर टी-ट्वेंटी. , और अन्ना जन लोकपाल के ऐसे ही वीरेंदर सहवाग है. मनु जोसेफ को अन्ना का खेल पसंद नहीं. दरअसल वो टीपिकल टेक्निकल कमेंट्रेटर हैं. जो अन्ना के खेल पर अपनी टिप्पणी करने से नहीं चुकते. पर सच पूछा जाय तो कहना होगा इस मेच का असली खिलाड़ी तो मीडिया हैं. कल्पना कीजीये अन्ना का अनशन ज़ारी हैं,और उन्हें कोई मीडिया कवरेज़ नहीं मिलता,तो ये तमाम हिन्दुस्तानी जो कल तक सिर्फ क्रिकेट और कप्तान धोनी के फेन थे अन्ना के मुरीद कैसे होते भला . यहाँ एक बात साफ़ तौर पर समझ लेनी हैं कि भले अन्ना और मीडिया परस्पर सहयोगी रहे हो, भ्रष्टाचार के खिलाफ़ जो शुरूआती माहोल बना वो देश के हित में बना . भले ही वीरेंदर सहवाग कैसे भी शोट खेले ,जो तकनिकी द्रष्टि से कमजोर हो,बिना फुटवर्क के हो, पर वो जब खेलते हैं ,टीम को लाज़बाब शुरुआत देते हैं,अन्ना ने भी यही किया. हां अगर मेच फिक्स हो तब ज़रूर उनकी खिलाफ़त होनी चाहिए. पर जिस तरह महोदय निर्भीक पत्रकार हैं,अन्ना भी एक महान देशभक्त हैं. यहाँ दो बातो ने ज़रूर दिल दुखाया हैं, एक तो जोसेफ महोदय ने लेख समाप्त कर दिया पर जन लोकपाल के विषय में अपनी दूरद्रष्टि से हमें वंचित रखा ,और अन्ना जिन्हें जन लोकपाल समिति में स्यम शामिल नहीं होना चाहिए था ,खुद पंचरत्न होने पहुच लिए. समिती से बाहर होते तो उनका कद वाकई बहुत बढ़ जाता. असल में अब कोई गाँधी नहीं होता सिर्फ गाँधी होने का भ्रम देता हैं. क्या वर्ल्ड कप सेमीफाइनल में में ऑफ द मेच चुने गए महान सचिन को वह पुरुष्कार खेल भावना के अनुरूप ,उस मेच में वाकई सबसे बेहतर खेल दिखने वाले पकिस्तान के तेज़ गेंदबाज़ वाहिद रियाज़ को नहीं देना चाहिए था .जबकि सचिन खुद जानते हैं छह जीवन दानो से युक्त वह ८५ रन कि पारी उनके जीवन कि सबसे अच्छी पारी नहीं थी.ऐअसा करते तो सचिन और अन्ना दोनों किवदंती बन जाते.पर अब तो सिर्फ गाँधी का भ्रम ही शेष हैं. खैर यह भरम ही बहुत हैं. अब मैं अपनी दूसरी और अंतिम बात करता हूँ -क्या वाकई अन्ना सच बोल रहे हैं कि जन लोकपाल ९० फीसदी भ्रष्टाचार समाप्त कर देगा. यहाँ कुछ चीज़े स्पस्ट होनी ही चाहिए ,एक तो यह सिर्फ शुरुआत हैं,काफी ज़बरज़स्त धमाकेदार ओपनिंग. अन्ना ने अभी सिर्फ वीरेंदर सहवाग का रोल निभाया हैं एक उम्दा ओपनिंग देकर. अब बारी टीम वर्क कि हैं,और अन्ना कि टीम भले ही बिखरी न हो पर बहुत एकजुट हैं,इसमें संदेह हैं .सहवाग के अलावा टीम को तकनिकी द्रस्ती से लेस लक्ष्मण ,द्रविड़,और सचिन,जहीर,हरभजन भी चाहिए. और टीम के रूप में चाहिए,एकजुट. अन्ना जब अनशन पर बैठे थे और जब प्रेस कांफ्रेंस में .दोनों जगह कुछ अंतर था. प्रेस कांफ्रेस में अन्ना हज़ारे कि वह गांधीवादी द्रष्टि देखने को नहीं मिली जिसके लिए वे (खासकर महाराष्ट्र में ) जाने जाते हैं. उनका यह कह देना कि जन लोकपाल से इतना उतना फीसदी भ्रष्टाचार समाप्त हो जाएगा ,बिलकुल ही सतही स्तर का बयान हैं. जन लोकपाल अपने किस रूप में कानून बनकर सामने आता हैं यह अलग मसला हैं बात वाही हैं- सरकार कि बोथरी कुल्हाड़ी बनाम जनता कि धारदार कुल्हाड़ी. सरकार और दूसरी राजनितिक पार्टिया इतनी आसानी से समर्पण नहीं करने वाली. पर यहाँ यह समझना ज़रूरी हैं कि भ्रष्टाचार सिर्फ एक क़ानून बना देने से समाप्त नहीं होता ,इसलिए अन्ना के यह द्रष्टि बहुत उथली और सतही द्रष्टि लगती हैं जब वह कहते हैं इतना और उतना प्रतिशत .यह गांधीवादी द्रष्टि हरगिज़ नहीं. गाँधी ने हमें सिखाया हैं कि भ्रष्टाचार कि लडाई अपने अंदर से ,अपने आप से ज़्यादा लड़नी होती हैं. और यह लडाई जितनी राजनितिक होती हैं,उससे ज़्यादा सामाजिक,और उससे भी कही ज्यादा मनोवैज्ञानिक . पहले खुद को सफाई ज़रूरी हैं. अन्ना स्यम जानते हैं कि उनके अनशन में जो जन समूह उम्दा हैं उनमे कई ऐसे भी दुकानदार हैं जो अपनी दुकानदारी भ्रष्टाचार कि बिना पर ही चलते रहे हैं.गोया कि रावन मारने सब राम लीला मैदान तक जाते हैं .....पर अपने अंदर के राम लीला मैदान में रावन और और बड़ा होता जाता हैं .इस सभ्य समाज में अन्ना के अनशन के दौरान ही काम कुंठा से ग्रसित बद्तामीजो ने एक २० बर्षीय युवती को दो बार बलात्कार किया ,इनमे उस युवती का रिश्तेदार भी शामिल रहा हैं. जनसँख्या के आंकड़े सामने हैं.और पंजाब हरियाणा राजस्थान में कई जगह १००० लडको पर ७८० लड़कियां. और जनसँख्या का शीर्ष स्तर छुते देश को अपने बाघों ,जंगलों,नदियों,अन्य वन्य जीव,और पर्यावरण को बचाने में सिर्फ कुछ गिने चुने व्यक्ति और संस्थाए सामने आती हैं. क्या यह हमरे ही समाज का दोगला चरित्र नहीं हैं ??????? क्या इसके खिलाफ किसी आन्दोलन की ज़रुरत नहीं हैं. वो तो साहब ये नेता इतने भ्रष्ट हैं की इनके खिलाफ कोई भी आवाज़ बुलंद करे ,हम उसका साथ देगे ही .पर इसका यह अर्थ कतई नहीं हैं अन्ना या जन लोकपाल बिल देश को ९० फीसदी भ्रष्टाचार से मुक्ति दिला देगा. यह लडाई बहुत लम्बी हैं और आम आदमी के लिए दिल्ली अभी भी उतनी ही दूर हैं. जन लोकपाल का स्वागत हैं ,अन्ना बढ़ायी और बधाई के सच्चे हकदार हैं पर किसी क़ानून की सीमओं को उस व्यक्ति को समझना चाचिए जो स्यम गाँधी के रस्ते चलने का प्रयास और दावा कर रहा हो . और हां अंत में फिर से क्रिकेट के बहाने की अन्ना और उनकी टीम को समझना चाहिए की यह कोई टी-ट्वेंटी या वनडे गेम नहीं असल टेस्ट क्रिकेट हैं, ओपनिंग भले ही फटाफट क्रिकेट की तर्ज़ पर शानदार रही हो पर आगे असल टिक्कड़ खिलाडी ही चल पायेंगे . इस नज़रिए से महोदय मनु जोसेफ आदरणीय हैं. और उम्मीद करते हैं की भ्रष्टाचार के खिलाफ इस मेच में वे भी अन्ना और साथी खिलाडियों के साथ नज़र आयेगे . आपके आलोचक आपके सच्चे सहायक व् प्रशंशक होते हैं अन्ना को अपने आलोचकों से बचना नहीं चाहिए ,बल्कि गांघी की तरह उनका स्वागत करना ही होगा . कबीर याद आते हैं निंदक नियरे राखिये .............आँगन कुटी छवाये बिन पानी बिन साबुना ,निर्मल करे स्वभाव. ..............</div></div></div></div></div>आदित्य आफ़ताब "इश्क़" aditya aaftab 'ishq'http://www.blogger.com/profile/01695360902881473207noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4563738692394252935.post-51834305913396100052011-04-12T20:51:00.003-04:002011-04-12T21:28:02.812-04:00निकम्मापन और सेक्स ............<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi9jmRtYuTpDsI7r0_4AKV01OE6GrYV7wsYqUe2hIJ8-Ta-lgL9dzwdcETJRbzGxGqVAmAuPdiAOAIwL0186l2qDmrVsRxhfckkCAJBSPT_PcAMlzjZ3CFn0csxwhwWPWuKyFscSP25K8s/s1600/tital+%2521.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="213" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi9jmRtYuTpDsI7r0_4AKV01OE6GrYV7wsYqUe2hIJ8-Ta-lgL9dzwdcETJRbzGxGqVAmAuPdiAOAIwL0186l2qDmrVsRxhfckkCAJBSPT_PcAMlzjZ3CFn0csxwhwWPWuKyFscSP25K8s/s320/tital+%2521.jpg" width="320" /></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">समुन्दर अभी अच्छा ख़ासा दूर हैं ,(समुंद्री) कछुआ धीरे-धीरे अपनी मंजिल की तरफ रेंग रहा हैं,</span></div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;"> क़ुदरत की पाठशाला में धैर्य का महापाठ पढ़ाने वाला धरती का सबसे बड़ा टीचर - </span></div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">धीर गंभीर यह रहस्यमयी प्राणी बेहद बारीक सी हरकते-हलचले करता हुआ अपने एक मात्र हुनर ऐतबार और इत्मिनान के साथ अनेक सपने बुन रहा हैं........</span></div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">चल कहा रहा हैं रेंग रहा हैं स्याला ????//// ये कोई इंसानी आवाज़ हैं...........</span></div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">दरअसल कछुए का हुनर और इत्मिनान आदमी की ज़ात और औक़ात के बाहर की बात हैं. </span></div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">फास्ट फ़ूड खाकर सुपर फास्ट हो जाना ये हमारा मिजाज़ हैं.......</span></div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">और ज़ल्दी इतनी हैं क़ि कमरे का दरवाज़ा लगाते ही बाथरूम का गेट खोलना पढता हैं .... </span></div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">लगे हाथ पत्नी और प्रेमिका क़ि तरफ़ से रिमार्क मिलता हैं -"जाओ साफ़ होकर आओ और करवट दूसरी और लेकर ज़हंनुम में जाओ............."</span></div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">जंक फ़ूड दिमाग में जंग लगा देते हैं.....और फिर हम हम नहीं निकम्मे हो जाते हैं ........</span></div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">जैसे मैं हो गया हूँ............</span></div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">निकम्मापन या तो पस्त होकर जिंदगी को अस्त करना चाहेगा या खालिस खयाली पुलाव.........</span></div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">अरे भई फास्ट फ़ूड के आलावा कैलोरी और भी तो चाहिए......</span></div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">और यु ही निकम्मेपन का अनवरत क़ारोबार चलता रहता हैं........</span></div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">इससे कही बेहतर हैं नपुंसक हो जाना !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!</span></div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">हैरान हूँ पर निकम्मे आदमी को ऐसे ही विचार आते हैं...........और यह एक पुख्ता विचार हैं......</span></div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">आपसे क्या छुपाना कल <b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">उसने</span></b> कहा .......अब तुम्हे सोचना - महसूस करना एक कड़वा स्वाद हैं .....किस -विस करने पर कड़वापन और बढेगा और फिजिकल हो जाना तौबा-तौबा .............नपुंसक आदमी अयोग्यता के बाबजूद बिस्तर तक पहुच जाता हैं .........पर निक्कमे आदमी के लिए दरवाज़ा ही बंद हैं .....................कछुआ अभी समुन्दर से बहुत दूर हैं पर हैं जीवंत उसकी उम्मीदों के साथ और मैं दरवाज़े के बाहर .............वर्तमान के साथ भविष्य भी स्वाहा ......... वो भूतकाल के आलिंगन और चुम्बन ...........!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!</span></div></div></div></div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;"><br />
</span></div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;"><br />
</span></div></div>आदित्य आफ़ताब "इश्क़" aditya aaftab 'ishq'http://www.blogger.com/profile/01695360902881473207noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4563738692394252935.post-92128885211202924072011-04-10T08:19:00.000-04:002011-04-10T08:19:14.719-04:00मैं अन्ना हज़ारे नहीं .........<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="line-height: 28px;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"> </span><b><span class="Apple-style-span" style="background-color: #eeeeee; font-family: Georgia, 'Times New Roman', serif; font-size: large;"> स्याला नमक हरम कही का मैं ..............मक्कार ,धोखेबाज़,पाखंडी................</span><span class="Apple-style-span" style="background-color: #4c1130; font-family: Georgia, 'Times New Roman', serif; font-size: large;"> </span></b></span></div><span class="Apple-style-span" style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;"><br />
</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">दो वक़्त की रोटी बिना मेहनत के मुझे पाखंडी और निकम्मा बनाती हैं. </span><br />
<div>मेरे जीवन की पाखण्ड-प्रिय हरकते ,घोर टुच्चा आत्मकेंद्रित व्यक्तित्व ,</div><div>अहम् को वो तमाम सलवटे ,जिनसे में बरसो से मैं पाखण्ड मथता आया हू,</div><div>और बहुत भ्रमित सी वह सुरक्षा - जिसे मैं परिवार की सरहद में महसूस करता हूँ </div><div>दरअसल मुझे जीवनपर्यंत अपने घर से और अपने आप से भी जुदा कर देने पर आमदा हैं ...........</div><div>यह सामाजिक और घरेलु सुरक्षा मेरी लाइफ़ की विलेन हैं. बहुत बड़ा एक भ्रम हैं ...............</div><div>घर की इन चार दिवारी के बीच में कब भगोड़ा बन गया .........जान नहीं पाया हूं.......</div><div>निश्चित ही भगोड़ा बनना मेरी नियति और मंजिल नहीं हैं ........</div><div>पर वर्तमान यही हैं की मैं भगोड़ा हूं ,,,,,,,,,,,,,,निक्कम्मा ..............कमीना .................नमक हराम और घोर पाखंडी हूँ..........</div><div>एक मैं हूँ और एक वे हैं अन्ना हज़ारे ...............महाराष्ट्र का गाँधी अब मुल्क़ का गांधी बन रहा हैं .........संभवतः बन गया हैं............</div><div>और मैं पाखंडी बन गया हूँ...........दरअसल भ्रष्टाचार और पाखंड के खिलाफ़ बाहर के अलावा भीतर से भी लड़ना पड़ता हैं .............</div><div>और पाखंड,निकम्मापन बस यही नहीं करने देता ............वो कहते हैं न बिल्ली का गू .........ना लीपने का ना पोतने का </div><div>ऐसा ही हूँ मैं भी ............क्या आप मुझे वोट देंगे ??????????????????????? </div></div>आदित्य आफ़ताब "इश्क़" aditya aaftab 'ishq'http://www.blogger.com/profile/01695360902881473207noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4563738692394252935.post-32117367011498563322011-03-30T15:55:00.000-04:002011-03-30T15:55:29.637-04:00दादाजी ,पिताजी और पोते का फिक्स तमाशा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;">बाघों की नयी गणना जारी की जा चुकी हैं - मुल्क में अब बाघों की संख्या १४११ से बड़कर १७०६ बताई जा रही हैं.दरअसल १४११ की संख्या को लेकर पहले ही संदेह रहा हैं और अब बड़ी हुयी संख्या के साथ संदेह और भी बड़ रहा हैं . असली आंकड़े जानना वाकई आसन नहीं हैं . पर हैं बेहद ज़रूरी. </div><div>क्रिकेट ,सिनेमा और राजनीति हमारे मुल्क के तीन अहम् शगल हैं . और इन तीनो में ही खासकर राजनीती और क्रिकेट में आकड़ो का बड़ा महत्त्व हैं . याकि आकड़ों के आईने में ही नेता (तथाकथित राष्ट नेता ) टिकट की डील फ़ाइनल और पक्की करते हैं ,पार्टिया टिकट खरीदती - बेचती हैं.वोट बैंक बनाये और बिगाड़े जाते हैं. ये नंबर गेम ही हैं जहाँ बहुमत के चक्कर में एक-एक मत की खातिर सांसद और विधायक को करोडो और अरबो में बेचा और खरीदा जाता हैं. अरे भई डेमोक्रेसी का सवाल हैं हमारे नेता पैसो के लिए नहीं लोकतंत्र के लिए बिकते हैं. तो जब तलक ये नेता होगे लोकतंत्र ऐसे ही बचता (माफ़ कीजिये -बिकता) रहेगा . <br />
आकड़ेबाज़ी बदस्तूर ज़ारी हैं. कम्बखत ज़ारी तो वर्ल्ड कप भी हैं. और आज़ क्रिकेट के साथ कर्फ्यू लगा हुआ था. लोगबाग अपने-अपने आशियानों में दुबक कर बैठे रहे. जो सड़क पर रह गए थे वो सभी रोड पर जगह-जगह इकठा होकर टेलीविजन के सुरक्षा दायरे में थे. और हर गेंद का हाल जान रहे थे. बजरंगी दलों ,शिव सैनिकों वगेरह को यह सीखना चाहिए की लाठी और बन्दूक से भारत बंद नहीं होता . कोई राम सैनिक या शिव सैनिक भले ही भारत बंद के लिए अपना ब्लड प्रेशर हाई लो करे .मगर पूरे भारत का ब्लड प्रेशर तो इत्ते रन और उत्ती गेंद में उलझकर ही ब्लिंक ब्लिंक करता हैं.और भैया आंकड़े सिरफ़ इत्ते ,उत्ते ही नहीं होते. कोंन शतक लगाएगा और कोण गोल्डन ड़क बनाएगा और इन सब खिलाडियों का बाप क्रिकेट का मजनू भैया कब कहा पे कैसा किसके फेवर में सट्टा लगाएगा ,कभी एक का दस और कभी दस का पच्चाय्सी . असल में बार -बार ब्लड प्रेशर की तरह हिसाब किताब भी बदलता रहता हैं . और फिर हिसाब किताब के साथ ब्लड प्रेशर भी. भैया सटोरियों के लिए ब्लड प्रेशर और हिसाब किताब एक दूसरो के पूरक होते हैं. और सच्ची सट्टा ऐसा उत्प्रेरक हैं की जिसको आंकड़ेबाजी और सान्ख्याकिकी (गलत लिखा हैं सही पढ़ लेना) बचपन और जवानी में समझ नहीं आये बुदापे में वो भी नॉट आउट बेटिंग करता हैं. और भैया क्रिकेट एक ऐसा मसला हैं जो अपने आप में बड़ा आध्यात्मिक हैं मतलब आप एक दफे क्रिकेट को आत्मसात करले फिर सांसारिक परेशानी आपको होगी ही नहीं. अगर आप स्टुडेंट हैं तो माता पिता और स्कूल कोलेज की चिंता से मुक्ती . ध्यान सिरफ़ क्रिकेट का करो. अरे भई वर्ल्ड कप तो चार साल में एक बार होता हैं एक्साम का क्या हैगा वो तो आजकल सालभर में चार बार होती हैं . और आप तो स्टुडेंट हैं पर आपके बाप तो आपको बिना बताये ऑफिस में छुटी की अप्प्लिकेशिओन देते हैं और अपने दोस्तों के साथ कही सड़क किनारे पटियों पर दुकान जमा कर सचिन छक्का ,सचिन छक्का चिल्लाते हैं . अब आप ही सोचिये कभी कोई सचिन सुन ले की उसे छक्का छक्का बार बार बोला जा रहा हैं .............खैर वो आपके बा ...............मतलब पिताश्री हैं. दरअसल बात वाही हैं क्रिकेट कोई आध्यात्मिक शक्ति हैं और पूरे परिवार और राष्ट्र को एक सूत्र में जोड़ देती हैं. एक राष्ट्र के रूप में आपकी इक्षा ,प्रशन्नता और समस्सया एक ही होती हैं ....क्रिकेट. भले ही यह राष्ट्रिय शर्म की बात हो जिस मुल्क़ में अवाम के लिए बिजली नहीं हैं वहां फ्लड लाइट में क्रिकेट मेच खेला जा रहा हो. और बहुत संभव हैं की यह तमाम तमाशा बहुत बार पहले से फिक्स हो. (क्रमशः)</div></div>आदित्य आफ़ताब "इश्क़" aditya aaftab 'ishq'http://www.blogger.com/profile/01695360902881473207noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4563738692394252935.post-47887524667902291602010-08-19T10:49:00.000-04:002010-08-19T10:49:44.411-04:00क्या हिन्दुस्त्ता आज़ाद हैं ??????????????(1)<span class="Apple-style-span" style="border-collapse: collapse; color: #500050; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;">दोस्तों आर्ट के नज़रिये से देखे तो हिन्दुस्तान को कोई गुलाम नहीं बना सका ....... यूँ भी कला का कोई मज़हब और संविधान नहीं होता ..........ना ही यह मुमकि</span><br />
<div style="border-collapse: collapse; color: #500050; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;">न हैं संसद में कोई बिल पास होगा तभी गुरुदेव रविन्<wbr></wbr>द्र बाबा गीतांजलि लिखेगे ...<wbr></wbr>...............और ना ही उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद अपनी कहानी के चरित्र किसी पंडित या मोलवी से पूछा किया करते थे . किस्सागोई की परंपरा ,नज़्म ,ग़ज़ल ,कविता ,शेरों-शायरी ,चित्रकला ,मूर्तिकला को हमारे कला साधक योगियों ने हर वक़्त आज़ाद और बुलंद रखा ..............दरअसल ये हमारी कलायें ही रही हैं जहाँ अवाम का सुख-दुःख-दर्द किसी मुल्क की आवाज़ और अंदाज़ बनता हैं ............यही आवाज़ और अंदाज़ सभ्यता हैं तहज़ीब हैं तमीज़ हैं और मोहोबत्त............और जब कोई ऐसी तमीज़ ,तहज़ीब,और मोहोबत्त रवायत बनती हैं तो उस मुल्क़ की संसकृती का निर्माण होता हैं .हम दुनिया में प्यार बाटने वाले लोग हैं और इसी उजाले में ज़रा आप यह भी (पुनः) सुन ले चाहे आज़ बांग्लादेश ,पाकिस्तान, लंका ,और हिन्दुस्तान का भूगोल अलग-अलग हो पर इतिहास एक हैं ..............और मोहोबत्त किसी राजनितिक इतिहास , भूगोल और सरहद को नहीं मानती . आर्ट एक सिफ़ा हैं जो दूरियों को कम करती हैं ..........शुभा मुदगल ने एक दफ़ा बातो-बातों में ही कह दिया -आई डोंट मेक आर्ट ,बट ईट मेक्स मी............................<wbr></wbr>........शुभा जी को प्रणाम चरण वंदन ,दोस्तों हमारे इस ख़ूबसूरत सतरंगी मुल्क़ को भी इसी महान कल्याणी कला-विरासत ने बनाया हैं...................<wbr></wbr>आज़ हम आज़ादी की तिरेसठ वी जयन्ती मना रहे हैं .......और इस ख़ूबसूरत ज़श्न में अगर कोई ख़ूबसूरत बात कहूँ तो इतना भर कहना चाहता हूँ कि हमारी कला के नज़रिए से , ढाका ,कोलम्बो ,लाहौर ,कोलकाता और दिल्ली आज भी एक हैं ................हां हमने जिन्हें अपना राजनितिक आका बना रखा हैं अव्बल तो वो साज़िशखोर हमें एक नहीं होने देते......और फिर हम भी बहक जाते हैं और बहाने तलाशने शुरू कर देते हैं कभी मुल्क़ की सरहद आड़े आती हैं कभी मज़हब की दीवार ................और अब तो हम अपने अपने परिवार की चौखट में कैद होने लगे है ,कभी-कभी नीलगगन में उडती चहकती चिड़िया रानी हमें सिखाती हैं विकास के नित नये सौपान तय कर्र्रने वाला इंसान कितना ओछा हो गया हैं .................जावेद अख्तर याद आते हैं पंछी नदिया पवन के झोंकें कोई सर्र्रर्र्हद ना इन्हें रोकें ..............पर दुर्भाग्य ............नहीं नहीं विडम्बना ,अरे नहीं प्रताड़ना कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे शक्ति-संपन्न नेता को सरहद रोक लेती हैं ,और चाहे ये मज़हब की सरहद हो या मुल्क़ की याकि कोई वोट बेंक राजनीती की मजबूरी हिन्दुस्तान के प्रध्मानंत्री और सरकार के यहाँ बांग्लादेश से निर्वासित हमारे वक़्त का सच लिखने वाली बेबाक़ महान तसलीमा नसरीन के लिए कोई ज़गह कोई सवेदना नहीं ,लज्ज़ा लिखने वाली तसलीमा हिन्दुस्तान को अपना दूसरा घर मानती हैं वे कोलकाता<span></span><b>में </b> रहने की इजाज़त मांगती है और हम उन्हें हिन्दुस्तान से भी निष्कासित कर देते हैं <div>मानो सत्ता और राजनीति के आलिंगन ने प्रधानमंत्री के कान में अंगडाई ली हो और उन्होंने चुपचाप सुन लिया हो कि हम आज़ाद ख्याल लोकतंत्र हैं हम किसी तसलीमा के चक्कर में अपनी सरकारी आज़ादी क्यों दाव पर लगाये .........<div>दरअसल राजनीती की यही दिक्कत है<wbr></wbr>ं कि उसे किसी भी तरह की एकता में श़क होता हैं ........शायद यह श़क ही उनकी संजीवनी हैं सभी सरकारों और राजनितिक पार्टिया के मध्य यह बहुत बड़ा भ्रम हैं कि तमाम मसले जस के तस बने तो उनका अस्तित्व सुरक्षित हैं गोयाकि वे मुद्दों को सुलझाने का सिर्फ ढोंग करते हैं .............और आज़ाद भारत की जनता उनसे उनके इस पाखंड के विषय में कुछ कह भी नहीं पाती ...........यह एक बहुत बड़ी गुलामी में जिसमे यह आज़ाद मुल्क़ ज़ी रहा हैं ...........या शायद मर रहा हैं . इसी गुलामी के चलते एक सौ पच्चीस करोड़ के मुल्क़ में एक भी नहीं जो सरकार से कह पाए कि भले ही आप नपुंसक बन जाए पर हम हमारे लिए कलम थामने वाली तसलीमा के साथ हैं ...............हिंदी का सबसे छोटा शब्द्पुत्र मैं अपने ब्लॉग पर पहले भी कह चूका हूँ कि हमारी नपुंसक सरकार के खिलाफ मैं अपने घर हिन्दुस्तान में तसलीमा नसरीन का स्वागत करता हूँ ...........<br />
कोई आश्चर्य !नहीं कि इन सियासी हुक्मरानों ने कभी लज्जा पढी ही ना हो .............गर ये एक दफ़ा भी पढ़ लेते तो खुद लज्जित शर्मशार हो जाते .........नहीं नहीं दरअसल लज्जा शर्म ये इंसानी तहज़ीब हैं .काश!!! के यह भेढीयें इंसान हो पाते ...............हाय रे भेधीयाँ धसान ...........<br />
आखिर ये कहाँ कहाँ और कब तलक किस-किस बात पर शर्मशार होगें ......... लोकतं<wbr></wbr>त्र को ग्लोबलाईजेशन के बहाने लूटतंत्र बनाने वाले इन आकाओं के खिलाफ धीरे ही सही हमारा यंगिस्तान जाग रहा हैं युवाओं के बीच इनदिनों एक एसेमेस खूब लोकप्रिय हो रहा हैं .....................यह एसेमेस कुछ इस तरह हैं - हिन्स्तान एक ऐसा मुल्क़ जहा पिज्जा ,एम्बुलेंस ,पुलिस और दूसरी निहायत ज़रूरी सेवाओं के पहले पहुँचता हैं ,<br />
जहाँ कार लोन ५% की ब्याज दर पर उपलब्ध हैं और शिक्षा ऋण के लिए आप १२% ब्याज चुकाते हैं ...जहाँ चावल ४० रूपये किलो और दाल ८० रुपये किलो हैं पर सिम कार्ड मुफ़्त मिलता हैं ,देवी मान नारी का गुणगान करते हैं और कन्या भ्रूण हत्या बहुत सहजता से करते हैं .जहाँ धोनी बल्ला घुमाये तो करोड़ का और मजदूर गड्डा खोदे तो भाव ताव करते हैं ........................ऐसा ही इनक्रेडिबल इंडिया<br />
<br />
ऐसा नहीं हैं कि यह सिर्फ हमारी सरकार या राजनीतिज्ञों का चरित्र हैं ........हम भी जीवन भर दोहरे चरित्र का खेल खेलते रहते हैं ........तमाम रिश्तें झूठ के सहारे उम्र भर आराम से चलते हैं .........यहाँ जिसे जीते जी ढंग से रो जून की रोटी नसीब न हुयी हो मरने के बाद उसका श्राद्ध पकवान बनाकर किया जाता हैं........ यह अब जगजाहिर हैं कि यहाँ अक्सर वही इमानदार हैं जिसे बईमानी का मौका न मिला हो ...............यह बात रिश्तों से लेकर धंधे तक लागू होती हैं ..........निदा फ़ाज़ली साहब ने हमें इसी तरह टटोला हैं "हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी जिसे भी देखना कई बार देखना ........"<br />
क्या सिर्फ पासपोर्ट ,पेनकार्ड ,चुनाव आयोग पहचान पत्र या किसी बाबू को रिश्वत देकर राशन कार्ड पर अपना नाम लिखवा भर लेने से हमारी आज़ादी प्रमाणित हो जाती हैं . बकौल महान सार्वकालिक पत्रकार प्रतिश नंदी " पहले भी भ्रष्टाचार होता रहा हैं .......पर आज के भ्रष्टतम दौर में आपके पास इमानदारी कोई विकल्प ही नहीं "<br />
गोयाकि सिस्टम में रहना हैं काम करना-करवाना हैं फिर आप चाहे न चाहे आपको तयशुदा कमीशन अधिकारियों,मंत्रियों ,बाबुओं,दलालों .तक पहुचाना ही हैं .........अब शिक्षा और चिकित्सा जगत ने भी अपने अपने कमीशन जारी कर दिए हैं .........हां अपने वाले के लिए दो चार प्रतिशत की रियारत मोज़ूद हैं ........<br />
.....मध्य प्रदेश के एक विश्वविद्यालय में जितने प्रतिशत (मार्क्स)आप बनवाना चाहे ......बस पैसा फैकियें ........दस से पंद्रह हज़ार सिर्फ एक सब्जेक्ट का.इसमें भी सत्तर परसेंट बनेगा .ज़्यादा मार्क्स चाहिए सिंपल हैं , पैसा ज़्यादा कर दीजिये .........सब गन्दा हैं पर धंधा हैं ये ........जो विद्यार्थी मेडिकल ,इनजिनिय्रिंग और एम् बी ए की सीट और डीग्री खरीदने के लिए रिश्वत दे रहे हो उनसे मुल्क़ को भला क्या उम्मीद रखनी चाहिये .................. आज़ादी की अफीम खाकर सो रहे हैं हम और आप ......और मन -मष्तिष्क के ज़हनी गुलामी हर रोज़ दो दूनी चार हो जाती हैं .................ज़हनी तौर पर गुलाम मुल्क़ तू ज़रा अमृता प्रीतम को सुन ले<br />
<div style="background-color: white; color: #674ea7;"><b>काया का जन्म माँ की कोख से होता हैं ,</b></div><div style="background-color: white; color: #674ea7;"><b>दिल का जन्म अहसास कि कोख से होता हैं </b></div><div style="background-color: white; color: #674ea7;"><b>,मस्तिष्क का जन्म इल्म कि कोख से होता हैं ,</b></div><b>और जिस तहज़ीब कि शाखाओं पर अमन का बौर पड़ता हैं ,उस तहज़ीब का जन्म अंतर्चेतना कि कोख से होता हैं ......<br />
दोस्तों </b>पकिस्तान तो तिरेसठ बरस पहले बना दिया गया था ,पर उसके बाद आज़ादी की अफीम अपना असर दिखती रही और हिन्दुस्तान में कितने ही दरिद्र भारत बन गए ......... <b>ये बटवारे बिलकुल चुपचाप हुए इसमें बन्दूक तलवार नहीं ........व्यवस्था की मार पढ़ी और पेट की आग में हिन्दुस्तान जल गया बंट गया.......और हम सिर्फ शाइनिंग इंडिया ही गाते रहे ...........किसी भी ने श न ल हाइवे से आप दस बीस किलोमीटर चले जाए फिर आप शाइनिंग इंडिया वाह नहीं दरिद्र भारत आह करेगें .............</b>अब तो सरकार विज्ञापन में सफ़ेद झूठ बोलती हैं .........ये कहते हैं घरेलु गेस पर २२४ रुपये की सब्सिडी देते हैं ..........पर ये नहीं बताते कि पेट्रोल-डीज़ल के असली कीमत क्या हैं और कितना टेक्स लेते हैं ........सत्रह रूपए के पेट्रोल पर केंद्र सत्रह रूपए और राज्य सरकार इक्कीस रुपये मिलकर कुल अडतीस रुपये वसूली करते हैं ......सरकार शुरू से ही हर व्यवस्था पर अपना नियंत्रण चाहती हैं ........पहले यह दूघ बेचा करती थी .........यह तब की बात हैं जब अमूल और दुसरे ब्रांड बाज़ार में नहीं थे ......फिर सरकारी ब्रेड भी बेची गयी ,जगह जगह स्टाल लगाकर इडली डोसा बड़ा साम्भर ..........फिर जब बासा दूध ब्रेड और इडली नहीं चली तो उसे समझ आया कि यह सब सरकार का नहीं असल में व्यापारी वर्ग का काम हैं .सरकार का काम कुछ और हैं ...........पर जिस सरकार पर पूरे मुल्क़ को चलाने की ज़बब्दारी हैं वह आज़ तलक यह अपना काम नहीं इजाद कर पायी हैं तभी तो उत्तर प्रदेश में मायावती मुख्यमंत्री की बजाय तानाशाह बनती जा रही हैं मायावती के लक्षण देखकर लगता हैं उनके आदर्श लोकतंत्र में मोजूद ही नहीं हैं ........मायावती सरकार किसानो के साथ प्रोपर्टी डीलर का खेल खेल रही हैं .........और घोर आश्चर्य कि गंगा जमुना की उपजाऊ ज़मीं पर कंक्रीट का जंगल क्यों बसाया जा रहा हैं ................ऐसे ही पूरे लखनऊ में कितने ही हाथी और अपनी खुद की मूर्तिया लगवा दी ..एक हाथी पर कोई साठ लाख का खर्च आया हैं ...............और दुर्भाग्य देखिये जिस किसान पर मात्र अठारह हजार का क़र्ज़ हो वह आत्म हत्या कर लेता हैं .........साठ लाख का एक एक हाथी और अठारह हज़ार क़र्ज़ किसान पर ..............<br />
उत्तर प्रदेश के गरीबों की तकदीर बदल जाती मायावती जी जितने पैसे में आपने वहां अपनी मूर्तिया गडवा दी ....ये कैसी आज़ादी हैं ???????????????????/और इस सारे तमाशे में हम तमाशबीन बन गए ..और बहुतेरे तो शादियों में ढोल बजाकर लाखों करोडो लूटा देते हैं ...........ये किस मुल्क़ है जहा तीस तीस आदमियों का खाना एक वी आई पी की थाली में हो और आधा हिन्दुस्ता भूखा मर रहा हैं .........किसी थ्री फाईव् स्टार के वेटर से पूछिए वो कहेगा रोज़ हज़ारो लोगो का खाना फेंक दिया जाता हैं ...............मध्य प्रदेश के भोपाल में आपको ऐसे कितने लोगो से मिलवाया जाए जो झूठन खाते हैं .........भोपाल सब्जी मंदी के पास एक महोदय नाली में से रोटी का टुकड़ा निकाल कर पेट की आग बुझाते हैं .........सुप्रीम कोर्ट ने तो सर्कार से आखिर कह ही दिया हैं कि अनाज अगर गोदाम में सड़ रहा हैं तो गरीबों को मुफ्त बांट क्यों नहीं देते ????????<br />
कैसी खंड खंड तस्वीर हो गयी मेरे अखंड भारत की .......................दोस्तों किन किन मसलों को याद करूँ ...........भोपाल गेस त्रासदी .............कितने ही भ्रष्ट एन जी ओ ने झूठी रिपोर्ट बनाकर लह्को कूट लिए लूट तंत्र में ............एक मंत्री भोपाल आकर कहते हैं ..........अब इतना असर बचा नहीं गेस के रासयनिक दुष्प्रभाव का ..............वो बदतमीज़ पिछले पच्चीस बरसों को तमाच्चा सा मार गया ..और हम सुनते रह गए लोकतंत्र में .............<br />
<div style="color: #4c1130;"><b>अमृता जी तहज़ीब बन कई मर्तबा कराह चुकी हैं .......ये दर्द गा चुकी हैं -</b></div><div style="color: #4c1130;"><br />
</div><div style="color: #4c1130;"><b>तूने ही दी थी जिन्दगी - ज़रा देख तो जानेज़हाँ ! </b></div><div style="color: #4c1130;"><b>तेरे नाम पर मिटने लगे - इल्मों-तहज़ीब के निशां,</b></div><div style="color: #4c1130;"><b>तशद्दुद की एक आग हैं - दिल में अगर जलायंगे, </b></div><b>सनम की ख्वाबगाह तो क्या - ख्वाब भी जल जायेंगे .<br />
</b>दरअसल आज़ हम अपनी सतही ज़रूरतों की खातिर अपने आप को खोते जा रहे हैं ...........आप पैसा कमायेये ........कार खरीदेये ,बेंक बेलेन्से बढ़ाये ,सीमेंट कांक्रीट के महल या जंगल में शेम्पेन उढ़ाये ..........पर हमारी प्रक्रति की गोद में बैठकर माँ दुर्गा के वाहन हमारे राष्ट्रिय पशु को मारने का अधिकार आपको किसने दिया ............मीट मार्केट में जाने के बजाए जंगल में प्यारे मासूम हिरनों पर फायर करना इतना सहज कैसे लगता हैं भला ...........अपनी कामशक्ति बढाने के लिए जानवरों को मारकर उनकी उनके अस्थि-पंज़रों को निगल जाना कितना हैवानियत भरा हैं ..........अरे काम तो जीवन का उत्सव हैं .धर्म अर्थ काम और मोक्ष ये तो जीवन के महान संकल्प हैं ...........आप उन सर्वोतम अन्तरंग पलों में भी जीवन और प्रक्रति के अपराधी क्यों कर बनना चाहते हैं ...........ऐसा कर आप अपने सम्पूर्ण वंश को ही कलंकित कर रहे होते हैं .............ऐ इंसान ज़रा इंसान बनकर दिखाओ थोड़ी कशिश हैं और हैं मोहोबत्त तुम मोहोबत्त से देखों किसी को कही भी ..........<br />
हिन्दुस्तान एक सतरंगी ग़ज़ल है दोस्तों ............गर हम मिलकर इसे गुनगुनाये तो .............ये हमारी तहज़ीब का नया वरक होगा जिसे हमें हर हाल में खोलना ही होगा ............क्या आज़ यह मुमकिन हैं कि लाहौर ,ढाका और नयी दिल्ली से विद्य्थियों का एक जत्था आतंकवाद के मसले पर एकजूट होकर शिध कार्य करे ..............दिल्ली के जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय की तर्ज़ पर पूरे राष्ट्र में नये सामयिक शोध पाठ्य क्रम संचालित किये जाए ,यहाँ के अखबार भारतीय उपमहादीप पर साप्ताहिक विशेष सामग्री प्रकशित करे .............भारतीय उपमहादीप अपनी एक स्वतंत्र विदेशी नीति तैयार कर गौरी चमड़ी वालो को उनकी सरहद और हद समझाए ,शाइनिंग इंडिया और दरिद्र भारत का फासला कम करने वास्ते विश्वविद्यालय के स्टुडेंट आगे आये .........कॉर्पोरेट सिर्फ कागज पर कॉर्पोरेट सोशल रेसपोंसबिलितिस न चलाये ..........हम पर्यावरण को हमारी गुड मोर्निंग में शामिल कर ले , .............एक लेख में तमाम बाते कह पाने की मेरी सामर्थ्य नहीं हैं ...........पर जो ज़रूरी हैं वह यह कि दुनिया के सबसे ज्यादा युवा शक्ति संपन्न मुल्क़ </div></div></div><span class="Apple-style-span" style="border-collapse: collapse; color: #500050; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;"><br />
</span><span class="Apple-style-span" style="border-collapse: collapse; color: #500050; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;"><br />
</span><span class="Apple-style-span" style="border-collapse: collapse; color: #500050; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;"><br />
</span><span class="Apple-style-span" style="border-collapse: collapse; color: #500050; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;"><br />
</span><span class="Apple-style-span" style="border-collapse: collapse; color: #500050; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;"><br />
</span><span class="Apple-style-span" style="border-collapse: collapse; color: #500050; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;"><br />
</span><span class="Apple-style-span" style="border-collapse: collapse; color: #500050; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;"><br />
</span><span class="Apple-style-span" style="border-collapse: collapse; color: #500050; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;">में अपनी सच्ची आज़ादी के लिए इंकलाब होना ही चाहिए ................आप सफलता-असफलता की फ़िक्र के करे ही क्यों .........शायर कह गया है</span><span class="Apple-style-span" style="border-collapse: collapse; color: #500050; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;"> </span><span class="Apple-style-span" style="border-collapse: collapse; color: #500050; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;"><br />
</span><span class="Apple-style-span" style="border-collapse: collapse; color: #500050; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;">.".गिरते हैं सहस्यार ही मैदान-ऐ-जंग में वो शख्स क्या गिरेंगे जो घुटनों के बल चले" ........अपने आपको आत्म केन्द्रित होने से बचाए ,अपने सपनों को परिवार की हद से ज़रा दूर तलक फैलने दीजिये कोई सपना टूट भी जाए तो गम कर महाकवि नीरज ने हमें सीखाया है ------" छुप-छुप अश्रू बहाने वालो जीवन व्यर्थ लूटने वालो कुछ सपनो के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता हैं ................"</span><span class="Apple-style-span" style="border-collapse: collapse; color: #500050; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;"><br />
</span><span class="Apple-style-span" style="border-collapse: collapse; color: #500050; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;">इस मुल्क़ को आपकी निहायत ज़रुरत हैं मित्रो ................आप ही अग्रिम पंक्ती हैं मेरे हिन्दुस्तान की ,</span><span class="Apple-style-span" style="border-collapse: collapse; color: #500050; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;"><br />
</span><span class="Apple-style-span" style="border-collapse: collapse; color: #500050; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;">राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' ने आपके लिए ही लिखा ............."इस पथ का उद्देश्य नहीं हैं शांत भुवन में टिक जान ,किन्तु पहुचना उस सीमा तक जिसके आगे राह नहीं हैं ..............."</span><span class="Apple-style-span" style="border-collapse: collapse; color: #500050; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;"><br />
</span><span class="Apple-style-span" style="border-collapse: collapse; color: #500050; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;">कविवर मेथ्लिशिशरण शरण गुप्त जी की अखंड भारत भारती आपको पुकारती हैं ............</span><span class="Apple-style-span" style="border-collapse: collapse; color: #500050; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;"><br />
</span><span class="Apple-style-span" style="border-collapse: collapse; color: #500050; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;">अपने राष्ट्र की पीड़ा को पहचानो मित्रों इस पीड़ा के हरण छरण के लिए आओ पुनः भारतीय एक्य का परचम लहराए ...............</span><span class="Apple-style-span" style="border-collapse: collapse; color: #500050; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;"><br />
</span><span class="Apple-style-span" style="border-collapse: collapse; color: #500050; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;">जिंदगी हैं चार दिन की ,और अब आई वतन की बात ............</span><span class="Apple-style-span" style="border-collapse: collapse; color: #500050; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;"><br />
</span><span class="Apple-style-span" style="border-collapse: collapse; color: #500050; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;">आजा मथ ले जिंदगी को ,और करे विषपान , </span><span class="Apple-style-span" style="border-collapse: collapse; color: #500050; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;"> </span><span class="Apple-style-span" style="border-collapse: collapse; color: #500050; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;"><br />
</span><span class="Apple-style-span" style="border-collapse: collapse; color: #500050; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;">जब घायल अंतर्मन भारत का तो कैसे अमृत पिए सुकरात ................</span><br />
<div><span class="Apple-style-span" style="border-collapse: collapse; color: #500050; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;"><br />
</span></div>आदित्य आफ़ताब "इश्क़" aditya aaftab 'ishq'http://www.blogger.com/profile/01695360902881473207noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-4563738692394252935.post-43045883332445895152010-08-15T06:50:00.000-04:002010-08-15T06:50:00.116-04:00क्या पाकिस्तान आज़ाद है ?????????१४ अगस्त <b>अखंड भारत के विघटन की तिरेसठ बरस पुरानी तारिख़ . ना ही पाक़िस्तान के उदय से उस वक़्त कोई ताज़्ज़ुब रहा और ना ही वर्तमान परिपेक्ष्य में हम यह उम्मीद करे कि भारत ,पुनः संगठित होकर एक अखंड राष्ट्र शक्ति बनेगा . बकौल ज़िन्ना भारत एक नहीं दो राष्ट्र हैं .गाँधी ने कप्तान नेहरु को बनाया और जिन्ना वेवफा हो गए </b><br />
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, ज़िन्ना की महत्वकांक्षा के ज्वर ने अलग मुल्क पाकिस्तान के राष्ट्रपति की कुर्सी का ख्वाब सजाया.ज़िन्ना जिंददी थे जो चाहा वह कर कर दिखाया . पंडित जी महान हैं और सत्ता पाकर और भी महान हो गए ......बस एक पाकिस्तान बनने से ज़िन्ना और नेहरु अपने-अपने मुल्क में महान हो गए .असंख्य दिल टूट गए .......कितने घर बर्बाद हुए, अपनी हीरों से रांझे दूर हुए , अंततः मुल्क की तकसीम हुयी.........और ज़िन्ना ने कहा ये रहा पाकिस्तान .........हमारा पाक़ पाकिस्तान ,मानो एक लकीर भर खींच देने से मुल्क का बंटवारा हो गया हो ................लाहोर ,करांची ,ढाका और रावलपिंडी को हिन्दुस्तान से पाक़िस्तान बनने में जो कत्लो खून हुआ उससे सत्ता के पैरोकारो ने यह सीखा की कितनी भी विषम स्थिती हो कुर्सी का मोह नहीं छोड़ना चाहिए ,संवेदना को ह्रदय से निकाल बाहर कर दो लक्ष्य की प्राप्ती अवश्य ही होती हैं ........ आज 63 बरस बाद क्या कोई सरकारी ,गैर सारकारी संसथान दोनों मुल्को को वापस एक हो जाने की कोशिश में नहीं दिखाई देता.........ये साज़िश हैं जो अनवरत ज़ारी हैं ........बांग्लादेश के निर्माण के बाद अब यह साजिश द्वपक्षीय नहीं रह गयी ..................यह सर्क्कारी भ्रष्टाचार की अंतररास्ट्रीय शक्ल हैं जिसे राष्ट्रिय स्तर पर पहचानकर हमें भारत ,पाकिस्तान और बांग्लादेश की सरकारों के खिलाफ मुहीम तेज़ करनी होगी.........साथ ही बराक ओबाम और उनके उतराधिकारियों को उनके मुल्क की सरहद और हद को समझना होगा . <br />
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पाक़िस्तान (१९४७ के पहले का हिन्दुस्तान)को बरगलाकर अमेरिका ना सिर्फ हिन्दुस्तान को उलझा रहा हैं बल्कि गहरे तौर पर एशिया के विकास को बाधित कर रहा हैं असल में यह उसकी मोनोपाली कायम रखने का गैर लोक्तान्तिक तरीका हैं .....आज पाक़िस्तान जल रहा हैं .........बारूद पर बैठे मुल्क को कैसे समझ आये के ज़म्हुरियत का विकल्प बन्दूक नहीं होती......इंसान चाहे किसी कौम का हो उसे जीने के लिए रोटी चाहिए ,रोटी के रोज़गार चाहिए और रोज़गार का बन्दूक से कोई ताल्लुक नहीं ...........जहाँ कुछ बदतमीज़ गुट बन्दूक के सहारे न्यायपालिका और मीडिया पर हावी हो जाए वहां अवाम अपने सपने नहीं बुन सकता ...........और जहाँ <br />
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ख्वाब नहीं बुने जाते वहां मोहोबत्त नहीं बस्ती ............इश्क़ नहीं फैलता .............बिना इश्क़ के इंसान इंसान नहीं कहलाता ............... पर <br />
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पकिस्तान में भी मोहोबत्त बस्ती हैं और हिन्दुस्तान भी ..................और नफरत का धंधा भी दोनों तरफ ज़ारी हैं और नफरत के उस कारोबार में जो सबसे बड़ी रूकावट हैं वह हैं अमन मोहोबत्त प्यार इश्क-विश्क ..................तो कोई भी कारोबारी अपने रस्ते में आने वाली रूकावटो को पहचानकर उन्हें सदा के लिए दूर कर देना चाहता हैं ...........और हमरे ये नेता भी ऐसे ही कारोबारी हैं................वो हमें नफरत का एक उत्पाद मान रहे हैं .........................क्या हम इश्क बाँट कर उनके उत्पादन में कमी नहीं करना चाहेगे....???????.........और अब सिर्फ नेता ही नहीं बहुत सी शक्तिया है जी इस साज़िश में शामिल हैं ....................हम प्यार बाटने वाले लोग हैं ................और पकिस्तान में प्यार की ही दरकार हैं ......................दरअसल जो मुल्क नफरत की बुनियाद में बना हो वहा अमन बेहद मुश्किल हैं लेकिन <br />
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हमें भूलना नहीं होगा जी ४७ के पहले पकिस्तान पकिस्तान नहीं था .........पकिस्तान पकिस्तान हैं क्योंकि हिन्दुस्तानियों ने गलती की और वह <br />
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जो भी था हिंदुस्तान था और जब आज पाकिस्तान जल रहा हैं ..................रोटी रोज़गार और मोहोबत्त मांग रहा हैं ..तो वहा की अवाम को यह बतलाना हमारे लिए ज़रूरी हो जाता हैं की आपके यहाँ लोकतंत्र नहीं हैं ऐसे में आप भले ही आज़ादी के गीत गाये कोई मायने नहीं .............लोकतंत्र बहाल <br />
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होगा आपके जागने से तो आइये हम मिलकर पहले जागरण का शंखनाद करे <br />
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.............यह कैसे संभव हैं हिंदुस्तान का एक भूभाग हिन्दुस्तान के खिलाफ आतंक हिंसा और नफरत का प्रायोजक बना हुआ हैं ??????? नफरत के सौदागरों ने इसे संभव बना दिया हैं ..........................और यह वहशीपन पिछले १०० सालो से अनवरत ज़ारी हैं .........आओ के आज पाकिस्तान के स्वाधीनता दिवस पर उम्मीद करे के नफरत का ये कारोबार ख़त्म हो ...............और हिन्दुस्तान वापस अखंड भारत बन सतरंगी मोहोबत्त का गीत गाये ........................आदित्य आफ़ताब "इश्क़" aditya aaftab 'ishq'http://www.blogger.com/profile/01695360902881473207noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-4563738692394252935.post-24517285600769104472010-07-07T02:42:00.000-04:002010-07-07T02:42:51.425-04:00..वज़ूद ............<div style="color: #6aa84f;"> मेरे अंतस की भ्रष्ट पाखण्ड प्रिय हरकतों ...............आदतों </div><div style="color: #6aa84f;"> ज़रा खुबसूरत ख़त लिखने की भी थोड़ी इज़ाज़त दो . </div><div style="color: #6aa84f;"> कि ज़रा ज़िक्र हो मेरी मोहोबत्त का ज़रा सा ,</div><div style="color: #6aa84f;">मेरे सारे दिन और सारी रात लील लो ...... मैं शपथपूर्वक कथन कहता हूँ मैं आजीवन भ्रष्टचार के व्यसन में लिप्त रहूगा ............</div><div style="color: #6aa84f;"> बस एक रात की इज़ाज़त दे दो ............सुबह ही वापसी करुगा .</div><div style="color: #6aa84f;">अपने सपने को एक निहायत ज़रूरी गर्भ में रोप आने के बाद ........................</div><div style="color: #6aa84f;"> </div><div style="color: #6aa84f;"> </div>आदित्य आफ़ताब "इश्क़" aditya aaftab 'ishq'http://www.blogger.com/profile/01695360902881473207noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4563738692394252935.post-25148418391190258662010-04-22T04:15:00.000-04:002010-04-22T04:15:29.983-04:00चेतना का अनुपात ........थोडा जीवन बाकी मृत्यु<div style="background-color: white; color: #93c47d;"><b>उखड़ा पौधा हरा भरा हैं ,</b></div><div style="background-color: white; color: #93c47d;"><b>एकाध दफ़ा तो मरकर देखों ,</b></div><div style="background-color: white; color: #93c47d;"><b>फूल खिला हैं कांटे भी हैं ,</b></div><div style="background-color: white; color: #93c47d;"><b>काँटों पर थोडा चलकर देखों ,</b></div><div style="background-color: white; color: #93c47d;"><b>मन मैला और हरामी ,मीरा की पायल पहन के देखों ,</b></div><div style="background-color: white; color: #93c47d;"><b>मन की आदत जलने कि हैं </b></div><div style="background-color: white; color: #93c47d;"><b>अपने अन्दर हवन जलाकर देखों ,</b></div><div style="background-color: white; color: #93c47d;"><b>जलती काया मातम जैसी ,</b></div><div style="background-color: white; color: #93c47d;"><b><span style="background-color: #a2c4c9; color: black;">ज़िस्म में रूह पिरोकर देखों ............</span><span style="color: black;">.....</span></b></div><div style="background-color: white; color: #93c47d;"> <b><br />
</b></div><div style="background-color: white; color: #93c47d;"> <b><br />
</b></div><div style="background-color: white; color: #93c47d;"> <b><br />
</b></div><div style="background-color: white; color: #93c47d;"><br />
</div><div style="background-color: white; color: #93c47d;"> <b><br />
</b></div><div style="background-color: white; color: #93c47d;"> <b><br />
</b></div><div style="background-color: white; color: #93c47d;"><b><br />
</b></div>आदित्य आफ़ताब "इश्क़" aditya aaftab 'ishq'http://www.blogger.com/profile/01695360902881473207noreply@blogger.com20tag:blogger.com,1999:blog-4563738692394252935.post-47537374941353080522010-04-17T02:17:00.000-04:002010-04-17T02:17:04.655-04:00हथेली में दंतेवाडा<span style="font-size: large;"><b>हथेली की लकीरें गुस्से से उबल रही हैं ............</b></span><br />
<span style="font-size: large;"><b>बेशक इनमें कहीं किसी </b>दंतेवाडा<b> का ज़िक्र छुपा हुआ हैं ..........</b></span><br />
<span style="font-size: large;"><b>साँसों के साथ अब हथेली भी सुलगती हैं ,</b></span><br />
<span style="font-size: large;"><b>और सुलगती हुयी कोई भी हथेली कभी सामान्य नहीं रह पाती ..........</b></span><br />
<span style="font-size: large;"><b>सोचता हूँ किसी आदिवासी कि ऐसे ही सुलगती हथेली बन्दूक पकड़ लेती हैं ..................</b></span><br />
<span style="font-size: large;"><b><br />
</b></span><br />
<span style="font-size: large;"><b><br />
</b></span><br />
<span style="font-size: large;"><b><br />
</b></span><br />
<span style="font-size: large;"><b> </b></span><br />
<span style="font-size: large;"><b><br />
</b></span><br />
<span style="font-size: large;"><b><br />
</b></span><br />
<span style="font-size: large;"><b><br />
</b></span><br />
<span style="font-size: large;"><b><br />
</b></span><br />
<span style="font-size: large;"><b> </b></span><br />
<span style="font-size: large;"><b><br />
</b></span><br />
<span style="font-size: large;"><b><br />
</b></span>आदित्य आफ़ताब "इश्क़" aditya aaftab 'ishq'http://www.blogger.com/profile/01695360902881473207noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-4563738692394252935.post-44804519834368640952010-04-13T03:45:00.001-04:002010-04-13T03:47:18.803-04:00तू ..............<div style="color: #274e13;"><b><span style="color: #6fa8dc;">मेरा इश्क़ तेरी ज़ुल्फ़ में कहीं उलझा हैं जानम</span> ,</b></div><div style="color: #e69138;"><b>छत पर आ जाओ ,ज़रा अपनी जुल्फ़े संवार लो ,</b></div><div style="color: #274e13;"><b><span style="color: #cfe2f3;"><span style="color: #674ea7;">कि फ़लक पर फिर कोई ग़ज़ल होगी ..................</span>..</span><span style="background-color: cyan;"></span> </b></div><div style="color: #274e13;"><b><br />
</b></div><b><br />
</b>आदित्य आफ़ताब "इश्क़" aditya aaftab 'ishq'http://www.blogger.com/profile/01695360902881473207noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-4563738692394252935.post-88496357320541311012010-04-12T08:50:00.000-04:002010-04-12T08:50:43.735-04:00...............के आप मुझे कुबूल करों<div style="background-color: lime; color: black;"><style>
</style><b> </b></div><div style="background-color: lime; color: black;"><style>
</style><b> </b><style>
</style></div><div style="color: #0b5394;"><b>अलाल्ह ! आज़ में फिर से अपनी ज़मीं पर खड़ा हूँ .....................</b></div><div style="color: #8e7cc3;"><span style="color: #0b5394;"><b>मेरे दोस्त मुझे युहीं संभाले रखना ........</b>.............</span>.. </div><div style="color: #8e7cc3;"><style>
</style><div><b><span style="font-size: large;">अ</span>मृता जी मुझे माफ़ कर दो ...................बड़ा ही बदतमीज़ बच्चा हूँ तुम्हारा <span style="font-size: x-large;"><span style="font-family: "Courier New",Courier,monospace;">माँ .</span></span>........</b>.............</div> </div>आदित्य आफ़ताब "इश्क़" aditya aaftab 'ishq'http://www.blogger.com/profile/01695360902881473207noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-4563738692394252935.post-56329101864267314422009-09-23T03:19:00.000-04:002009-09-23T03:19:58.044-04:00आज दर्पण साह "दर्शन" का जन्म-दिन हैं ................ और मेरी कल्पना का बड़ा दिन हैं ............दिन और रात बराबर ............23 september<div style="color: #0c343d;"><b>मिट्टी के दीपक में तारों का सजना ,</b><br />
</div><div style="color: #674ea7;"><b>धरती के ख्वाबों का बादल बन उड़ना ,</b><br />
</div><div style="color: #38761d;"><b>हवाओं में आंधी की ताकत का होना ,</b><br />
</div><div style="color: #4c1130;"><b>तूफानों का मेरे घर में आकर के रुकना ,</b><br />
</div><div style="color: #274e13;"><b>आगन में तुलसी का पौधा लगा हैं ,</b><br />
</div><div style="color: red;"><b>मेरी माँ का हर रोज़ सज़दे में रहना ,</b><br />
</div><div style="color: #7f6000;"><b>सुबह-शाम मोहोबत्त का कलमा यूँ पढना ,</b><br />
</div><div style="color: #e69138;"><b>मेरे घर की दीवारे जड़वत नहीं हैं ,</b><br />
</div><div style="color: #660000;"><b>वो हिलती हैं लेकिन गिरती नहीं हैं ,</b><br />
</div><div style="color: #20124d;"><b>टकरा कर मुझसे एक दीवार बोली -तूफ़ान से कह दो वो आये संभल कर ,</b><br />
</div><div style="color: #073763;"><b>टूटे हैं सपने कई बार लेकिन, आँखों में आँसूं ठहरते नहीं हैं ,</b><br />
</div><div style="color: black;"><b>मोहोबत्त की मर्जी हैं काँटों पर चलना ,</b><br />
</div><div style="color: magenta;"><b>वफाओं का दिल में अहसास लेकर ,</b><br />
</div><div style="color: #134f5c;"><b>कई दोस्त मिलते हैं ,मिलकर बिछड़ते ,मिलना-बिछड़ना वफ़ा के किनारे ,</b><br />
</div><div style="color: #990000;"><b>वफ़ा एक नदी हैं जो बहती ही जाती ,</b><br />
</div><b><span style="color: #f6b26b;">कोई दोस्त आता हैं अपना सा बनकर सज़दे में मैं हूँ और कलम की मोहोबत्त </span>,</b><br />
<div style="color: #741b47;"><b>कागज़ पर चलती हैं अहसास बनकर ,</b><br />
</div><b><span style="color: purple;">दिल में उतरती हैं कोई ख्वाब बनकर ,...........................</span>.......</b><br />
<br />
<b><span style="color: red;">और आज मेरे दोस्त दर्पण का जन्म दिन हैं ....</span>............</b><br />
<div style="color: orange;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi0jqKliKcC6EzOY_deuMlChcYlqZkPluiHzzbqHzPSNIcAq1X-DpfrhzCj6xxNQMIY99I1V14GyDmHzTQbl8dZIhB9v-emoeVTpg9PHP9Ze1jOT92eSets9r5yzkZsRCMaCbfXf-HdhzI/s1600-h/Darpan+Photo.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi0jqKliKcC6EzOY_deuMlChcYlqZkPluiHzzbqHzPSNIcAq1X-DpfrhzCj6xxNQMIY99I1V14GyDmHzTQbl8dZIhB9v-emoeVTpg9PHP9Ze1jOT92eSets9r5yzkZsRCMaCbfXf-HdhzI/s200/Darpan+Photo.jpg" /></a><b>ख्वाबों की दुनिया में हकीक़त हैं "दर्शन", </b><br />
</div><b style="color: red;">हम सब जिसे कहते हैं दर्पण साह "दर्शन"............. </b><br />
<b style="color: red;"> </b><br />
<b style="color: red;"> </b><br />
<b style="color: red;"> </b><br />
<b style="color: red;">सलाम दोस्त मैं रूठ ही गया होता तेरे अचानक से 23 september ka equinox बता देने पर ....................पर वफ़ा की नदी में बहकर पहुँच रह हूँ प्राची के पार </b>......................निसंदेह हर स्वस्थ्य रचना शील समाज को आलोचना की आवशकता होती ही हैं ...............इसी क्रम मैं मैं चाहूँगा तुम्हारा आलोचक भी बनूँ ,...........................सारथी को अचानक से बताओगे कि आज <b style="color: red;">23 september हैं</b> तो रथ थोडा बहुत हलचल करेगा ही हलाकि होगा कुछ भी नहीं मैंने कहा न ,मेरे घर की दीवारे हिलती हैं लेकिन ढहती नहीं ...............मोहोबत्त,मित्रता ...........कभी ढह भी नहीं सकती ................... ढह गयी तो कुछ था ही नहीं .............ढकोसला था .........और मित्र मैं ढकोसला ,नहीं तुम्हारा मित्र होना चाहता हूँ .................मुंशी प्रेम चन्द्र कह गए हैं - प्रेम गहरा होता हैं ,मित्रता और भी गहरी ......................इसीलिए कहते नहीं हैं ?.............. माँ-बाप बेटी-बेटे ...............को सिर्फ़ बेटा बेटी माँ बाप ही नहीं दोस्त भी होना चाहिय ................दांपत्य तो बिना मित्रता के ढकोसला ही हैं .....<b>.<span style="color: lime;">मित्रता तो इंसानों का विशेषाधिकार हैं</span> </b>............ .....<b style="color: red;">..सो जन्म दिन के साथ मित्रता मुबारक ..............</b><b style="color: red;"> </b>आदित्य आफ़ताब "इश्क़" aditya aaftab 'ishq'http://www.blogger.com/profile/01695360902881473207noreply@blogger.com20tag:blogger.com,1999:blog-4563738692394252935.post-84067437213286592362009-09-18T21:56:00.000-04:002009-09-18T21:56:20.352-04:00सुलगती आँच हैं लेकिन ................<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhRl2Cqp8x0zR_fNl-3kZS4L62oUhHny65NJIikG4E9lSbJNnN0xOgd9ptmB1G1vhDs0bkM4_9_LxOrkSLw-uAedQ35wRqFl2TA7FdFy1YRa9HI1sYgsx6HTPD2fEFuNstSMvkPcnoDJWA/s1600-h/amreeta-2.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhRl2Cqp8x0zR_fNl-3kZS4L62oUhHny65NJIikG4E9lSbJNnN0xOgd9ptmB1G1vhDs0bkM4_9_LxOrkSLw-uAedQ35wRqFl2TA7FdFy1YRa9HI1sYgsx6HTPD2fEFuNstSMvkPcnoDJWA/s320/amreeta-2.jpg" /></a><span style="color: red;"><b><span style="background-color: #f4cccc; font-size: large;"><span style="font-family: "Courier New",Courier,monospace;"><span style="color: magenta;"> जिन्दगी,दर्द ..और किताब </span></span></span> <br />
</b></span><br />
<br />
<span style="color: red;"><b>दोस्तों मेरे सपने में बहुत अन्दर ,गहरे में कोई एक किताब हैं ३६५-३६६ पेज़ वाली , </b></span><br />
<span style="color: red;"><b>बारह या तेरह खंड हैं उसमें ,</b></span><br />
<span style="color: red;"><b>हर एक खंड में कोई तीस-एकतीस घटनाएँ .......</b></span><br />
<span style="color: red;"><b>उन सभी घटनाओं के पास अपनी पूरी रात है और हैं पूरा दिन .</b></span><br />
<span style="color: red;"><b>माँ अमृता प्रीतम का ज़िक्र हर रात-दिन सुबह और शाम में हैं</b> </span>.शायद यही किताब मेरी जिन्दगी हैं<br />
और मेरी इस जिन्दगी का मकसद अमृता प्रीतम के साहित्य का मिशनरी बन कर पूरी कायनात के कण-कण में पहुचना हैं , यह सब क्यों-कैसे-किस तरह मुमकिन होगा -नहीं जानता ,पर इतना सा अहसास हैं कि<br />
<b style="color: lime;"> अमृता जी का पूरा का पूरा लेखन खालिस इश्क़ हैं और अगर पूरी दुनिया इश्क़ से सरोबार हो जायेगी तो देश-दुनिया की तमाम तह्ज़ीबो पर इश्क़ की हरी पत्तियाँ लहराएगी - </b><br />
<br />
हरी पत्ती से याद आया २८ नम्बर १९९० को एक सेमीनार "पीस थ्रू कल्चर"विषय पर अमृता जी की तक़रीर को इमरोज़ साहब ने <b><span style="color: #274e13;">मन-मंथन की गाथा पुस्तक में तहज़ीब की हरी पत्तियाँ शीर्षक से संकलित-प्रकाशित किया हैं</span></b> .<br />
और बात जब तहज़ीब-तमीज़-संस्कृति की होती हैं मेरे ज़हन में आग-अंगारे और आक्रोश मेरी रूह को सुलगाने लगते हैं<br />
मेरी आत्मा अग्नि बन जलने-तपने ,लपटें मारने लगती हैं ,<br />
यह अग्नि कभी कलम पकड़ लेती हैं तो कभी किसी किताब में जाकर हमारी संस्कृति की गंगा में स्नान कर शांति-शांति-शांति तलाशती तहज़ीब की पत्तियों को सूखा हुआ देखकर फिर से अशांत हो उठती हैं .................धधकती रूह जिन्दगी की चादर को समेटती हैं और चादर जलती जाती हैं .............<br />
<div style="color: #4c1130;"><b>अमृता जी तहज़ीब बन कई मर्तबा कराह चुकी हैं .......ये दर्द गा चुकी हैं -</b><br />
</div><div style="color: #4c1130;"><br />
</div><div style="color: #4c1130;"><b>तूने ही दी थी जिन्दगी - ज़रा देख तो जानेज़हाँ ! </b><br />
</div><div style="color: #4c1130;"><b>तेरे नाम पर मिटने लगे - इल्मों-तहज़ीब के निशां,</b><br />
</div><div style="color: #4c1130;"><b> तशद्दुद की एक आग हैं - दिल में अगर जलायंगे, </b><br />
</div><div style="color: #4c1130;"><b>सनम की ख्वाबगाह तो क्या - ख्वाब भी जल जायेंगे .</b><br />
</div><div style="color: #4c1130;"><b> <span style="font-size: x-large;"> <span style="color: #38761d;"> </span></span><span style="color: black;"><span style="font-size: x-large;"><span style="color: #38761d;">...........................तहज़ीब का बीज </span> </span> </span> <br />
</b><br />
</div><div style="color: #4c1130;"><br />
</div>अमृता जी का ही चिंतन हैं और वे हमारा आव्हान करती हैं -दोस्तों हकीक़त हैं की इंसान को छाती में चेतना का बीज पनप जाए तो उसी से तहज़ीब की हरी पत्तियाँ लहराती हैं और उसी की शाखाओं पर अमन का बौर पड़ता हैं ...........तहज़ीब और अमन की बात पर में आप सब को मुबारकबाद देती हूँ ....................हमारे मिथहास (पुराणशास्त्र) में एक कहानी कही जाती हैं की आदि शक्ति ने जब सारे देवता बना लिए ,तो उन्हें धरती पर भेज दिया .देवता धरती पर जंगलों और बीहडों में घूमते रहे और फिर थककर आदि-शक्ति के पास लौट गए . कहने लगे -"वहां न रहने की ज़गह .न कुछ खाने को हम वहां नहीं रहेंगे ."कहते हैं उस वक़्त आदि-शक्ति ने धरती की और देखा ,इंसान की और .और कहा -"देखों ! मैंने इंसान को संकल्प की माटी से बनाया हैं. जाओ उसकी काया में अपने-अपने रहने की ज़गह पा लो ." आदि-शक्ति का आदेश पाकर वे देवता फिर धरती पर आये और सूरज देवता ने इंसान की आँखों में प्रवेश कर लिया ,वायु देवता ने उसके प्राणों में ,अग्नि देवता ने उसकी वाणी में ,मंगल देवता ने उसकी बाहों में , ब्रहस्पति देवता ने उसके रोम-रोम में अपने रहने की ज़गह बना ली और चन्द्र देवता ने इंसान के दिल में अपने रहने का स्थान खोज लिया............ अमृता जी आगे समझाती हैं इन्सान का कर्म और चिन्तन इन सभी देवताओं की भूख को मिटाता हैं ,लेकिन जब इन्सान के अन्दर चिन्तन खो जाता हैं ,कर्म मर जाता हैं ,चेतना का बीज ही नहीं पनपता ,तो यह देवता भूख से व्याकुल होकर मूर्छित से पड़े रहते हैं ................हमारी चेतना ही इन देवताओं का भोजन हैं ,जो देवता ,जो कास्मिक शक्तियाँ हमारे सबके भीतर मूर्छित पड़ी हैं - और उनकी याद हमसे खो गयी ,जिन्हें हम भूल गए यह उसी का तकाज़ा हैं कि कभी-कभी एक स्मरण सा हमारे ज़हन में सुलगता हैं ,हमारी छाती में एक कम्पन कि तरह उतरता हैं और कभी-कभी हमारे होंठों दे एक चीख कि तरह निकलता हैं ................................<br />
और मेरा ख्याल हैं जब-जब यह चीख मेरे अंतस से निकलती हैं ...............मैं कहता हूँ .........मेरी संवेदना-चेतना-आत्मा की चीख-पुकार .............मेरी त्रयी माँ अमृता - मेरी आत्मा-चेतना-संवेदना .....................आज मेरी यह चीख हमारी तहज़ीब कि हरी पत्तियों कि खातिर अन्दर तक लहुलुहान कर गयी ................<br />
<span style="font-size: x-large;"><b style="color: #4c1130;">ये चीख ये पुकार</b> ........................................................</span><br />
<br />
<div style="color: #660000;"><b>ओ खुदा तेरे सज़दे में मेरी रूह घायल हुयी, </b><br />
</div><div style="color: #660000;"><b>पत्थरों का देवता फिर भी अब खामोश हैं ,</b><br />
</div><div style="color: #660000;"><b>चारों और हैं अँधेरा, तेरे बन्दे ही शैतान हैं ,</b><br />
</div><div style="color: #660000;"><b>हर एक रूह कि हैं ये दास्ताँ -सब ज़ीते ज़ी ही मर गये, </b><br />
</div><div style="color: #660000;"><b>चैन आयेगा मुझे कि कब्र भी खामोश हैं ,</b><br />
</div><div style="color: #660000;"><b>जिन्दगी के मायने अब कब्र में दफ़न हुये ,</b><br />
</div><div style="color: #660000;"><b>सो रहा हैं ज़हां ,और बुत बना हैं देवता ,</b><br />
</div><div style="color: #660000;"><b>खून से सना हुआ कोई ज़िस्म ढूंढ़ लीजिये ,</b><br />
</div><div style="color: #660000;"><b>जिन्दगी कि नस्ल की नब्ज़ को टटोलिये ,</b><br />
</div><div style="color: #660000;"><b>मिट गया हैं ज़िस्म पर ज़ी-जान से पुकारिये,</b><br />
</div><div style="color: #660000;"><b> उस खुदा के पास में मेरी रूह उधार हैं ,</b><br />
</div><div style="color: #660000;"><b>पत्थरों में देवता और ज़िस्म में अब जान हैं</b><br />
</div><div style="color: #660000;"><b> एतबार हैं मुझे कि "इश्क़" ज़िन्दा ही रहेगा ,</b><br />
</div><b style="color: #660000;">मेरे अन्दर झाँककर मेरी रूह को तलाशिये ....................</b>. <br />
<br />
दोस्तों ये चीख, ये पुकार ,फिरकापरस्ती और शैतानियत के खिलाफ़ अंतस में धधकते आग-अंगारे और आक्रोश चेतना का वरदान हैं ...........तहज़ीब के पत्ते सदा हरे-भरे लहराते रहे ..........आइये इसके लिए अमृता प्रीतम के चिन्तन को बीज कि तरह छाती में बो ले और उसे पनपाने के लिए नफ़रत ,तशद्दुद,,और क्रिध कि बजाए सिर्फ़ और सिर्फ़ इश्क़ मंत्र का पाठ करे<br />
<br />
<div style="color: #674ea7; font-family: "Courier New",Courier,monospace;"><b><span style="font-size: x-large;">रुक गए हैं रास्ते .............सस्ती हो गयी मंजिले </span><br />
</b> <br />
</div><div style="color: #674ea7; font-family: "Courier New",Courier,monospace;"><br />
</div>.........................अमृता जी अगाह करती हैं - तहज़ीब लफ्ज़ को हम बड़ी आसानी से इस्तेमाल कर लेते हैं .,और चार दीवारियों में कैद कर देते हैं ,हम अपने घर की , अपने मज़हब की,अपने स्कूल और कॉलेज की कबिलियायी सोच को ,किसी संस्था कि चेतना को ,हमारे संस्कारों कि संस्कारित चेतना को तहज़ीब का नाम दे देते हैं ........ लेकिन तहज़ीब ,संस्कृति के अर्थ इन सीमाओं से कही बड़े होते हैं , - लियाकत,काबिलियत, तरबियत, और इंसानियत के अर्थों में जब तहज़ीब खिलती हैं तो वह कायनात कि मज़्मूई चेतना ,सम्पूर्ण चेतना में तरंगीत होती हैं -उस तहज़ीब में "मैं" लफ्ज़ कि पहचान भी बनी रहती हैं ,और "हम"लफ्ज़ भी नुमायाँ होता हैं - और फिर : -<br />
<div style="color: #7f6000;"> <b>किसी वाद या एतकाद के नाम पर - </b><br />
</div><div style="color: #7f6000;"><b>किसी भी तरह का तशद्दुद मुमकिन नहीं रहता .</b><br />
</div><div style="color: #7f6000;"><b>किसी भी मज़हब के नाम पर कोई कत्लोखून हो नहीं सकता ,</b><br />
</div><b style="color: yellow;"><span style="color: #7f6000;">और किसी भी सियासत के हाथ जंग के हथियारों को पकड़ नहीं सकते ...</span>.</b>.....<br />
<span style="font-size: x-large;"><b style="color: #a64d79;">............और थोडा सा विज्ञानं </b></span> <br />
<br />
हमारी संस्कृति ,तहज़ीब ,निसंदेह वैज्ञानिक हैं ,<br />
अमृता जी इसके विज्ञानं को ज़रा सा ज़हन में उतार लेने कि बात कर रही हैं -<br />
एक साइंसदान हुये - लैथब्रिज़ .<br />
उन्होंने ज़मीदोज़ शक्तियों का पता पाने के लिए जो पेंडुलम तैयार किया ,<br />
उससे बरसो कि मेहनत के बाद जान पाए कि महज़ चांदी,सोना , सिक्का, जैसी धातुओं का पता नहीं चलता ,<br />
इंसानी अहसास का भी पता लगाया जा सकता हैं ,<br />
<b style="color: red;">लेथब्रिज ने बताया कि -दस इंच के फासले से रौशनी का ,सच्चाई का ,लाल रंग का और पूर्व दिशा का पता मिलता हैं</b> ,<br />
<b style="color: cyan;">बीस इंच के फासले से जिन्दगी का ,गर्माइश का ,सफ़ेद रंग का और दक्षिण दिशा का पता मिलता हैं </b><span style="color: cyan;">.,</span><br />
<span style="color: cyan;"> </span><b><span style="color: lime;">तीस इंच के फासले से आवाज़ का ,पानी का ,चाँद का ,हरे रंग का और पश्चिम दिशा का पता मिलता हैं ,</span></b><br />
<b style="background-color: white; color: #4c1130;">और चालीस इंच के फासले से मौत का ,झूठ का ,स्याह रंग और उत्तर दिशा का पता मिलता हैं .</b><br />
उन्होंने ऐसे पत्थरों का मुआयना किया जो दो हज़ार साल पहले जंग में इस्तेमाल हुये थे तो पाया कि उन पर वह रेखाए अंकित हो चुकी हैं जो हजार साल के बाद भी इन्सान के क्रिध और तशद्दुद का पता देती थी .<br />
<div style="color: #45818e;"><b>वह नदियों के साधारण पत्थर उठा कर लाये और पाया कि इन मासूम पत्थरों पर ऐसी कोई रेखा नहीं थी</b> ....................<b style="color: black;">कहते हैं -एक बार चारो तरफ फैले हुये तशद्दुद से फिक्रमंद होकर कुछ लोग<span style="color: #6aa84f;"> </span></b><b style="color: #6aa84f;">मीर दाद</b><b style="color: black;"> के पास गये - <span style="background-color: #d9d2e9;">एक सूफी दरवेश के पास - कहने लगे "साहिबे आलम </span>! यह सब क्या हो रहा हैं हमने तो सोचा था इन्सान <span style="color: lime;">तहज़ीबयाफ्ता </span>हो चूका हैं</b><span style="color: black;"> ............. </span>उस वक़्त <b style="color: red;">मीर दाद</b> कहने लगे -<br />
</div><div style="color: #45818e;"><b style="color: #0c343d;">"किस तहज़ीब की बात करते हो ? यह सवाल तो हवा से पूछना होगा .जिसमे हम सांस लेते हैं और जो हमारे ही खयालो के ज़हर से भरी हुयी हैं - सत्ता कि हवस से ,नफ़रत से ,इंतकाम से .</b>..........<b style="color: #cc0000;">"बकोल अमृता जी </b>:-<br />
</div><div style="background-color: white; color: #674ea7;"><b>काया का जन्म माँ की कोख से होता हैं ,</b><br />
</div><div style="background-color: white; color: #674ea7;"><b>दिल का जन्म अहसास कि कोख से होता हैं </b><br />
</div><div style="background-color: white; color: #674ea7;"><b>,मस्तिष्क का जन्म इल्म कि कोख से होता हैं ,</b><br />
</div><div style="background-color: white; color: #674ea7;"><b>और जिस तहज़ीब कि शाखाओं पर अमन का बौर पड़ता हैं ,उस तहज़ीब का जन्म अंतर्चेतना कि कोख से होता हैं ..........</b>..<br />
</div>आदित्य आफ़ताब "इश्क़" aditya aaftab 'ishq'http://www.blogger.com/profile/01695360902881473207noreply@blogger.com16tag:blogger.com,1999:blog-4563738692394252935.post-73970860559102526932009-09-17T03:18:00.000-04:002009-09-17T03:18:47.332-04:00आग, अंगारे ..........और आक्रोश<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEisJEP20cLwJZmXsJ85eIeax7uUTRgjVMaToLyFpNKLkpCF97hflx_vvBdpkPEkkX0r4k2Olt0BWiQ9FqdloAkrLkDLCMsJoDxwprl4LRrOzx-zlbtli8YuZm50c4dpYXdAB9dkC7mi-yI/s1600-h/amrita-pritam1.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEisJEP20cLwJZmXsJ85eIeax7uUTRgjVMaToLyFpNKLkpCF97hflx_vvBdpkPEkkX0r4k2Olt0BWiQ9FqdloAkrLkDLCMsJoDxwprl4LRrOzx-zlbtli8YuZm50c4dpYXdAB9dkC7mi-yI/s320/amrita-pritam1.jpg" /></a></div><b style="color: #9fc5e8;"><span style="background-color: #d9ead3;">अमृता प्रीतम</span> </b>वर्ष-पर्व में हम सभी का स्वागत हैं . दोनो कान पकड़कर माफ़ी माँगता हूँ - ब्लॉग-लेखन का कुछ नियम तो होना ही चाहिए . ओर ऐसी कोई मज़बूरी या बहाना नही सुनाना चाहिए जिसे आगे कर हम पीछे से बचकर निकल जाए -पर साथ ही सभी ब्लॉगर साथियों को मेरे जैसे होनहार बेरोज़गार अनाड़ी को एक बारगी तो माफ़ ज़रूर ही कर देना चाहिए -ओर फिर मैं वैसे भी योग्यता में तो सबसे छोटा ही हूँ ओर फिर बड़ों की माफी पर छोटो का अधिकार सदियों से रहा हैं -चलिए माफ़ी तो मिल ही गयी बचपन में ईसी तरह पापा माफ़ी के साथ टाफी भी दिया करते थे ..........पिछले पंद्रह दिनों के वनवास में मैने सेविंग भी अभी बनाई हैं -इस दरमियाँ जिसने भी पूछा ,किसी शायर <br />
का ये हुकम उसे सुना दिया-"मेरे चेहरे पर दाड़ी के इज़ाफ़े को ना देख ,ख़त के मज़मून को पढ़ लिफ़ाफ़े को न देख"<br />
हुआ यूँ की ख़त और ख़त के मज़मून के साथ कारपोरेट जगत के गलियारे से मुझ बेरोज़गार मज़नू को अपनी लैला रूपी एक अदद नौकरी से मिलने से पहले ही धक्के मार-मार कर निकाल दिया गया - मुझको सज़ा दी दाड़ी की ऐसा क्या गुनाह किया ...........बेरोज़गार रहे हम दाड़ी के इज़ाफ़े में ........................ओ माय गोड -------------- जब पोस्ट लिखने बैठा था तो अंगारे और आक्रोश ही लिखने लायक ही था ..........पर ब्लॉग पर आते ही अमृता प्रीतम वर्ष-पर्व और आप सब का ख्याल हो आया ............और माफ़ी के साथ थोडा मज़ाकिया हो लिया ................खैर जो आक्रोश और अंगारे मेरे ज़हन में हैं दरअसल हम सभी से उनका बहुत गहरा इत्तेफ़ाक हैं .और हमारी अमृता जी ने वह दुःख लिखा ही नहीं जिया हैं ..............असल में अमृता प्रीतम ने जो कुछ भी ज़िया हैं वही उनकी कलम का इश्क़ बनकर हम सबों को नसीब हुआ हैं -उनके लेखन में कौरी बोध्धिकता को कोई ज़गह नहीं हैं -उनका हर अक्षर अहसास का कोई रूहानी शिफ़ा हैं जो असल में हम दिल लगा बैठे दिल के रोगियों का एकमात्र इलाज हैं -<span style="color: red;">"शुक्रिया अमृता जी -वरना हम लाइलाज़ रह जाते" .</span> अमृता प्रीतम वर्ष-पर्व ऐसी अनवरत शुक्रिया अदायगी के साथ ही ज़िया जायेगा .............इस पूरे वर्ष-पर्व में अमृता जी के विषय में सिर्फ़ चर्चा ही नहीं होगी बल्कि देश-दुनिया के लिए उनका जो नज़रिया हैं उनसे जुडी तमाम बाते और आज के हिन्दुस्तान की जाँच-पड़ताल करते चलेंगे . हर किस्म के इंसानी हालातो को उन्होंने बड़ी शिद्दत के साथ ज़िया और लिखा ..............यह वर्ष पर्व अमृता जी को सदा के लिए ख्याल और आत्मा में बसाने के लिए हैं अपनी जिंदगी के हर पल में उन्हें महसूस करने के लिए ............समाज में होती हर अच्छी बुरी बात पर अमृता प्रीतम का नज़रिया क्या-कुछ होता और मोहोब्बत्त को दिल में बसा कर हमारा कर्म क्या होना चाहिए -मैं जो भी टूटी-फूटी रचनाएँ और अपने ख्याल, इस पावन वर्ष-पर्व पर आपकी खिदमत में पेश करूँगा आप कठोरता से उनका आकलन कीजिये - मेरी रचनाओं पर आपकी आलोचना मेरा सोभाग्य हैं ,मुझे मेरे सोभाग्य से वंचित न करे ऐसा मेरा आप सभी से निवेदन हैं . <script>
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D(["mb","\u003cbr\u003e\nप्रशंशा के साथ ही आपकी आलोचनात्मक द्रष्टि मेरे स्वयं के विकास-क्रम हेतु बहुत ज़रूरी हैं अतः मुझे अपनी अंतर्द्रष्टि ke चेतना-लोक का हमसफ़र बना लीजिये ,अभी भले ही ना होऊं ,साथ चलते-चलते आपकी संगत में आपके योग्य हो सकूगा ..............................\u003c/p\u003e\n\n\u003cp\u003eकल मेरे घर के सामने जो वाकया हुआ आज तक आग-अंगारे और आक्रोश मेरे ज़हन में ताजा हैं ,आर एस एस ने रात भर हिन्दुओं को उकसाने की कोशिश की - यह कितनी सफल और असफल रही मैं नहीं जानता पर इतना मालूम हैं बाजू वाली मुस्लिम बस्ती बहुत हद तक परेशान हैं .............नफ़रत दोनों तरफ हैं मोहोबत्त की दरकार हैं ..........अगर यह दोनों तरफ़ एक होकर हिन्दू-मुसलमान से जुदा होकर इंसान बन जाए तो कुदरत ही मोब्बत्त सिखला देगी हमें ...........फिरकापरस्ती ,कट्टरता से तो सब तवाह हो रहा हैं ,और पूरी तरह हो जाएगा ................नित नए विकास के सोपान चड़ते हम अपनी ही विकसित तहज़ीब को भूल बैठे हैं ,और जब भूल गए हैं तो याद क्यों नहीं करते .............दुबारा उसका विकास क्यों नहीं करते ............... हमें इतनी नफ़रत क्यों रास आ रही हैं .......\u003cbr\u003e\nइस नफ़रत ने मेरे अन्दर अंगारे - आक्रोश और अगीठी का इंतज़ाम कर दिया ............तमाम फिरकापरस्ती आवाज़ों के बीच मेरी तरुणाई जाने कहाँ खो गयी ............... लगातार तीन घंटे तक मुल्क़ की तहज़ीब- तमीज़ को नोचते -खसोटते रहे तथाकथित धर्मों के ठेकेदार और मैं घर का नपुंसक बन गया क्यों ? क्यों? आखिर क्यों? ,\u003c/p\u003e\n\n\u003cp\u003e\u003cfont color\u003d\"#663366\"\u003eजल गया हूँ सीने में आग तो लगी नहीं ,\u003cbr\u003eहिन्दुओं और मुस्लिमों की साख तो गिरी नहीं ,\u003cbr\u003eनष्ट-भ्रष्ट हो गया मैं ,मज़हब सारे जल ह ,\u003cbr\u003eमौन व्रत धारण किया असाध्य रोग से बंधा ,\u003cbr\u003eकैसे बोलूं इन्कलाब कौम से डरा हुआ मैं नपुंसक हो गया ,\u003cbr\u003e\nजल\u003cbr\u003e रहा इंसान हैं ना हिन्दू हैं ना मुसलमान हैं ,\u003cbr\u003eवेग से थका हुआ ,चारों और देखकर आँख मीच सो गया मैं नपुंसक हो गया ,\u003cbr\u003eजल रहा हूँ सीने में आग क्यों लगी नहीं पर ?,\u003cbr\u003eआग को मैं देखता ,देखता ही रह गया ...................मैं नपुंसक हो गया ......\u003cbr\u003e\nना हिन्दू हूँ ना मुसलमान हूँ ,फिर क्यों अपराधी हो गया ......,\u003cbr\u003eजल गया हूँ सीने में पर ज़ख्म ही नहीं हुआ .................हाँ मैं नपुंसक हो गया ..,\u003cbr\u003eइंसान सारे जल गए ,धर्म शेष रह गए ,धर्म का करोगे क्या ?,\u003cbr\u003eसब नपुंसक हो गए ..................,\u003cbr\u003e",1]
);
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</script> <br />
प्रशंशा के साथ ही आपकी आलोचनात्मक द्रष्टि मेरे स्वयं के विकास-क्रम हेतु बहुत ज़रूरी हैं अतः मुझे अपनी अंतर्द्रष्टि ke चेतना-लोक का हमसफ़र बना लीजिये ,अभी भले ही ना होऊं ,साथ चलते-चलते आपकी संगत में आपके योग्य हो सकूगा ..................<span style="font-family: "Helvetica Neue",Arial,Helvetica,sans-serif;">........<span style="font-family: "Courier New",Courier,monospace;">.</span><span style="font-family: Georgia,"Times New Roman",serif;"><span style="font-family: "Courier New",Courier,monospace;"><span style="font-family: Verdana,sans-serif;">.<span style="font-size: large;"><span style="font-family: "Courier New",Courier,monospace;"><span style="color: #4c1130;">.</span><b><span style="color: #4c1130;">.जब आग लगी </span>...</b>.....</span></span></span><span style="font-family: "Courier New",Courier,monospace;"><span style="font-size: large;">.</span>.</span>...</span></span> </span><br />
<div style="font-family: "Helvetica Neue",Arial,Helvetica,sans-serif;"></div>कल मेरे घर के सामने जो वाकया हुआ आज तक आग-अंगारे और आक्रोश मेरे ज़हन में ताजा हैं ,आर एस एस ने रात भर हिन्दुओं को उकसाने की कोशिश की - यह कितनी सफल और असफल रही मैं नहीं जानता पर इतना मालूम हैं बाजू वाली मुस्लिम बस्ती बहुत हद तक परेशान हैं .............नफ़रत दोनों तरफ हैं मोहोबत्त की दरकार हैं ..........अगर यह दोनों तरफ़ एक होकर हिन्दू-मुसलमान से जुदा होकर इंसान बन जाए तो कुदरत ही मोब्बत्त सिखला देगी हमें ...........फिरकापरस्ती ,कट्टरता से तो सब तवाह हो रहा हैं ,और पूरी तरह हो जाएगा ................नित नए विकास के सोपान चड़ते हम अपनी ही विकसित तहज़ीब को भूल बैठे हैं ,और जब भूल गए हैं तो याद क्यों नहीं करते .............दुबारा उसका विकास क्यों नहीं करते ............... हमें इतनी नफ़रत क्यों रास आ रही हैं .......<br />
इस नफ़रत ने मेरे अन्दर अंगारे - आक्रोश और अगीठी का इंतज़ाम कर दिया ............तमाम फिरकापरस्ती आवाज़ों के बीच मेरी तरुणाई जाने कहाँ खो गयी ............... लगातार तीन घंटे तक मुल्क़ की तहज़ीब- तमीज़ को नोचते -खसोटते रहे तथाकथित धर्मों के ठेकेदार और मैं घर का नपुंसक बन गया क्यों ? क्यों? आखिर क्यों? ,<br />
<br />
<b><span style="color: #663366;"><span style="color: #660000;">जल गया हूँ सीने में आग तो लगी नहीं ,</span><br style="color: #660000;" /><span style="color: #660000;"> हिन्दुओं और मुस्लिमों की साख तो गिरी नहीं ,</span><br style="color: #660000;" /><span style="color: #660000;"> नष्ट-भ्रष्ट हो गया मैं ,मज़हब सारे जल रहे ,</span><br style="color: #660000;" /><span style="color: #660000;"> मौन व्रत धारण किया असाध्य रोग से बंधा ,</span><br style="color: #660000;" /><span style="color: #660000;"> कैसे बोलूं इन्कलाब कौम से डरा हुआ मैं नपुंसक हो गया ,</span><br style="color: #660000;" /><span style="color: #660000;"> जल</span><br style="color: #660000;" /><span style="color: #660000;"> रहा इंसान हैं ना हिन्दू हैं ना मुसलमान हैं ,</span><br style="color: #660000;" /><span style="color: #660000;"> वेग से थका हुआ ,चारों और देखकर आँख मीच सो गया मैं नपुंसक हो गया ,</span><br style="color: #660000;" /><span style="color: #660000;"> जल रहा हूँ सीने में आग क्यों लगी नहीं पर ?,</span><br style="color: #660000;" /><span style="color: #660000;"> आग को मैं देखता ,देखता ही रह गया ...................मैं नपुंसक हो गया ......</span><br style="color: #660000;" /><span style="color: #660000;"> ना हिन्दू हूँ ना मुसलमान हूँ ,फिर क्यों अपराधी हो गया ......,</span><br style="color: #660000;" /><span style="color: #660000;"> जल गया हूँ सीने में पर ज़ख्म ही नहीं हुआ .................हाँ मैं नपुंसक हो गया ..,</span><br style="color: #660000;" /><span style="color: #660000;"> इंसान सारे जल गए ,धर्म शेष रह गए ,धर्म का करोगे क्या ?,</span><br style="color: #660000;" /><span style="color: #660000;"> सब नपुंसक हो गए ..................,</span><br style="color: #660000;" /> <script>
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D(["mb","\nइन्कलाब..................इन्\u003cWBR\u003eकलाब कौन बोले .इन्कलाब ...\u003cbr\u003eइंसान तो रहे नहीं सब हिन्दू और मुसलमान हैं ...................,\u003cbr\u003eदेखते ही देखते सब नपुंसक हो गए ........................\u003c/font\u003e\u003c/p\u003e\n\u003cp\u003e \u003c/p\u003e\n\u003cdiv\u003eहां दोस्तों हम सब क्या वाकई इतने उदासीन हो गए ,छोटे शहरों में .बडो मेट्रो में ............ हमारे हिन्दुस्तानी गावं में ...................हर तरफ़ दुबारा से फिरकापरस्ती .कट्टरपंथी ताकते क्यों कर आजमाइश कर रही हैं ..........हिन्दुस्तान एक सतरंगी ग़ज़ल हैं ............................\u003cWBR\u003eइसे हम कैसे बचाएं ................अमृता जी ज़हन में हैं ...........\u003c/div\u003e\n\n\u003cdiv\u003e\u003cbr\u003e \u0026quot;\u003cfont color\u003d\"#006600\"\u003eहम नहीं जानते की जब कोई पत्थर उठाता हैं,\u003cbr\u003eतो पहला ज़ख्म इंसान को नहीं इंसानियत को लगता हैं ,\u003cbr\u003eधरती पर जब पहला खून बहता हैं ,\u003cbr\u003eवो किसी इंसान का नहीं इंसानियत का होता हैं ,\u003cbr\u003e\nऔर सड़क पर जो लाश गिरती हैं वह किसी इंसान की नहीं इंसानियत की होती हैं ,\u003cbr\u003eफिरकापरस्ती ,फिरकापरस्ती हैं ,\u003cbr\u003e उनके साथ हिन्दू, सिक्ख, मुसलमान शब्द जोड़ देने से कुछ नहीं होगा . \u003cbr\u003eअपने आप में इन लफ्जों की आबरू हैं ,\u003cbr\u003eइनका एक अर्थ हैं ,इनकी एक पाकीज़गी हैं ,.................\u003cbr\u003e\nलेकिन फिरकापरस्ती के साथ इनका जुड़ना इनका बेआबरू हो जाना हैं ,\u003cbr\u003eइनका अर्थहीन हो जाना हैं और इनकी पाकीज़गी का खो जाना हैं ,\u003cbr\u003eजो कुछ गलत हैं वह सिर्फ़ एक लफ्ज़ में गलत हैं ,\u003cbr\u003eफिरकापरस्ती लफ्ज़ में .\u003cbr\u003e उस गलत को उठाकर कभी हम हिन्दू लफ्ज़ के कंधो पर रक्क्क्क्क्क्क्क्क्ख देते हैं ,\u003cbr\u003e\nकभी सिक्ख लफ्ज़ के कंधो पर ,\u003cbr\u003eऔर कभी मुसलमान लफ्ज़ के कंधो पर ,\u003cbr\u003eइस तरह कंधे बदलने से कुछ नहीं होगा . \u003cbr\u003eज़म्हुरियत का अर्थ ,लोकशाही का अर्थ ,चिंतनशील लोगो का मिलकर रहना हैं ,मिलकर बसना हैं ,\u003cbr\u003eऔर चिन्तनशील लोगो के हाथ में तर्क होते हैं .............पत्थर नहीं होते ................\u0026quot;\u003c/font\u003e\u003c/div\u003e\n\n\u003cp\u003e\u003cfont color\u003d\"#006600\"\u003e सच दोस्तों हमारे हाथ में पत्थर होने भी नहीं चाहिए ............................\u003cWBR\u003eअमृता जी\u003c/font\u003e के इस महान और निहायत ज़रूरी चिंतन के साथ आपको छोडे जा रहा हूँ ...............अबके ज़ल्द ही हाज़िरी दूंगा .......हो सकता हैं किसी कहानी या फिर छोटी - छोटी रचनाओं के साथ ...............आमीन ...................आपका इश्क़ .............\u003cbr\u003e\n \u003c/p\u003e",1]
);
//-->
</script><span style="color: #660000;"> इन्कलाब..................इन्</span><wbr style="color: #660000;"></wbr><span style="color: #660000;">कलाब कौन बोले .इन्कलाब ...</span><br style="color: #660000;" /><span style="color: #660000;"> इंसान तो रहे नहीं सब हिन्दू और मुसलमान हैं ...................,</span><br style="color: #660000;" /><span style="color: #660000;"> देखते ही देखते सब नपुंसक हो गए .........</span>...............</span></b><br />
<br />
<div>हां दोस्तों हम सब क्या वाकई इतने उदासीन हो गए ,छोटे शहरों में .बडो मेट्रो में ............ हमारे हिन्दुस्तानी गावं में ...................हर तरफ़ दुबारा से फिरकापरस्ती .कट्टरपंथी ताकते क्यों कर आजमाइश कर रही हैं ..........हिन्दुस्तान एक सतरंगी ग़ज़ल हैं ............................<wbr></wbr>इसे हम कैसे बचाएं ................अमृता जी ज़हन में हैं ...........</div><div><br />
<b><span style="color: #7f6000;">"</span><span style="color: #006600;">हम नहीं जानते की जब कोई पत्थर उठाता हैं,<br />
तो पहला ज़ख्म इंसान को नहीं इंसानियत को लगता हैं ,<br />
धरती पर जब पहला खून बहता हैं ,<br />
वो किसी इंसान का नहीं इंसानियत का होता हैं ,<br />
और सड़क पर जो लाश गिरती हैं वह किसी इंसान की नहीं इंसानियत की होती हैं ,<br />
फिरकापरस्ती ,फिरकापरस्ती हैं ,<br />
उनके साथ हिन्दू, सिक्ख, मुसलमान शब्द जोड़ देने से कुछ नहीं होगा . <br />
अपने आप में इन लफ्जों की आबरू हैं ,<br />
इनका एक अर्थ हैं ,इनकी एक पाकीज़गी हैं ,.................<br />
लेकिन फिरकापरस्ती के साथ इनका जुड़ना इनका बेआबरू हो जाना हैं ,<br />
इनका अर्थहीन हो जाना हैं और इनकी पाकीज़गी का खो जाना हैं ,<br />
जो कुछ गलत हैं वह सिर्फ़ एक लफ्ज़ में गलत हैं ,<br />
फिरकापरस्ती लफ्ज़ में .<br />
उस गलत को उठाकर कभी हम हिन्दू लफ्ज़ के कंधो पर रक्क्क्क्क्क्क्क्क्ख देते हैं ,<br />
कभी सिक्ख लफ्ज़ के कंधो पर ,<br />
और कभी मुसलमान लफ्ज़ के कंधो पर ,<br />
इस तरह कंधे बदलने से कुछ नहीं होगा . <br />
ज़म्हुरियत का अर्थ ,लोकशाही का अर्थ ,चिंतनशील लोगो का मिलकर रहना हैं ,मिलकर बसना हैं ,<br />
और चिन्तनशील लोगो के हाथ में तर्क होते हैं .............पत्थर नहीं होते ................"</span></b></div><span style="color: #006600;"><b><span style="color: #7f6000;"> सच दोस्तों हमारे हाथ में पत्थर होने भी नहीं चाहिए .........</span></b>...................<wbr></wbr><b style="color: red;">अमृता जी</b></span> के इस महान और निहायत ज़रूरी चिंतन के साथ आपको छोडे जा रहा हूँ ...............अबके ज़ल्द ही हाज़िरी दूंगा .......हो सकता हैं किसी कहानी या फिर छोटी - छोटी रचनाओं के साथ ...............आमीन ...................आपका इश्क़ .............आदित्य आफ़ताब "इश्क़" aditya aaftab 'ishq'http://www.blogger.com/profile/01695360902881473207noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-4563738692394252935.post-51568026115105795852009-09-01T19:05:00.001-04:002009-09-01T19:32:30.897-04:00मेरी त्रयी - माँ अमृता<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhCH1W2kPRMquXcoDlJktMB-FScknwcDPKzcMuVieRDfUwK7GODop_R7S_tnJPh9GYU-dbaVqwHSV7huZyrwBDihxL7HHQ_6ePxoMJHp2fVAfQ1U-rK3kSagFpiwV2I5JFx4AnXzWedp78/s1600-h/amrita+pritam.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; cssfloat: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" lk="true" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhCH1W2kPRMquXcoDlJktMB-FScknwcDPKzcMuVieRDfUwK7GODop_R7S_tnJPh9GYU-dbaVqwHSV7huZyrwBDihxL7HHQ_6ePxoMJHp2fVAfQ1U-rK3kSagFpiwV2I5JFx4AnXzWedp78/s320/amrita+pritam.jpg" /></a></div><span style="color: #e06666;"><span style="font-size: large;">"<strong>प्रहरी हूँ तेरे आँचल का माँ ,पाषण में भी बसते हैं तेरे प्राण माँ" </strong></span></span><br />
<br />
अमृता प्रीतम मेरे लिए मेरे जीवन की "त्रयी" हैं .मेरी आत्मा-चेतना-संवेदना की त्रयी . मेरा उखड़ा हुआ बदतमीज़ स्वभाव ,बुध्धि जड़ और ह्रदय सूखा था .मैं दिन-रात महत्वाकांक्षा के ज्वर में जीवन से भीख मांग कर, एक महत्व हिन् भिखारी की तरह महलो के सपने पालता रहता ,सपने तो पल-पुसकर बड़े हो गए पर मेरा यह भिखारीपन अनवरत जारी रहा ........................मनोविज्ञान में इसे श्रेष्टता की ग्रंथि (सुपिरिअर्टी काम्प्लेक्स) कहते हैं . हकीकत को जानने समझने के लिए होशो-हबाश में रहना होता हैं .मन पर महत्वाकांक्षा हावी हो जाये तो हम और हमारी इन्द्रियां जीवन की त्रयी-त्रवेणी संवेदना-चेतना-आत्मा से किनारा कर लेते हैं मैं बहुत दिनों तक एसा ही करता रहा और शायद आज़-तलक . मैं आवारा था -मेरी समझ मैं आवारा होना तो सुफीओं का शग़ल हैं यह अधिकार तो कबीर ,मीरा ,जायसी जैसे संतों का हैं .तब तो निश्चित ही मैं आवारा नहीं गिरा हुआ ,लुच्चा ,लफंगा ,और बदमाश ( एल .एल .बी ) था . और इस पर दिलचस्प यह की मेरे घर और दुसरे तमाम लोग-बाग़ मुझे काफी पढने-लिखने वाला सीधा-साधा समझधार समझते रहे .........सोचता हूँ कैसी थी उनकी समझ और हां वार्षिक परीक्षा में ना सही अर्धवार्षिकी में मेरे नंबर अक्सर सर्वाधिक हुआ करते थे .अब देखिये न यह मेरा स्वभाव ही तो हैं कभी कभार थोडा बहुत मिला नहीं की अपने को सुप्रीम समझने लगे ..........और अर्धवार्षिकी से वार्षिकी तक आते-आते यह सूप्रीमेसी किसी और की गर्लफ्रेंड या सहेली बन जाया करती थी .हां अगली कक्षा ज़रूर फिर इस सूप्रीमेसी नामक गर्लफ्रेंड को पाने की हसरत से शुरू होती यह और बात हैं की यह हसरत कभी पूरी नहीं हुयी .............खैर खेल-कूद और मिठाई-सिठाई के बीच स्वर्गीय मुकेश साहब के गीत गुनगुनाते हुए स्वयं को मुकेश समझ कर यह गम भी हल्का कर लेते थे ..........बहुत कमीना होने के बाबजूद मैं अक्सर लाइब्रेरी जाया करता ,यह लाइब्रेरी शहर में कहीं भी हो सकती थी ,मैंने यहाँ क्यों जाना शुरू किया -नहीं मालूम पर नियम था जाने का जो कमबख्त टूटता ही न था ......यहाँ अखबारों और किताबों से मुलाकात हुयी .......किताबे इतनी अच्छी दिलकश गर्लफ्रेंड और उससे भी अच्छी हो सकती हैं यही आकर जाना .........अभी तलक तो स्कूल के प्रिंसिपल जैसी सिलेबस की किताबों का तज़ुर्बा था न यार .........पर अब प्यार हो गया किताबों से .इन प्यारी किताबों के बीच मेरा पापी मन धीरे-धीरे अपने पाप को कुबूल करने लगा था पर मै बेचैन था , क्यों था ? यह तो दिल ही जानता था और मैं पापी दिल से कहाँ रूबरू था .............. .............इसी तरह एक रोज़ किताब मिली "खामोशी के आँचल में" .दरअसल उफनती हुयी जवानी में ऐसे शीर्षक सोंधी मिटटी की खुशबु की तरह साँसों में समां जाते हैं ...................जब "खामोशी के आँचल" की छाव में हम बैठे तो अपने दिल से पहली मर्तबा , इमानदारी से रूबरू हुए .किताब पर नाम था अमृता प्रीतम ................................और आज मेरे दिल में नाम हैं माँ अमृता प्रीतम. तब से लेकर आज तक मेरे चेतन और अवचेतन मन ने कितने ही बदलावों को अपने अन्दर ज़ज्ब कर लिया हैं और यह प्रक्रिया निरंतर जारी हैं . अमृता प्रीतम और माँ अमृता प्रीतम मेरे जीवन के दो छोर हैं ,और अमृता प्रीतम से पहले का जीवन एक भटकता हुआ भ्रष्ट महत्वकांक्षी जीवन .........जो था भ्रष्ट मैं ही था ,जो था अस्त मैं ही था ,अंधियारे में मैं ही था ,सूर्योदय से बेखबर मैं ही था ,प्रातः प्रहर की म्रत्युशैया पर था मैं ,जीते जी एक लाश था ,चेतना से दूर जड़ता का बिन्दु ,सावन में सूखा ,भादो में मलिन ,चाँद-तारों की जगमगाहट के दरमियान अपने निज दुखों में तल्लीन ,अश्वों की दौड़ से आतंकित ,अपने ही गुरुर में गिरा हुआ ,तुच्छ ह्रदय ............नकारा .............तमाम दोष-दुर्गुणों के बीच मेरे जीवन ने फिर भी मुझे स्वीकारा ..............क्योंकि जीवन सदैव करुणावान हैं ...........यह माँ अमृता प्रीतम ने ही मुझे सिखलाया .............अमृता प्रीतम रूहानी ताकतों की रचनाकार हैं .........खासकर १९७० के बाद का उनका रचना-संसार ऐसा ही हैं की वे अपनी रचना-प्रक्रिया में पाठक को दिमागी तौर पर ही नहीं इससे बहुत ज़्यादा हद तक शामिल कर लेती है और फिर हर पाठक की अपनी अनुभूतियाँ हैं की वह रूहानी तौर पर अमृता जी से कितना राज़ी होता हैं .....और अनायास ही उनके साथ कितनी देर तलक बहता हैं ,बहता रहता हैं . इसी बहाव में संवेदना-चेतना-आत्मा की त्रयी आती हैं और यह त्रवेणी अंहकार के घाट से दूर एक निर्मल -पावन <br />
<br />
त्रवेणी घाट पर आपका स्वागत करती हैं अब यह आप पर निर्भर करता हैं की आप कितनी देर तलक यहाँ ठहर पाते हैं ,मैंने आपसे शुरू में इसी दुर्लभ त्रयी का ज़िक्र किया ..............पर मैं यहाँ बहुत देर नहीं ठहर पाता ,अक्सर ही मेरा "मैं" मुझे रोक लेता हैं चलिए फिर कोशिश करते हैं . बहुत-बहुत शुक्रिया दोस्तों आप बहुत देर से मेरे साथ हैं ...............और ज़रूर आगे भी रहेगे ...............मैंने अपने ब्लॉग के माध्यम से ३१ अगस्त २००९ से ३१ अक्टूबर २०१० तक को आपके साथ अमृता प्रीतम वर्ष-पर्व के रूप में जीने का ख़याल किया हैं आपके सुझाव सादर आमंत्रित हैं बल्कि ज़्यादा सच यह हैं की इस वर्ष-पर्व की तैयारी व् सफलता आपके ही हाथों में हैं .<br />
बहुत साधुवाद !आदित्य आफ़ताब "इश्क़" aditya aaftab 'ishq'http://www.blogger.com/profile/01695360902881473207noreply@blogger.com27tag:blogger.com,1999:blog-4563738692394252935.post-10160132928580841182009-08-28T10:59:00.005-04:002009-08-28T22:55:22.721-04:00अदला-बदली<span style="font-size: x-large;"><span style="background-color: white; font-size: small;">वाणी जी के कहने पर असुविधाजनक तमाम शेड्स हटा दे रहा हूँ शुक्रिया वाणी गीत जी </span></span><br />
<br />
<ul><li><span style="background-color: #f4cccc;"><span style="font-size: x-large;"><span style="background-color: #eeeeee;">खालिस चाहत</span> </span></span></li>
</ul><br />
<span style="background-color: white; color: black;">एक कहानी हैं जो कविता की तरह सुनानी हैं ,</span><br />
<span style="background-color: white;">सात बच्चे साथ-साथ <span style="color: black;">खेलते-कूदते ,लड़ते -झगड़ते ,धमाचौकड़ी जमाते ,चिल्लाचौट करते ,</span></span><br />
<span style="background-color: white;"><span style="color: black;">आपस में बचपन की अदला-बदली</span> <span style="color: #990000;"><span style="color: black;">कर सबको हैरान कर देते हैं</span>, </span></span><br />
<span style="background-color: white; color: black;">इन नन्हे-मुन्नों के बीच क्या रिश्ता हैं ? शायद बहुत नाज़ुक पर बेहद पुख्ता ,मज़बूत ,</span><br />
<span style="background-color: white;"><span style="color: black;">खैर इस रिश्ते का कोई नाम नहीं ,हिंदी</span> फिल्म के गीत की तरह -प्यार को प्यार रहने दो, कोई नाम ना दो ,</span><br />
<span style="background-color: white;"></span><br />
<span style="background-color: white;"><br />
</span><br />
<span style="background-color: white; color: black;">लता जी का एक और नगमा -बचपन की मोहोबत्त को यूँ ही ना भुला देना , </span><br />
<span style="background-color: white;">जब याद मेरी आ जाए मिलने की दुआ करना ..................., </span><br />
<span style="background-color: white;">बच्चों का जीवन हैं मस्ती ,जैसा भी हो जी लेते हैं , </span><br />
<span style="background-color: white;">ये नन्हे नहीं जानते इनका नाम राम ,रहीम ,सलीम और श्याम ही क्यों रखा गया हैं , </span><br />
<span style="background-color: white;">चाहे इनके घरो में मंदिर-मज्जिद के कितने ही किस्से-कहानियाँ क्यों ना दोहराए जाते हो ,या इनका कोई अंकल और पड़ोसी चौराहे का चर्चित नेता हैं ? , </span><br />
<span style="background-color: white;"> ये तो अपने चौराहे पर खुद ही अपना सिक्का चलाते हैं , </span><br />
<span style="background-color: white;">दिन में धूप और रातों में चांदनी को अपना दीवाना बनाते हैं , </span><br />
<span style="background-color: white;">शाम इनसे बाते करती हैं ,और बचपन की अपनी लत को लेकर रोज़ रात से झगड़ा करती हैं ,रात को अक्सर इंतज़ार कराती हैं , </span><br />
<span style="background-color: white;">बेक़रार रात भी तड़पती-मचलती हैं इन्हें अपने आँचल में लेकर <span style="color: #6aa84f;">थ</span><span style="background-color: white; color: black;">पकियाँ</span> देकर सुलाने के लिए , </span><br />
<span style="background-color: #f3f3f3;"><span style="background-color: white;">चांदनी <span style="color: black;">चोरी से इन्हें चूमती हैं</span> और खुद ही रंगीन ख्वाब सजाती हैं ,</span> </span><br />
<span style="background-color: white;">नित्य नयी सुबह हर क्षण स्वागत को आतुर हैं इनके , </span><br />
<span style="background-color: white;">धूप थोडी और कमसिन हो जाए गर ये नन्हे अपनी हरकतों को फ़लक तले आवारा छोड़ दे , </span><br />
<span style="background-color: white;"> </span><br />
<div style="text-align: center;"><span style="background-color: white;"><span style="font-family: "Courier New", Courier, monospace; font-size: x-large;">पूरी-मस्ती ........</span> </span></div><span style="background-color: #f3f3f3;"> </span><br />
<span style="background-color: #f3f3f3;"><span style="background-color: white;"><span style="color: black;">निश्छल बच्चे</span> सोच रहे हैं</span> </span><br />
<span style="color: black;"><span style="background-color: #f3f3f3;"><span style="background-color: white;">आज शाम को फिर से होले दोड़ा-दाड़ी,भागम-भागी धमाचौकड़ी मस्ती सारी चिल्ला-चिल्ला कर गायेगें</span> </span><span style="background-color: white;">अकडम-बकडम दही चटाका फिर गुप्ता जी के ठेले पर पानी-पूरी और ठहाका , </span></span><br />
<span style="background-color: white; color: black;">फूलों से सुगंध चुराकर तितली रानी से बतियाये , </span><br />
<span style="background-color: white; color: black;">कपडों की फुटबाल बनाकर बारिश में कही गुम हो जाए , </span><br />
<span style="background-color: white; color: black;">भुट्टों की खुशबू की खातिर बरगद वाली अम्मा जी से घंटों तक यूँ ही बतियाये , </span><br />
<span style="background-color: white; color: black;"> </span><br />
<span style="background-color: white;"> </span><br />
<span style="background-color: #f3f3f3; color: #444444; font-size: x-large;">..............और मनहूस बात </span><br />
<span style="background-color: #f3f3f3;"> </span><br />
<span style="background-color: white;"><span style="color: #666666;">आहिस्ता से घर में इनके इनको कुछ सिखलाया हैं ,</span> </span><br />
<span style="background-color: white;"><span style="color: #666666;">राम ने आकर सलीम से नया पेंच लड़ाया हैं ,</span> </span><br />
<span style="background-color: white;"><span style="color: #666666;">बरगद वाली अम्मा ने बचपन को लुटते देखा हैं ,</span> </span><br />
<span style="background-color: white;"><span style="color: #666666;">गुप्ता जी के कानो में नया मसाला आया हैं ,</span> </span><br />
<span style="background-color: white;"><span style="color: #666666;">पानी-पूरी और तमाम ठहाके गुप्ता जी अब हुए पुराने ,</span> </span><br />
<span style="background-color: white;"><span style="color: #666666;">बचपन की खुशबू भरी बातें तितली रानी किसे बताये ,</span> </span><br />
<span style="background-color: white;"><span style="color: #666666;">फूलों में अब सुगंध कहाँ हैं भँवरा निर्वात में ही मंडराए ,</span> </span><br />
<span style="background-color: white;"><span style="color: #666666;">श्याम का लकी नंबर ७८६ ,और रहीम की कॉपी में लिखा था ॐ नमः शिवाय ,</span> </span><br />
<span style="background-color: white;"><span style="color: #666666;">अब सात घरो में बात हुयी हैं मज़हब की मर्यादा की ,</span> </span><br />
<span style="background-color: white;"><span style="color: #666666;">बीती पीड़ी के लोगो ने बचपन को समझाया कुछ ,</span> </span><br />
<span style="background-color: white;"><span style="color: #666666;">घर-घर का इतिहास रहा हैं बचपन का इंतकाल हुआ हैं ,</span> </span><br />
<span style="background-color: white;"><span style="color: #666666;">बचपन की वो अदला-बदली ,अकडम-बकडम सारी मस्ती भूल गए क्यों सारे बच्चे अभी तलक थे यार लंगोटिए ,</span> </span><br />
<span style="background-color: white;"><span style="color: #666666;">एक का मन दूजे में रमता ,कोई पिटता कोई रोता ,</span> </span><br />
<span style="background-color: white;"><span style="color: #666666;">शरबत की वो बोतल नीली एक चुराता सब पी जाते ,</span> </span><br />
<span style="background-color: white;"><span style="color: #666666;">कभी-कभी कोई पकडा जाता फिर वही अदला - बदली ,अकडम -बकडम सारी मस्ती भूल-भुलैया ,कभी नहीं कोई जान सका ये शरबत कोन चुराता था ?</span> </span><br />
<span style="background-color: white;"><span style="color: #666666;"> कहाँ गयी वो सारी मस्ती सुनी हो गयी इनकी बस्ती ,</span> </span><br />
<span style="background-color: white;"><span style="color: #666666;">बात अभी भी करते हैं पर बातों में बातों से ज़्यादा शक् की एक फुटबाल मिली हैं ,</span> </span><br />
<span style="background-color: white; color: #666666;">कोई इधर मार कोई उधर मार </span><br />
<span style="background-color: white;"><span style="color: #666666;">बचपन की फुटबाल नहीं हैं ,दिखती नहीं पर हैं तो भारी ,</span> </span><br />
<span style="background-color: white; color: #666666;">अदला-बदली ,अकडम-बकडम,कपडों की फुटबाल कहाँ हैं ? </span><br />
<span style="background-color: white; color: #666666;">मज़हब की लाचारी हैं जीते पर जीवन को मज्जिद - मंदिर स लाते हैं </span><br />
<span style="background-color: white;"><span style="color: #666666;">कितनी पोयम याद करी थी कसम लिटल-स्टार रविंद्रनाथ की खाते थे ,</span> </span><br />
<span style="background-color: white;"><span style="color: #666666;">कसम बनी हैं भगबान-खुदा अब मर जायेगें मार भी देंगे कृष्ण-कन्हैया ,इंशाल्लाह ,</span> </span><br />
<span style="background-color: white; color: #666666;">कोन करेगा अदला-बदली ,अकडम-बकडम ,धमाचौकड़ी सारी मस्ती ....................यह शाश्वत प्रशन हैं हम सबका ..............कोन ? </span>आदित्य आफ़ताब "इश्क़" aditya aaftab 'ishq'http://www.blogger.com/profile/01695360902881473207noreply@blogger.com15tag:blogger.com,1999:blog-4563738692394252935.post-78604368246350768512009-08-10T10:31:00.001-04:002009-08-10T10:35:34.221-04:00प्रेमांचल - जीवन तेरा प्रेम हैं मेरा -३<div>प्रिय तेरे प्राणों में प्राण मेरे ,</div><div>तेरी सांसों की हलचल से कुछ छुअन हुयी हैं मेरे अंग में ,</div><div>भाव-भंगिमा ही बदल गयी हैं ,</div><div>कहती हैं सब लोक की नज़रे ,</div><div>दशों दिशाओं से आमंत्रण पर मेरा कुछ अधिकार नहीं हैं ,</div><div>मेरा हुआ यह भाग्य भी तेरा ,</div><div>इन सांसों का सोभाग्य यही हैं ,</div><div>यौवन की मधुशाला में जीवन-अमृत बरसे हैं ,</div><div>सुख की क्या मैं बात करूँ अब दुःख भी सच्चा लगा रे ,</div><div>मेरी शक्ती ,प्रेम-प्राण तुम ,जीवन का वरदान -ज्ञान तुम ,</div><div>काव्यशास्त्र की मेरे कविता ,मेरी स्रष्टी मेरी सरिता ,</div><div>प्रेमांचल में बांध लिया हैं मेर्री चंचल वृत्ति को ,</div><div>मैं ठहरा गौरी-शंकर का राहगीर ओ प्रियवती ,</div><div>माँ पार्वती की घौर तपस्या ,और शिव का यूँ ओगढ़ होना ,</div><div>जीवन में अब अर्थ हुआ हैं ,अर्धनारीश्वर का सोभाग्य मिला ,</div><div>अर्धान्गिनी बन जाओ जानम मेरे अंतर्मन लावण्य की ,</div><div>चंचल - चितवन यौवन मेरा प्रेम-पीपासु जीवन हैं ,</div><div>मंत्र -मुग्ध कर दो मुझको तुम काव्यशास्त्र की सूक्ती से ,</div><div>प्रेमशास्त्र से घायल कर दो मेरे तन मन यौवन को ,</div><div>अन्तर्मन की तुम्ही वेदना ,तुम्ही हो मेरी अखण्ड चेतना ,</div><div>जीवन का सोन्दर्य तुम ही हो ,ह्रदय का झंकार हो जानम ,</div><div>तुम से पहले कितनी बातें मैंने नभ से बोली हैं ,</div><div>यौवन की गुफाओं में रानी मन व्याकुल था मिलने को ,</div><div>प्रेमपाश में भर लो मुझको ,नई कविता सिखलाओं ,</div><div>जीवन के श्रम -संघर्षों को न्रत्यागना बन कर गाओ ,</div><div>कैसा भी व्यवधान हो नृत्य - साधना नहीं थमेगी ,</div><div>वीर पलों की अभिव्यक्ती अब खजुराहो में ही होगी ,</div><div>दशो -दिशाओं में हैं आमंत्रण ,वात्स्यान का कामशास्त्र अब जीवन का संस्कार बनेगा ,</div><div>क्यों भूल गए हम नाट्यशास्त्र को ,क्या यह सिर्फ इतिहास रहेगा ? </div><div>भरत-मुनि का नाट्य शास्त्र अब जीवन गौरव गान बनेगा ,</div><div>न्रत्यागाना बन जाओ जानम ,</div><div>भरत-वर्ष का प्रताप जागेगा ................................................</div>आदित्य आफ़ताब "इश्क़" aditya aaftab 'ishq'http://www.blogger.com/profile/01695360902881473207noreply@blogger.com18tag:blogger.com,1999:blog-4563738692394252935.post-79234948195366557512009-08-08T10:07:00.002-04:002009-08-08T10:13:11.380-04:00मैं भी नेता जैसा ...........<p>इन दिनों मेरे मुल्क़ में किसान ,किसानी के अलावा खुदकुशी भी कर रहे हैं ,</p><p>..............................और हैं सियासी लोग यहाँ जो अब ज़िन्दगी के बाद मौत की भी सियासत करते हैं ,</p><p>चाहे हो मर्दाना याकि ज़नाना ज़िस्म उनका पर रुह से ये सियासतबाज़ हमको नपुंसक ही दिखते हैं ,</p><p>साठ लाख का एक-एक हाथी ,और अट्ठारह हज़ार क़र्ज़ किसान पर ,</p><p>मुल्क़ की तक़दीर यही हैं ,हम भी मल्टीनेशनल में जाब करते हैं ,</p><p>प्रेमचन्द्र की सालगिरह ,सावन जैसी सूखी-पाखी अभी निकल कर चली गयी ,</p><p>नाथूराम की मौत ने मुझको याद दिलाई प्रेमचन्द्र की ,वरना अरसा गुज़र गया हैं क्यों याद करू मैं प्रेमचन्द्र की ,</p><p>लिखते थे वे गल्प-कहानी पर मैं नहीं वैसा हिन्दुस्तानी ,</p><p>सर्विस-वर्विस करता हूँ मैं ,शादी-वादी बीबी-बच्चे ,इतना ही फ्यूचर देखा हैं ,अब करना हैं जुगाड़ मनी का ,</p><p>अरे भूल गया मैं तुम्हे बताना ,मेरे कांटेक्ट में भी हैं एक नेता (दरअसल नेता जी ),</p><p>उसकी थोडी अप्प्रोच लगेगी ,नाथूराम की ज़मीन मिलेगी ,</p><p>हाँ बदले में उनको पैसे भी दूंगा ,उसके भी बीबी-बच्चे हैं ,वो तो खुद मर कर चला गया , </p><p>उनका फिर क़र्ज़ पटेगा ,ज़मीन का क्या हैं ,उनकी हो या मेरी ,</p><p>यह तो धरती माता हैं न , ऐसे ही संस्कार हैं मेरे ..........................</p>आदित्य आफ़ताब "इश्क़" aditya aaftab 'ishq'http://www.blogger.com/profile/01695360902881473207noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-4563738692394252935.post-88664747666691344942009-08-07T11:20:00.002-04:002009-08-07T11:23:47.463-04:00फ़ासलासियासी तेवर से मोहोब्बत्त नही होती ,<br />
गर हो जाए ,फिर सियासत नही रहती ,<br />
ज़ालिम ये ज़िंदगी भी न जाने कैसे-कैसे ख्वाब दिखाती हैं,<br />
मोहोब्बत्त का आशियाँ सियासत से सज़ाती हैं <br />
सियासी गुरूर में न अश्क़ बहेगें ,न महबूब मिलेगा ,<br />
ना ज़िस्म का सुरूर रूह की राह बनेगा ,<br />
कैसे इश्क़ की आरज़ू अपने हुस्न् को थामेगी ,<br />
लुट जाएगी तेरी माशूक़ तुझ पर ,<br />
तू एक बार तो कह कह तो सही कि सियासत से मोहोब्बत्त नही मुमकिन ,<br />
यूँ ही आहिस्ता-आहिस्ता मिट जाएगा तेरा गुरूर तेरे आशिक़ की रज़ा से ,<br />
ज़ी भर ज़ी के देख ज़रा के "अल्लाह " के फ़ज़ल से कोई ज़िंदगी कभी तन्हा नही होती ..................,<br />
थोड़े से अश्क़ हमे भी दे ज़ालिम ,के "इश्क़" मिट जाएगा तेरी खातिर ,<br />
गर तुझे मिटने की कभी तमन्ना नही होती ..............आदित्य आफ़ताब "इश्क़" aditya aaftab 'ishq'http://www.blogger.com/profile/01695360902881473207noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-4563738692394252935.post-87882799927388533772009-08-07T04:52:00.002-04:002009-08-07T05:02:36.790-04:00अपराधीलगता हैं जीवन एक अपराध हैं ,<br />
जो नित्य ही होता हैं ,<br />
अगर मैं न चाहू तब भी ,<br />
विश्राम में , सावधान में ,उत्तर में ,दक्षिण में ,पूरब ,पश्चिम में ,सभी दशो दिशाओं में ,<br />
और हर तरफ अपराधी मैं ही हूँ ।<br />
मेरे अपने स्वाभिमान में ,अपमान में ,जीवन की संगती या विसंगती में ....<br />
शायद अपराध मेरी वृत्ति हैं ,सो मैं अपराधी हूँ ,<br />
मेरे लिए यह कहना बहुत आवश्यक हैं की मैं अपने ही जीवन का अपराधी हूँ .............आदित्य आफ़ताब "इश्क़" aditya aaftab 'ishq'http://www.blogger.com/profile/01695360902881473207noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-4563738692394252935.post-37427974019423558592009-07-28T14:30:00.002-04:002009-07-28T15:34:10.615-04:00फालतू कोना<span style="font-size:85%;">कल वकील साब बतिया रहे थे हमारी अदालतों में पेंडिंग पड़े कोई तीन करोड़ मुकदमो के बारे में सो लगे हाथ मैंने पूछ मारा कि- टेलीविजन पर सच का सामना करने वास्ते बाबरी भीड़ को देख लगे हैं मानों हम सबों में हरिशचंद्र का खून आज तलक दोड़ रिया है मिया वकील साब ,पर समझ में नी आवे अदालत में गीता की कसम खाके हरिश्चंदों के ब्लड का हिमोग्लोबिन भला क्यों कम हो जावे , वकील साब बोले यार तुम इन्नोसेंसे में समझते नही हो , मैं बोलियो आप समझा दो नी कनिगनेस को तड़का मार के यारा ,, वी बोलिया दरअसल हमारी सबसे बड़ी तकनीकी दिक्कत ऐसी हैं कि सोसाइटी में कहने जैसी नही हैं ,मैंने की तुम और मैं ,वेरी अवे फ्रॉम द सोसाइटी ,ज़ल्दी बोलो ,कहने लगे सुनो अदालत के अंदर की बात हैं ,हम धर्मं निरपेक्ष हैं यही दिक्कत हैं ,मैंने कहा कैसे ,बोले ऐसे मैं आदित्य कुरान पर हाथ रखकर कसम खाता हूँ जो भी बोलूगा सच बोलूगा ,और तुम आफ़ताब बाइबल पर हाथ रखकर खा लो ,अभी जानसन आवेगा तो गीता पर हाथ रखकर नी खावेगा क्या ? </span><br /><span style="font-size:85%;"></span><br /><span style="font-size:85%;">...................................</span><span style="font-size:130%;color:#3366ff;">और अब एक पीड़ित व्यक्ती की सलाह </span><br /><span style="font-size:130%;color:#000000;"> <span style="font-size:85%;">मालिक हम सभी को चार तरह के कोट से बचाए </span></span><br /><span style="font-size:85%;">अ । सफेद्कोट (डॉ )</span><br /><span style="font-size:85%;">ब। कला कोट (वकील साब )</span><br /><span style="font-size:85%;">स । खाकीकोट (पुलिस)</span><br /><span style="font-size:85%;">और ..............</span><br /><span style="font-size:85%;">द । पेटीकोट (का से कहूँ पीर जिया की ?) </span><br /><span style="font-size:85%;"></span><br /><span style="font-size:85%;"> </span><span style="font-size:100%;color:#ff6666;"> और चलते - चलते बचपन में सुना चिट्कुला </span><br /><span style="font-size:85%;color:#000000;"> दो दोस्त आदित्य और आफ़ताब ,एक गणित का अध्यापक और दूजा वकील काला कोट वाला ,</span><br /><span style="font-size:85%;">आपस में लड़ गए ,सच्चे दोस्त इसी तरह मचलते हैं ,एक ने कहा वकालत का कोई सानी नही ,</span><br /><span style="font-size:85%;">गणित की इज्ज़त का सवाल था भई - दूजा बोल पड़ा बिना गणित के तुम ,,झूठ कैसे बोलेगा ,कितना बोलेगा ,कब कब बोलेगा ,इतना सब कैसे याद रखेगा वकील साब , </span><br /><span style="font-size:85%;">वकील साब गुस्से में बोले तुमने जितने गरीब बच्चो से पैसे लेकर tution </span><br /><span style="font-size:85%;">दी हैं मैं उस सब का अदालत में खुलासा करूंगा ,गणित वाला कहने लगा मैं उससे पहले तुम्हे कोष्टक में रखकर जेरो से भाग लगा दूंगा .......................................</span><br /><span style="font-size:85%;"></span><br /><span style="font-size:85%;"></span><br /><span style="font-size:85%;"></span><br /><span style="font-size:85%;"></span><br /><span style="font-size:85%;"></span><br /><span style="font-size:85%;"><span class=""></span></span><br /><span style="font-size:85%;"><span class=""></span></span>आदित्य आफ़ताब "इश्क़" aditya aaftab 'ishq'http://www.blogger.com/profile/01695360902881473207noreply@blogger.com3