Tuesday 13 April, 2010

तू ..............

मेरा इश्क़  तेरी ज़ुल्फ़ में कहीं उलझा हैं जानम ,
छत पर आ जाओ ,ज़रा अपनी जुल्फ़े संवार लो ,
कि फ़लक पर फिर कोई ग़ज़ल होगी ....................