Monday 10 August, 2009

प्रेमांचल - जीवन तेरा प्रेम हैं मेरा -३

प्रिय तेरे प्राणों में प्राण मेरे ,
तेरी सांसों की हलचल से कुछ छुअन हुयी हैं मेरे अंग में ,
भाव-भंगिमा ही बदल गयी हैं ,
कहती हैं सब लोक की नज़रे ,
दशों दिशाओं से आमंत्रण पर मेरा कुछ अधिकार नहीं हैं ,
मेरा हुआ यह भाग्य भी तेरा ,
इन सांसों का सोभाग्य यही हैं ,
यौवन की मधुशाला में जीवन-अमृत बरसे हैं ,
सुख की क्या मैं बात करूँ अब दुःख भी सच्चा लगा रे ,
मेरी शक्ती ,प्रेम-प्राण तुम ,जीवन का वरदान -ज्ञान तुम ,
काव्यशास्त्र की मेरे कविता ,मेरी स्रष्टी मेरी सरिता ,
प्रेमांचल में बांध लिया हैं मेर्री चंचल वृत्ति को ,
मैं ठहरा गौरी-शंकर का राहगीर ओ प्रियवती ,
माँ पार्वती की घौर तपस्या ,और शिव का यूँ ओगढ़ होना ,
जीवन में अब अर्थ हुआ हैं ,अर्धनारीश्वर का सोभाग्य मिला ,
अर्धान्गिनी बन जाओ जानम मेरे अंतर्मन लावण्य की ,
चंचल - चितवन यौवन मेरा प्रेम-पीपासु जीवन हैं ,
मंत्र -मुग्ध कर दो मुझको तुम काव्यशास्त्र की सूक्ती से ,
प्रेमशास्त्र से घायल कर दो मेरे तन मन यौवन को ,
अन्तर्मन की तुम्ही वेदना ,तुम्ही हो मेरी अखण्ड चेतना ,
जीवन का सोन्दर्य तुम ही हो ,ह्रदय का झंकार हो जानम ,
तुम से पहले कितनी बातें मैंने नभ से बोली हैं ,
यौवन की गुफाओं में रानी मन व्याकुल था मिलने को ,
प्रेमपाश में भर लो मुझको ,नई कविता सिखलाओं ,
जीवन के श्रम -संघर्षों को न्रत्यागना बन कर गाओ ,
कैसा भी व्यवधान हो नृत्य - साधना नहीं थमेगी ,
वीर पलों की अभिव्यक्ती अब खजुराहो में ही होगी ,
दशो -दिशाओं में हैं आमंत्रण ,वात्स्यान का कामशास्त्र अब जीवन का संस्कार बनेगा ,
क्यों भूल गए हम नाट्यशास्त्र को ,क्या यह सिर्फ इतिहास रहेगा ?
भरत-मुनि का नाट्य शास्त्र अब जीवन गौरव गान बनेगा ,
न्रत्यागाना बन जाओ जानम ,
भरत-वर्ष का प्रताप जागेगा ................................................