Tuesday 28 July, 2009

फालतू कोना

कल वकील साब बतिया रहे थे हमारी अदालतों में पेंडिंग पड़े कोई तीन करोड़ मुकदमो के बारे में सो लगे हाथ मैंने पूछ मारा कि- टेलीविजन पर सच का सामना करने वास्ते बाबरी भीड़ को देख लगे हैं मानों हम सबों में हरिशचंद्र का खून आज तलक दोड़ रिया है मिया वकील साब ,पर समझ में नी आवे अदालत में गीता की कसम खाके हरिश्चंदों के ब्लड का हिमोग्लोबिन भला क्यों कम हो जावे , वकील साब बोले यार तुम इन्नोसेंसे में समझते नही हो , मैं बोलियो आप समझा दो नी कनिगनेस को तड़का मार के यारा ,, वी बोलिया दरअसल हमारी सबसे बड़ी तकनीकी दिक्कत ऐसी हैं कि सोसाइटी में कहने जैसी नही हैं ,मैंने की तुम और मैं ,वेरी अवे फ्रॉम द सोसाइटी ,ज़ल्दी बोलो ,कहने लगे सुनो अदालत के अंदर की बात हैं ,हम धर्मं निरपेक्ष हैं यही दिक्कत हैं ,मैंने कहा कैसे ,बोले ऐसे मैं आदित्य कुरान पर हाथ रखकर कसम खाता हूँ जो भी बोलूगा सच बोलूगा ,और तुम आफ़ताब बाइबल पर हाथ रखकर खा लो ,अभी जानसन आवेगा तो गीता पर हाथ रखकर नी खावेगा क्या ?

...................................और अब एक पीड़ित व्यक्ती की सलाह
मालिक हम सभी को चार तरह के कोट से बचाए
अ । सफेद्कोट (डॉ )
ब। कला कोट (वकील साब )
स । खाकीकोट (पुलिस)
और ..............
द । पेटीकोट (का से कहूँ पीर जिया की ?)

और चलते - चलते बचपन में सुना चिट्कुला
दो दोस्त आदित्य और आफ़ताब ,एक गणित का अध्यापक और दूजा वकील काला कोट वाला ,
आपस में लड़ गए ,सच्चे दोस्त इसी तरह मचलते हैं ,एक ने कहा वकालत का कोई सानी नही ,
गणित की इज्ज़त का सवाल था भई - दूजा बोल पड़ा बिना गणित के तुम ,,झूठ कैसे बोलेगा ,कितना बोलेगा ,कब कब बोलेगा ,इतना सब कैसे याद रखेगा वकील साब ,
वकील साब गुस्से में बोले तुमने जितने गरीब बच्चो से पैसे लेकर tution
दी हैं मैं उस सब का अदालत में खुलासा करूंगा ,गणित वाला कहने लगा मैं उससे पहले तुम्हे कोष्टक में रखकर जेरो से भाग लगा दूंगा .......................................






माँ नर्मदा

हैं माँ आँचल में जीवन अमृत लेकर ऐसे कैसे बहती हो ,
साँझ सबेरे धूप ओड़कर नित्य दुखों से प्रसव वेदना सहती हो ?
आँचल में जीवन को बांधे हमको अमृत देती हो ,
और आप स्वयं नित्य दुखों की प्रसव वेदना पीती हो ।
हैं माँ आँचल में जीवन को बांधे ऐसे कैसे बहती हो ,
सदियों से ही इंसानी ज़ुल्म सितम सहती हो ?
बारिश में भीगा तेरा आँचल हम सबको अच्छा लगता हैं ,
पर कभी नही यह जाना - चाहा क्या तुझको अच्छा लगता हैं .............
हैं माँ सोन्दर्यमयी तुम शक्ती जगत की ,
हम सब को यह बात पता हैं ,
पर मेरे जीवन की चाहत में माँ तेरे जीवन का हाल बुरा हैं ...
तेरे तट पर किया बसेरा और तुझको ही डसता मैं ,
धरती पर वरदान हैं माँ तू ,
और मैं भस्मासुर इस धरती का ....,
कैसी कठिन कहानी हैं माँ तूने ही पाला पोसा हैं इस अभिशापी भस्मासुर को
जीवन के हर कठिन समय को तूने सरल बनाया हैं माँ ,
प्राणों ने मेरे चेतना प्रवाह तेरे आचल में पाया हैं
तेरा मेरा रिश्ता माँ इस स्रष्टि से भी पहले का ,
तूने ही तो मेरे जीवन को विष से अमृत बनाया हैं ,
प्राणों में मेरे तेरी पैठ हैं ,
तूने ही मुझको प्राण दिया ,फ़िर मैं क्यो तुझको भूल गया ,
चंचल हूँ अपनी वृत्ति से ,
आँचल को तेरे छोड़ दिया ,
रमा रहा हूँ अपनी ही अभिलाषा के उत्तेज़न में ,
जीवन बना व्यापार मुझे ,
हाय तेरे प्यार भरा आँचल क्यों छोड़ दिया ,
धंसता ही गया उस दलदल में , jaha तू मैली हो जाती हैं ,
मेरे अतीत का साया तू ,
माँ प्यार भरा हैं आँचल तू ,
जीवन हैं तू मेरा, प्राण हैं तू ,
तेरे आँचल अमृत से मेरी सांसों में यौवन छायाँ ,
यौवन मेरा ज्वाला हैं ,
तेरे प्राणों का स्नेह रक्त ,माटी में तेरी संकल्प मेरा ,
जीवन से अब ना भागूंगा ,
अब जीवन हैं तुझको अर्पण माँ ,
तेरा ही यह मेरा प्राण हैं ,
पश्चाताप का मेरा निवेदन ,
तू फ़िर मुझको माफ़ करेगी ,
बहुत थका चुका माँ तुझको ,
कृपा करो माँ मेरी मुझ पर ,
कुछ सेवा का अवसर दो ,
अयोग्य रहा हूँ जीवन भर मैं ,
कुछ योग्य बनू ऐसा सुख दो ,
बहुत सही माँ पीड़ा तुमने ,
अब तनिक ज़रा विश्राम करो ........
मैं श्रद्धा से तुमको नमन करूँ ,
जीवन को मेरे स्वीकार करो ...............................







Tuesday 21 July, 2009

सलाम - नमस्ते

लॉन्ग टाइम नो ब्लॉग्गिंग ,ख़बर -शबर ही नही हैं के कहाँ हूँ मैं ,कल ही मेरी माशूक दिलरुबा दोस्त ने बताया की अभी तो यहीं हूँ मैं ,पर थोड़े दिन और ब्लॉग पर नही आया तो ब्लॉग के साथ ही वो और मैं भी कही खो जाने वाले हैं । सो दोस्तों जय राम जी की ,सलाम -वालेकम ,सत् श्री अकाल ,एंड वैरी गुड आफ्टर नून एवेरी बड्डी ............दरअसल मेरी तरह अदने से आदमी की जिंदगी में भी छोटे -बड़े पेंच आ ही जाते हैं कमबखत । कब से सोच रहा था कि बरसू ,पर बादलों कि तरह सिर्फ़ garaz ही रहा था ,हाँ इन दिनों यहाँ भोपाल-vidisha में कुछ barish हुयी हैं ,सो अब sangat का असर हो रहा हैं ,मुझे भी अब surur आने लगा हैं ,पर आप देख रहे हैं यहाँ कुछ शब्द हिन्दी में नही आ paa रहे हैं ,खैर ........बहुत बार आपको बहुत कुछ करना होता हैं अपनी dilchaspi के khilaf ,और बहुत बार आप कुछ भी नही कर paate अपनी दिलchaspi की खातिर ,goया की internet aaspass और ब्लॉग्गिंग dur-dur .................khata जब हमने की तो उसकी सज़ा हमको मिली और वफ़ा की राह पर चलने , दोड़ने ,मुस्कुराने ,के लिए आपका दोस्त फ़िर हाज़िर हैं ..............बात पूरी हो जाती तो कुछ और बात थी ,चलिए ज़रा ध्यान से सुनिए -पदिये आप ,मैं आदित्य नामक युवक अब से आप से आदित्य आफ़ताब "इश्क " के नाम से रूबरू होता रहूँगा । दरअसल तेज़ी भागती इस दुनिया में हमने विकास के कई सोपान तय किए हैं ,पर हम अपने ही आप को जाने समझे बिना अपने ही आप से लड़ रहे हैं ,इनदिनों स्थानीयता ,भाषा ,धर्म .मज़हब ,संप्रदाय ,जाती को लेकर हम कुछ ज़्यादा कट्टर पंथी बनते जा रहे हैं ,किसी ने अपना नाम बताया नही की हम उसके धर्म-कर्म के विषय में चिंतित हो उठते हैं ,सो इस तरह के सामाजिक टेकेदारों की चिंताओं के निवारनआर्थ मैंने स्यम को किसी तथाकथित हिंदू ,मुस्लिम से जुदा कर इंसानियत और हिंदुस्तानियत के इश्क़ से सरोबार कर लिया हैं । -आदित्य आफ़ताब "इश्क़"

हिन्दुस्तान एक सतरंगी ग़ज़ल हैं दोस्तों ,इसे मोहोबत्त से गुनगुनाते रहिये .............