Tuesday, 21 July 2009

सलाम - नमस्ते

लॉन्ग टाइम नो ब्लॉग्गिंग ,ख़बर -शबर ही नही हैं के कहाँ हूँ मैं ,कल ही मेरी माशूक दिलरुबा दोस्त ने बताया की अभी तो यहीं हूँ मैं ,पर थोड़े दिन और ब्लॉग पर नही आया तो ब्लॉग के साथ ही वो और मैं भी कही खो जाने वाले हैं । सो दोस्तों जय राम जी की ,सलाम -वालेकम ,सत् श्री अकाल ,एंड वैरी गुड आफ्टर नून एवेरी बड्डी ............दरअसल मेरी तरह अदने से आदमी की जिंदगी में भी छोटे -बड़े पेंच आ ही जाते हैं कमबखत । कब से सोच रहा था कि बरसू ,पर बादलों कि तरह सिर्फ़ garaz ही रहा था ,हाँ इन दिनों यहाँ भोपाल-vidisha में कुछ barish हुयी हैं ,सो अब sangat का असर हो रहा हैं ,मुझे भी अब surur आने लगा हैं ,पर आप देख रहे हैं यहाँ कुछ शब्द हिन्दी में नही आ paa रहे हैं ,खैर ........बहुत बार आपको बहुत कुछ करना होता हैं अपनी dilchaspi के khilaf ,और बहुत बार आप कुछ भी नही कर paate अपनी दिलchaspi की खातिर ,goया की internet aaspass और ब्लॉग्गिंग dur-dur .................khata जब हमने की तो उसकी सज़ा हमको मिली और वफ़ा की राह पर चलने , दोड़ने ,मुस्कुराने ,के लिए आपका दोस्त फ़िर हाज़िर हैं ..............बात पूरी हो जाती तो कुछ और बात थी ,चलिए ज़रा ध्यान से सुनिए -पदिये आप ,मैं आदित्य नामक युवक अब से आप से आदित्य आफ़ताब "इश्क " के नाम से रूबरू होता रहूँगा । दरअसल तेज़ी भागती इस दुनिया में हमने विकास के कई सोपान तय किए हैं ,पर हम अपने ही आप को जाने समझे बिना अपने ही आप से लड़ रहे हैं ,इनदिनों स्थानीयता ,भाषा ,धर्म .मज़हब ,संप्रदाय ,जाती को लेकर हम कुछ ज़्यादा कट्टर पंथी बनते जा रहे हैं ,किसी ने अपना नाम बताया नही की हम उसके धर्म-कर्म के विषय में चिंतित हो उठते हैं ,सो इस तरह के सामाजिक टेकेदारों की चिंताओं के निवारनआर्थ मैंने स्यम को किसी तथाकथित हिंदू ,मुस्लिम से जुदा कर इंसानियत और हिंदुस्तानियत के इश्क़ से सरोबार कर लिया हैं । -आदित्य आफ़ताब "इश्क़"

हिन्दुस्तान एक सतरंगी ग़ज़ल हैं दोस्तों ,इसे मोहोबत्त से गुनगुनाते रहिये .............

1 comment:

  1. आपको इस ब्लॉग दुनिया मैं दुबारा पड़कर बहुत अच्छा लगा. लगा जैसे की जिस्म मैं जान आ गयी हो . कृपया हमारे लिए इस दुनिया मैं बने रहेये.

    ReplyDelete