Friday 28 August, 2009

अदला-बदली

वाणी जी के कहने पर असुविधाजनक तमाम शेड्स हटा दे रहा हूँ शुक्रिया वाणी गीत जी

  • खालिस चाहत

एक कहानी हैं जो कविता की तरह सुनानी हैं ,
सात बच्चे साथ-साथ खेलते-कूदते ,लड़ते -झगड़ते ,धमाचौकड़ी जमाते ,चिल्लाचौट करते ,
आपस में बचपन की अदला-बदली कर सबको हैरान कर देते हैं,
इन नन्हे-मुन्नों के बीच क्या रिश्ता हैं ? शायद बहुत नाज़ुक पर बेहद पुख्ता ,मज़बूत ,
खैर इस रिश्ते का कोई नाम नहीं ,हिंदी फिल्म के गीत की तरह -प्यार को प्यार रहने दो, कोई नाम ना दो ,



लता जी का एक और नगमा -बचपन की मोहोबत्त को यूँ ही ना भुला देना , 
जब याद मेरी आ जाए मिलने की दुआ करना ...................,
बच्चों  का जीवन हैं मस्ती ,जैसा भी हो जी लेते हैं ,
ये नन्हे नहीं जानते इनका नाम राम ,रहीम ,सलीम और श्याम ही क्यों रखा गया हैं ,
चाहे इनके घरो में मंदिर-मज्जिद के कितने ही किस्से-कहानियाँ क्यों ना दोहराए जाते हो ,या इनका कोई अंकल और पड़ोसी चौराहे का चर्चित नेता हैं ? ,
 ये तो अपने चौराहे पर खुद ही अपना सिक्का चलाते हैं ,
दिन में धूप और रातों में चांदनी को अपना दीवाना बनाते हैं ,
शाम इनसे बाते करती हैं ,और बचपन की अपनी लत को लेकर रोज़ रात से झगड़ा करती हैं ,रात को अक्सर इंतज़ार कराती हैं ,
बेक़रार रात भी तड़पती-मचलती हैं इन्हें अपने आँचल में लेकर पकियाँ देकर सुलाने के लिए ,
चांदनी चोरी से इन्हें चूमती हैं और खुद ही रंगीन ख्वाब सजाती हैं ,
नित्य नयी सुबह हर क्षण स्वागत को आतुर हैं इनके ,
धूप थोडी और कमसिन हो जाए गर ये नन्हे अपनी हरकतों को फ़लक तले आवारा छोड़ दे ,
 
पूरी-मस्ती ........
 
निश्छल बच्चे सोच रहे हैं
आज शाम को फिर से होले दोड़ा-दाड़ी,भागम-भागी धमाचौकड़ी मस्ती सारी चिल्ला-चिल्ला कर गायेगें अकडम-बकडम दही चटाका फिर गुप्ता जी के ठेले पर पानी-पूरी और ठहाका ,
फूलों से सुगंध चुराकर तितली रानी से बतियाये ,
कपडों की फुटबाल बनाकर बारिश में कही गुम हो जाए ,
भुट्टों की खुशबू की खातिर बरगद वाली अम्मा जी से घंटों तक यूँ ही बतियाये ,
 
 
..............और मनहूस बात
 
आहिस्ता से घर में इनके इनको कुछ सिखलाया हैं ,
राम ने आकर सलीम से नया पेंच लड़ाया हैं ,
बरगद वाली अम्मा ने बचपन को लुटते देखा हैं ,
गुप्ता जी के कानो में नया मसाला आया हैं ,
पानी-पूरी और तमाम ठहाके गुप्ता जी अब हुए पुराने ,
बचपन की खुशबू भरी बातें तितली रानी किसे बताये ,
फूलों में अब सुगंध कहाँ हैं भँवरा निर्वात में ही मंडराए ,
श्याम का लकी नंबर ७८६ ,और रहीम की कॉपी में लिखा था ॐ नमः शिवाय ,
अब सात घरो में बात हुयी हैं मज़हब की मर्यादा की ,
बीती पीड़ी के लोगो ने बचपन को समझाया कुछ ,
घर-घर का इतिहास रहा हैं बचपन का इंतकाल हुआ हैं ,
बचपन की वो अदला-बदली ,अकडम-बकडम सारी मस्ती भूल गए क्यों सारे बच्चे अभी तलक थे यार लंगोटिए ,
एक का मन दूजे में रमता ,कोई पिटता कोई रोता ,
शरबत की वो बोतल नीली एक चुराता सब पी जाते ,
कभी-कभी कोई पकडा जाता फिर वही अदला - बदली ,अकडम -बकडम सारी मस्ती भूल-भुलैया ,कभी नहीं कोई जान सका ये शरबत कोन चुराता था ?
 कहाँ गयी वो सारी मस्ती सुनी हो गयी इनकी बस्ती ,
बात अभी भी करते हैं पर बातों में बातों से ज़्यादा शक् की एक फुटबाल मिली हैं ,
कोई इधर मार कोई उधर मार
बचपन की फुटबाल नहीं हैं ,दिखती नहीं पर हैं तो भारी ,
अदला-बदली ,अकडम-बकडम,कपडों की फुटबाल कहाँ हैं ?
मज़हब की लाचारी हैं जीते पर जीवन को मज्जिद - मंदिर स लाते हैं
कितनी पोयम याद करी थी कसम लिटल-स्टार रविंद्रनाथ की खाते थे ,
कसम बनी हैं भगबान-खुदा अब मर जायेगें मार भी देंगे कृष्ण-कन्हैया ,इंशाल्लाह ,
कोन करेगा अदला-बदली ,अकडम-बकडम ,धमाचौकड़ी सारी मस्ती ....................यह शाश्वत प्रशन हैं हम सबका ..............कोन ?

Monday 10 August, 2009

प्रेमांचल - जीवन तेरा प्रेम हैं मेरा -३

प्रिय तेरे प्राणों में प्राण मेरे ,
तेरी सांसों की हलचल से कुछ छुअन हुयी हैं मेरे अंग में ,
भाव-भंगिमा ही बदल गयी हैं ,
कहती हैं सब लोक की नज़रे ,
दशों दिशाओं से आमंत्रण पर मेरा कुछ अधिकार नहीं हैं ,
मेरा हुआ यह भाग्य भी तेरा ,
इन सांसों का सोभाग्य यही हैं ,
यौवन की मधुशाला में जीवन-अमृत बरसे हैं ,
सुख की क्या मैं बात करूँ अब दुःख भी सच्चा लगा रे ,
मेरी शक्ती ,प्रेम-प्राण तुम ,जीवन का वरदान -ज्ञान तुम ,
काव्यशास्त्र की मेरे कविता ,मेरी स्रष्टी मेरी सरिता ,
प्रेमांचल में बांध लिया हैं मेर्री चंचल वृत्ति को ,
मैं ठहरा गौरी-शंकर का राहगीर ओ प्रियवती ,
माँ पार्वती की घौर तपस्या ,और शिव का यूँ ओगढ़ होना ,
जीवन में अब अर्थ हुआ हैं ,अर्धनारीश्वर का सोभाग्य मिला ,
अर्धान्गिनी बन जाओ जानम मेरे अंतर्मन लावण्य की ,
चंचल - चितवन यौवन मेरा प्रेम-पीपासु जीवन हैं ,
मंत्र -मुग्ध कर दो मुझको तुम काव्यशास्त्र की सूक्ती से ,
प्रेमशास्त्र से घायल कर दो मेरे तन मन यौवन को ,
अन्तर्मन की तुम्ही वेदना ,तुम्ही हो मेरी अखण्ड चेतना ,
जीवन का सोन्दर्य तुम ही हो ,ह्रदय का झंकार हो जानम ,
तुम से पहले कितनी बातें मैंने नभ से बोली हैं ,
यौवन की गुफाओं में रानी मन व्याकुल था मिलने को ,
प्रेमपाश में भर लो मुझको ,नई कविता सिखलाओं ,
जीवन के श्रम -संघर्षों को न्रत्यागना बन कर गाओ ,
कैसा भी व्यवधान हो नृत्य - साधना नहीं थमेगी ,
वीर पलों की अभिव्यक्ती अब खजुराहो में ही होगी ,
दशो -दिशाओं में हैं आमंत्रण ,वात्स्यान का कामशास्त्र अब जीवन का संस्कार बनेगा ,
क्यों भूल गए हम नाट्यशास्त्र को ,क्या यह सिर्फ इतिहास रहेगा ?
भरत-मुनि का नाट्य शास्त्र अब जीवन गौरव गान बनेगा ,
न्रत्यागाना बन जाओ जानम ,
भरत-वर्ष का प्रताप जागेगा ................................................

Saturday 8 August, 2009

मैं भी नेता जैसा ...........

इन दिनों मेरे मुल्क़ में किसान ,किसानी के अलावा खुदकुशी भी कर रहे हैं ,

..............................और हैं सियासी लोग यहाँ जो अब ज़िन्दगी के बाद मौत की भी सियासत करते हैं ,

चाहे हो मर्दाना याकि ज़नाना ज़िस्म उनका पर रुह से ये सियासतबाज़ हमको नपुंसक ही दिखते हैं ,

साठ लाख का एक-एक हाथी ,और अट्ठारह हज़ार क़र्ज़ किसान पर ,

मुल्क़ की तक़दीर यही हैं ,हम भी मल्टीनेशनल में जाब करते हैं ,

प्रेमचन्द्र की सालगिरह ,सावन जैसी सूखी-पाखी अभी निकल कर चली गयी ,

नाथूराम की मौत ने मुझको याद दिलाई प्रेमचन्द्र की ,वरना अरसा गुज़र गया हैं क्यों याद करू मैं प्रेमचन्द्र की ,

लिखते थे वे गल्प-कहानी पर मैं नहीं वैसा हिन्दुस्तानी ,

सर्विस-वर्विस करता हूँ मैं ,शादी-वादी बीबी-बच्चे ,इतना ही फ्यूचर देखा हैं ,अब करना हैं जुगाड़ मनी का ,

अरे भूल गया मैं तुम्हे बताना ,मेरे कांटेक्ट में भी हैं एक नेता (दरअसल नेता जी ),

उसकी थोडी अप्प्रोच लगेगी ,नाथूराम की ज़मीन मिलेगी ,

हाँ बदले में उनको पैसे भी दूंगा ,उसके भी बीबी-बच्चे हैं ,वो तो खुद मर कर चला गया ,

उनका फिर क़र्ज़ पटेगा ,ज़मीन का क्या हैं ,उनकी हो या मेरी ,

यह तो धरती माता हैं न , ऐसे ही संस्कार हैं मेरे ..........................

Friday 7 August, 2009

फ़ासला

सियासी तेवर से मोहोब्बत्त नही होती ,
गर हो जाए ,फिर सियासत नही रहती ,
ज़ालिम ये ज़िंदगी भी न जाने कैसे-कैसे ख्वाब दिखाती हैं,
मोहोब्बत्त का आशियाँ सियासत से सज़ाती हैं
सियासी गुरूर में न अश्क़ बहेगें ,न महबूब मिलेगा ,
ना ज़िस्म का सुरूर रूह की राह बनेगा ,
कैसे इश्क़ की आरज़ू अपने हुस्न् को थामेगी ,
लुट जाएगी तेरी माशूक़ तुझ पर ,
तू एक बार तो कह कह तो सही कि सियासत से मोहोब्बत्त नही मुमकिन ,
यूँ ही आहिस्ता-आहिस्ता मिट जाएगा तेरा गुरूर तेरे आशिक़ की रज़ा से ,
ज़ी भर ज़ी के देख ज़रा के "अल्लाह " के फ़ज़ल से कोई ज़िंदगी कभी तन्हा नही होती ..................,
थोड़े से अश्क़ हमे भी दे ज़ालिम ,के "इश्क़" मिट जाएगा तेरी खातिर ,
गर तुझे मिटने की कभी तमन्ना नही होती ..............

अपराधी

लगता हैं जीवन एक अपराध हैं ,
जो नित्य ही होता हैं ,
अगर मैं न चाहू तब भी ,
विश्राम में , सावधान में ,उत्तर में ,दक्षिण में ,पूरब ,पश्चिम में ,सभी दशो दिशाओं में ,
और हर तरफ अपराधी मैं ही हूँ ।
मेरे अपने स्वाभिमान में ,अपमान में ,जीवन की संगती या विसंगती में ....
शायद अपराध मेरी वृत्ति हैं ,सो मैं अपराधी हूँ ,
मेरे लिए यह कहना बहुत आवश्यक हैं की मैं अपने ही जीवन का अपराधी हूँ .............