सियासी तेवर से मोहोब्बत्त नही होती ,
गर हो जाए ,फिर सियासत नही रहती ,
ज़ालिम ये ज़िंदगी भी न जाने कैसे-कैसे ख्वाब दिखाती हैं,
मोहोब्बत्त का आशियाँ सियासत से सज़ाती हैं
सियासी गुरूर में न अश्क़ बहेगें ,न महबूब मिलेगा ,
ना ज़िस्म का सुरूर रूह की राह बनेगा ,
कैसे इश्क़ की आरज़ू अपने हुस्न् को थामेगी ,
लुट जाएगी तेरी माशूक़ तुझ पर ,
तू एक बार तो कह कह तो सही कि सियासत से मोहोब्बत्त नही मुमकिन ,
यूँ ही आहिस्ता-आहिस्ता मिट जाएगा तेरा गुरूर तेरे आशिक़ की रज़ा से ,
ज़ी भर ज़ी के देख ज़रा के "अल्लाह " के फ़ज़ल से कोई ज़िंदगी कभी तन्हा नही होती ..................,
थोड़े से अश्क़ हमे भी दे ज़ालिम ,के "इश्क़" मिट जाएगा तेरी खातिर ,
गर तुझे मिटने की कभी तमन्ना नही होती ..............
ऋषभदेव शर्मा के काव्य में स्त्री विमर्श
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*शोध पत्र *
ऋषभदेव शर्मा के काव्य में स्त्री विमर्श
*- विजेंद्र प्रताप सिंह*
हिंदी में विमर्श शब्द अंग्रेजी के ‘डिस्कोर्स‘ शब्द के पर्याय के रूप में
प...
9 years ago
सियासी तेवर से मुहब्बत नहीं होती..क्या बात है. शानदार कविता है आदित्य जी
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना धन्यवाद
ReplyDeleteacche tevar hai huzoor....
ReplyDeletesiyasat ke bhi,
aur is kavita ke bhi...
सियासी तेवर से मोहब्बत नहीं होती, हो जाए तो सियासत नहीं होती..
ReplyDeleteहाँ....किसी एक तेवर से नहीं होती क्योंकि सियासी तेवर बदलते रहते रहते...
शायद इसलिए सियासतदाँ, सियासत से बे-पनाह मोहब्बत करते हैं, बस सियासत के तेवर हर हर पल बदलते रहते हैं...
बहुत ही अच्छा लिखा है आपने ....
आज पहली बार आई हूँ आपकी महफ़िल में और आपको भी आज पहली बार देखा हमारे गरीबखाने में...
ह्रदय से शुक्रिया आपका आने के लिए और हौसला बदहने के लिए....
beshq siyasat aur mohabbat main sab zayaz hai par sahi kaha aapne:
ReplyDeletesiyasi tewar se.....
...bhai ya to lad hi lo , ya prem hi kar lo !!
aur ye line vishes taur par acchi lagi:
"youn hi mit jaiyega...."