Thursday 16 April, 2009

जीवन तेरा ,प्रेम हैं मेरा

तेरे आँचल की खूश्बू में थोडी थोडी धूप घुली हैं ,

आँचल में एक टुकडा मेरा तेरे अंतस का पारस पत्थर ।

बारिश में जब तुम भीगी ,बारिश रूककर देख रही थी ,

भीग गयी थी वो भी जालीम तेरे सावन -भादों में ,

यौवन की जब झड़ी लगी थी ,नदिया सी तू मौन खड़ी थी ,

कामदेव के जतन वो सारे कहने को थे कितने प्यारे ,थका थका सा जीवन मेरा ,

बारिश में बारिश से पहले भीग गया में तेरे अंदर , रिमझीम बारिश देख रही थी

प्रेमशास्त्र के नए काव्य को ,नया नही हैं प्रेम सनातन ,शाश्वत हैं सोंदर्य का दर्पण ,

मैं कहता हु तो सुन लो जानम ,लावण्यामई तुम प्रीत हो मेरी ,

भरत मुनी के नाट्य शास्त्र सी ,

कथा ,कहानी ,और कविता ,खजुराहो का कामशास्त्र भी ,

जीवन नित चन डोल रहा हैं ,मन मयूर बन नाच रहा हैं ,

न्रत्यांगना बन जाओ जानम ,बादल कब से तरस रहा हैं ,

बारिश में तुम और तुम्हारी नृत्य साधना और तपेगी ।

कामशास्त्र और योगशास्त्र की दूरी सचमुच और घटेगी ..............

थोडी सी और ...............

शराफत से शराब पीने हमारे घर चले आए ,सड़े पानी की ना जाने कितनी बाटली खाली हुयी होंगी ।

बहकती आंखों से ,कांपते हांथों ने ,तड़पते जिस्म को ,आखरी बाटल के बाटम तक न्योछावर कर दिया ,इतना समर्पण जिस्म में अल्कोहल जाने के बाद ही आता हैं पर अफ़सोस सिर्फ़ अल्कोहल का बुखार ख़त्म होने तलक ।

दोस्तों होश में जीना कठिन हैं ,सचचाई को छुपा लेना इंसान की ज़रूरत हैं ,अन्तःतः बेहोशी का आलम दिल ,दिमाग और जिस्म की ज़रूरत बन गया हैं ।

बेहोशी के कुछ पल ,होश में ठोकरे खाकर ,आड़ी-तिरछी जिंदगी जीने से कही ज़्यादा बेहतर लगते हैं । आत्मा सच्चाई की पूंजी मांगती हैं ,और जिस्म थोडी सी शराब ,अन्तःतः हमारे मन को बेहोशी का यह फलसफा भा जाता हैं । फ़िर खुशी हो या गम ,सब अल्कोहल के करम ,ज़श्न्न में भी शराब ,और मातम में भी , । ज़श्न्न में एक एक घूंट के साथ जिंदगी को जी लेने का यकीं और और पुख्ता होता जाता हैं - और मातम में आत्मघाती बन अंहकार का सुख -सर्वोत्तम सुख ,स्यम को मिटाने का सुख । कोई इश्क में मिटता हैं , कोई भक्ती में ,और हम शराब में ,

मिट गए हम एक एक बोतल में ,अल्लाह को तो नही पता ,पर ख़ुद को ही प्यारी हैं ये कुर्बानी । जिद अपनी दुनिया बदलने की भी होती हैं ,पर यह जिद हैं अपनी दुनिया मिटाने की । बेहोशी का फलसफा और जिस्म की ये आग ,अब नही बुझेगी अल्कोहल की प्यास ,ज़ाहिर हैं ये प्यास बड़ी हैं । हाय रे अल्कोहल ,अनाथ मन को नाथ मिल गया ,अल्कोहल का विश्वास मिल गया ।

पाप करो ,पुण्य करो और जीवन का त्याग ,सबसे उत्तम साधना अल्कोहल की राग ।

जय शिवाला ,पीले एक और प्याला ।

महाकवि नीरज याद आते हैं -

चुप चुप अश्रु बहाने वालो ,जीवन व्यर्थ लुटाने वालो कुछ सपनो के मर जाने से ,जीवन कहाँ मरा करता हैं