तेरे आँचल की खूश्बू में थोडी थोडी धूप घुली हैं ,
आँचल में एक टुकडा मेरा तेरे अंतस का पारस पत्थर ।
बारिश में जब तुम भीगी ,बारिश रूककर देख रही थी ,
भीग गयी थी वो भी जालीम तेरे सावन -भादों में ,
यौवन की जब झड़ी लगी थी ,नदिया सी तू मौन खड़ी थी ,
कामदेव के जतन वो सारे कहने को थे कितने प्यारे ,थका थका सा जीवन मेरा ,
बारिश में बारिश से पहले भीग गया में तेरे अंदर , रिमझीम बारिश देख रही थी
प्रेमशास्त्र के नए काव्य को ,नया नही हैं प्रेम सनातन ,शाश्वत हैं सोंदर्य का दर्पण ,
मैं कहता हु तो सुन लो जानम ,लावण्यामई तुम प्रीत हो मेरी ,
भरत मुनी के नाट्य शास्त्र सी ,
कथा ,कहानी ,और कविता ,खजुराहो का कामशास्त्र भी ,
जीवन नित चन डोल रहा हैं ,मन मयूर बन नाच रहा हैं ,
न्रत्यांगना बन जाओ जानम ,बादल कब से तरस रहा हैं ,
बारिश में तुम और तुम्हारी नृत्य साधना और तपेगी ।
कामशास्त्र और योगशास्त्र की दूरी सचमुच और घटेगी ..............