Thursday 19 August, 2010

क्या हिन्दुस्त्ता आज़ाद हैं ??????????????(1)

दोस्तों आर्ट के नज़रिये से देखे तो हिन्दुस्तान को कोई गुलाम नहीं बना सका ....... यूँ भी कला का कोई मज़हब और संविधान नहीं होता ..........ना ही यह  मुमकि
न हैं  संसद में कोई बिल पास होगा तभी गुरुदेव रविन्द्र बाबा  गीतांजलि लिखेगे  ..................और ना ही उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद अपनी कहानी के चरित्र किसी पंडित या मोलवी से पूछा किया करते थे . किस्सागोई की परंपरा ,नज़्म ,ग़ज़ल ,कविता ,शेरों-शायरी ,चित्रकला ,मूर्तिकला को हमारे कला साधक योगियों ने हर वक़्त आज़ाद और बुलंद रखा ..............दरअसल ये हमारी कलायें ही रही हैं जहाँ अवाम का सुख-दुःख-दर्द किसी मुल्क की आवाज़ और अंदाज़ बनता हैं ............यही आवाज़ और अंदाज़ सभ्यता हैं तहज़ीब हैं तमीज़ हैं और मोहोबत्त............और जब कोई ऐसी तमीज़ ,तहज़ीब,और मोहोबत्त रवायत बनती हैं तो उस मुल्क़ की संसकृती का निर्माण  होता हैं .हम दुनिया में प्यार बाटने वाले लोग हैं और इसी उजाले में ज़रा आप यह भी (पुनः)  सुन ले चाहे आज़ बांग्लादेश ,पाकिस्तान, लंका ,और हिन्दुस्तान का भूगोल अलग-अलग हो पर इतिहास एक हैं ..............और मोहोबत्त किसी राजनितिक इतिहास , भूगोल और सरहद  को नहीं मानती . आर्ट एक सिफ़ा हैं जो दूरियों को कम करती हैं ..........शुभा मुदगल ने एक दफ़ा  बातो-बातों में  ही कह दिया -आई डोंट मेक आर्ट ,बट ईट मेक्स मी....................................शुभा जी को प्रणाम चरण वंदन ,दोस्तों हमारे इस ख़ूबसूरत सतरंगी मुल्क़ को भी इसी महान कल्याणी कला-विरासत ने बनाया  हैं...................आज़ हम आज़ादी  की तिरेसठ वी जयन्ती मना रहे हैं .......और इस ख़ूबसूरत ज़श्न में अगर कोई  ख़ूबसूरत बात  कहूँ तो इतना भर कहना चाहता हूँ कि हमारी कला के नज़रिए से  , ढाका ,कोलम्बो ,लाहौर ,कोलकाता और  दिल्ली आज भी एक हैं ................हां हमने जिन्हें अपना राजनितिक आका बना रखा हैं अव्बल तो वो साज़िशखोर हमें एक नहीं होने देते......और फिर हम भी बहक जाते हैं और बहाने तलाशने शुरू कर देते हैं कभी मुल्क़ की सरहद आड़े आती हैं कभी मज़हब की दीवार ................और अब तो हम अपने अपने परिवार की चौखट में कैद होने लगे है ,कभी-कभी नीलगगन में उडती चहकती  चिड़िया रानी हमें सिखाती हैं विकास के नित नये सौपान तय कर्र्रने वाला इंसान कितना ओछा  हो गया हैं .................जावेद अख्तर याद आते हैं पंछी नदिया पवन के झोंकें कोई सर्र्रर्र्हद ना इन्हें रोकें ..............पर दुर्भाग्य ............नहीं नहीं विडम्बना ,अरे नहीं प्रताड़ना कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे शक्ति-संपन्न नेता को सरहद रोक  लेती हैं ,और चाहे ये मज़हब की सरहद हो या  मुल्क़ की याकि कोई वोट बेंक  राजनीती की मजबूरी  हिन्दुस्तान के प्रध्मानंत्री और सरकार के  यहाँ  बांग्लादेश से निर्वासित हमारे वक़्त का  सच लिखने वाली बेबाक़ महान तसलीमा   नसरीन के लिए कोई ज़गह कोई सवेदना नहीं ,लज्ज़ा लिखने वाली तसलीमा हिन्दुस्तान को अपना दूसरा घर मानती हैं वे कोलकातामें   रहने की इजाज़त मांगती है और हम उन्हें हिन्दुस्तान से भी निष्कासित कर देते हैं 
मानो सत्ता और राजनीति के आलिंगन ने प्रधानमंत्री के कान में अंगडाई ली हो और उन्होंने चुपचाप सुन लिया हो कि हम आज़ाद ख्याल लोकतंत्र हैं हम किसी तसलीमा के चक्कर में अपनी सरकारी आज़ादी क्यों दाव पर लगाये .........
दरअसल राजनीती की यही दिक्कत हैं कि उसे किसी भी तरह की एकता में श़क होता हैं ........शायद यह श़क ही उनकी संजीवनी हैं सभी सरकारों  और राजनितिक पार्टिया के मध्य  यह बहुत बड़ा भ्रम हैं कि तमाम मसले जस के तस बने तो उनका  अस्तित्व सुरक्षित हैं गोयाकि वे मुद्दों को सुलझाने का सिर्फ ढोंग करते हैं .............और आज़ाद भारत की जनता उनसे उनके इस पाखंड के विषय में कुछ कह भी नहीं पाती ...........यह एक बहुत बड़ी गुलामी में जिसमे यह आज़ाद मुल्क़ ज़ी रहा हैं ...........या शायद मर रहा हैं .          इसी गुलामी के चलते एक सौ पच्चीस करोड़ के मुल्क़ में एक भी नहीं जो सरकार से कह पाए कि भले ही आप नपुंसक बन जाए पर हम हमारे लिए कलम थामने वाली तसलीमा के साथ हैं ...............हिंदी का सबसे छोटा शब्द्पुत्र मैं अपने ब्लॉग पर पहले भी कह चूका हूँ कि हमारी नपुंसक सरकार के खिलाफ मैं अपने घर हिन्दुस्तान में तसलीमा नसरीन का स्वागत करता हूँ ...........
कोई आश्चर्य !नहीं कि इन सियासी हुक्मरानों ने कभी लज्जा पढी ही ना हो .............गर ये एक दफ़ा भी पढ़ लेते तो खुद लज्जित शर्मशार हो जाते .........नहीं नहीं दरअसल लज्जा शर्म ये इंसानी तहज़ीब हैं .काश!!! के यह भेढीयें इंसान हो पाते ...............हाय रे भेधीयाँ धसान ...........
आखिर ये कहाँ कहाँ और कब तलक किस-किस बात पर शर्मशार होगें ......... लोकतंत्र को ग्लोबलाईजेशन के बहाने लूटतंत्र बनाने वाले इन आकाओं के खिलाफ धीरे ही सही हमारा यंगिस्तान जाग रहा हैं युवाओं के बीच इनदिनों एक एसेमेस खूब लोकप्रिय हो रहा हैं .....................यह एसेमेस कुछ इस तरह हैं - हिन्स्तान एक ऐसा मुल्क़ जहा पिज्जा ,एम्बुलेंस ,पुलिस और दूसरी निहायत ज़रूरी सेवाओं के पहले पहुँचता हैं ,
जहाँ कार लोन ५% की ब्याज दर पर उपलब्ध  हैं और शिक्षा ऋण के लिए आप १२% ब्याज चुकाते हैं ...जहाँ चावल ४० रूपये किलो और दाल ८० रुपये किलो हैं पर सिम कार्ड मुफ़्त मिलता हैं ,देवी मान नारी का गुणगान करते हैं और कन्या भ्रूण हत्या बहुत सहजता से करते हैं .जहाँ धोनी बल्ला घुमाये तो करोड़ का और मजदूर गड्डा खोदे तो भाव ताव करते हैं ........................ऐसा ही इनक्रेडिबल इंडिया

ऐसा नहीं हैं कि यह  सिर्फ हमारी सरकार या राजनीतिज्ञों का चरित्र हैं ........हम भी जीवन भर  दोहरे चरित्र का खेल खेलते रहते हैं ........तमाम रिश्तें झूठ के सहारे उम्र भर आराम से चलते हैं .........यहाँ जिसे जीते जी ढंग से रो जून की रोटी नसीब न हुयी हो मरने के बाद उसका श्राद्ध पकवान बनाकर किया  जाता हैं........ यह अब जगजाहिर हैं कि यहाँ अक्सर वही इमानदार हैं जिसे बईमानी का मौका न मिला हो ...............यह बात रिश्तों से लेकर धंधे तक लागू होती हैं ..........निदा फ़ाज़ली साहब ने हमें इसी तरह टटोला हैं "हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी जिसे भी देखना कई बार देखना ........"
क्या सिर्फ पासपोर्ट ,पेनकार्ड ,चुनाव आयोग पहचान पत्र  या किसी बाबू को रिश्वत देकर राशन कार्ड पर अपना नाम लिखवा भर  लेने से हमारी आज़ादी प्रमाणित हो जाती हैं . बकौल महान सार्वकालिक पत्रकार प्रतिश नंदी " पहले भी भ्रष्टाचार होता रहा हैं .......पर आज के भ्रष्टतम दौर में आपके पास इमानदारी  कोई विकल्प ही नहीं "
गोयाकि सिस्टम में रहना हैं काम करना-करवाना हैं फिर आप चाहे न चाहे आपको तयशुदा कमीशन अधिकारियों,मंत्रियों ,बाबुओं,दलालों .तक पहुचाना ही हैं .........अब शिक्षा और चिकित्सा जगत ने भी अपने अपने कमीशन जारी कर दिए हैं .........हां अपने वाले के लिए दो चार प्रतिशत की रियारत मोज़ूद हैं ........
 .....मध्य प्रदेश के एक विश्वविद्यालय में जितने प्रतिशत (मार्क्स)आप बनवाना चाहे ......बस पैसा फैकियें ........दस से पंद्रह हज़ार सिर्फ एक सब्जेक्ट का.इसमें भी सत्तर परसेंट बनेगा .ज़्यादा मार्क्स चाहिए सिंपल हैं , पैसा ज़्यादा कर दीजिये .........सब गन्दा हैं पर धंधा हैं ये ........जो विद्यार्थी मेडिकल ,इनजिनिय्रिंग और एम्  बी ए की सीट और डीग्री खरीदने के लिए रिश्वत दे रहे हो उनसे  मुल्क़ को भला क्या उम्मीद रखनी चाहिये .................. आज़ादी की अफीम खाकर सो रहे हैं हम और आप ......और मन -मष्तिष्क के ज़हनी गुलामी हर रोज़ दो दूनी चार हो जाती हैं .................ज़हनी तौर पर गुलाम मुल्क़ तू ज़रा अमृता प्रीतम को सुन ले
काया का जन्म माँ  की कोख से होता हैं ,
दिल का जन्म अहसास कि कोख से होता हैं 
,मस्तिष्क का जन्म इल्म कि कोख से होता हैं ,
और जिस तहज़ीब कि शाखाओं पर अमन का बौर पड़ता हैं ,उस तहज़ीब का जन्म अंतर्चेतना कि कोख से होता हैं ......
दोस्तों 
पकिस्तान तो तिरेसठ बरस पहले बना दिया गया था ,पर उसके बाद   आज़ादी की अफीम अपना असर दिखती रही और हिन्दुस्तान में कितने ही दरिद्र भारत बन गए ......... ये बटवारे बिलकुल चुपचाप हुए इसमें बन्दूक तलवार नहीं ........व्यवस्था की मार पढ़ी और पेट की  आग में  हिन्दुस्तान जल गया बंट गया.......और हम सिर्फ शाइनिंग इंडिया ही गाते रहे ...........किसी भी ने श न ल हाइवे से आप दस बीस किलोमीटर चले जाए फिर आप शाइनिंग इंडिया वाह नहीं दरिद्र भारत आह करेगें .............अब तो सरकार विज्ञापन में सफ़ेद झूठ बोलती हैं .........ये कहते हैं  घरेलु गेस पर २२४ रुपये की सब्सिडी देते हैं ..........पर ये नहीं बताते कि पेट्रोल-डीज़ल के असली कीमत क्या हैं और कितना टेक्स लेते हैं ........सत्रह रूपए के पेट्रोल पर केंद्र सत्रह रूपए और राज्य  सरकार  इक्कीस रुपये मिलकर कुल अडतीस रुपये वसूली करते हैं ......सरकार शुरू से ही हर व्यवस्था पर अपना नियंत्रण चाहती हैं ........पहले यह दूघ बेचा करती थी .........यह तब की बात हैं जब अमूल और दुसरे ब्रांड बाज़ार में नहीं थे ......फिर सरकारी ब्रेड भी बेची गयी ,जगह जगह स्टाल लगाकर इडली डोसा बड़ा साम्भर ..........फिर जब बासा दूध ब्रेड और इडली नहीं चली तो उसे समझ आया कि यह सब सरकार का नहीं असल में व्यापारी वर्ग का काम हैं .सरकार का काम कुछ और हैं ...........पर जिस सरकार पर पूरे मुल्क़ को चलाने की ज़बब्दारी हैं वह  आज़ तलक यह अपना काम नहीं इजाद कर पायी हैं तभी तो उत्तर प्रदेश में मायावती मुख्यमंत्री की बजाय तानाशाह बनती जा रही हैं मायावती के लक्षण देखकर लगता हैं उनके आदर्श लोकतंत्र में मोजूद ही नहीं हैं ........मायावती सरकार किसानो के साथ प्रोपर्टी डीलर का खेल खेल रही हैं .........और घोर आश्चर्य कि गंगा जमुना की उपजाऊ ज़मीं पर कंक्रीट का जंगल क्यों बसाया जा रहा हैं ................ऐसे ही पूरे लखनऊ में कितने ही हाथी और अपनी खुद की मूर्तिया लगवा दी ..एक हाथी पर कोई साठ लाख का खर्च आया हैं ...............और दुर्भाग्य देखिये जिस किसान पर मात्र अठारह हजार का क़र्ज़ हो वह आत्म हत्या कर लेता हैं .........साठ लाख का एक एक हाथी और अठारह हज़ार क़र्ज़ किसान पर ..............
उत्तर प्रदेश के गरीबों की तकदीर बदल जाती मायावती जी जितने पैसे में आपने वहां अपनी मूर्तिया गडवा दी ....ये कैसी आज़ादी हैं ???????????????????/और इस सारे तमाशे में हम तमाशबीन बन गए ..और बहुतेरे तो शादियों में ढोल बजाकर लाखों करोडो लूटा देते हैं ...........ये किस मुल्क़ है जहा तीस तीस आदमियों का खाना एक वी आई पी की थाली में हो और आधा हिन्दुस्ता भूखा मर रहा हैं .........किसी थ्री फाईव् स्टार के वेटर से पूछिए वो कहेगा रोज़ हज़ारो लोगो का खाना फेंक दिया जाता हैं ...............मध्य प्रदेश के भोपाल में आपको ऐसे कितने लोगो से मिलवाया जाए  जो झूठन खाते हैं .........भोपाल सब्जी मंदी के पास एक महोदय नाली में से रोटी का टुकड़ा निकाल कर पेट की आग बुझाते हैं .........सुप्रीम कोर्ट ने तो सर्कार से  आखिर कह ही दिया  हैं कि अनाज अगर गोदाम में सड़ रहा हैं तो गरीबों को मुफ्त बांट क्यों नहीं देते ????????
कैसी खंड खंड तस्वीर हो गयी मेरे अखंड भारत की .......................दोस्तों किन किन मसलों को याद करूँ ...........भोपाल गेस त्रासदी .............कितने ही  भ्रष्ट एन जी ओ ने झूठी रिपोर्ट बनाकर लह्को कूट लिए लूट तंत्र में ............एक मंत्री भोपाल आकर कहते हैं ..........अब इतना असर बचा नहीं गेस के रासयनिक दुष्प्रभाव का ..............वो बदतमीज़ पिछले पच्चीस बरसों को तमाच्चा सा मार गया ..और हम सुनते रह गए लोकतंत्र में .............
अमृता जी  तहज़ीब बन कई मर्तबा कराह चुकी हैं .......ये दर्द गा चुकी हैं -

तूने ही दी थी जिन्दगी - ज़रा देख तो जानेज़हाँ ! 
तेरे नाम पर मिटने लगे - इल्मों-तहज़ीब के निशां,
तशद्दुद की एक आग हैं - दिल में अगर जलायंगे, 
सनम की ख्वाबगाह तो क्या - ख्वाब भी जल जायेंगे .
  
दरअसल आज़ हम अपनी सतही ज़रूरतों की खातिर अपने आप को खोते जा रहे हैं ...........आप पैसा कमायेये ........कार खरीदेये ,बेंक बेलेन्से बढ़ाये ,सीमेंट कांक्रीट के महल या जंगल में शेम्पेन उढ़ाये ..........पर हमारी प्रक्रति की गोद में बैठकर माँ दुर्गा के वाहन हमारे  राष्ट्रिय पशु को मारने का अधिकार आपको किसने दिया ............मीट मार्केट में जाने के बजाए जंगल में प्यारे मासूम हिरनों पर फायर करना इतना सहज कैसे लगता हैं भला ...........अपनी कामशक्ति बढाने के लिए जानवरों को मारकर उनकी उनके अस्थि-पंज़रों को निगल जाना कितना हैवानियत भरा हैं ..........अरे काम तो जीवन का उत्सव हैं .धर्म अर्थ काम और मोक्ष ये तो जीवन के महान संकल्प हैं ...........आप उन सर्वोतम अन्तरंग पलों में भी जीवन और प्रक्रति के अपराधी क्यों कर बनना चाहते हैं ...........ऐसा कर आप अपने सम्पूर्ण वंश को ही कलंकित कर रहे होते हैं .............ऐ इंसान ज़रा इंसान बनकर दिखाओ थोड़ी कशिश हैं और हैं मोहोबत्त तुम मोहोबत्त से देखों किसी को  कही भी ..........
हिन्दुस्तान एक सतरंगी ग़ज़ल है दोस्तों ............गर हम मिलकर इसे गुनगुनाये तो .............ये हमारी तहज़ीब का नया वरक होगा जिसे हमें हर हाल में खोलना ही होगा ............क्या आज़ यह मुमकिन हैं कि लाहौर ,ढाका और नयी दिल्ली से विद्य्थियों का एक जत्था  आतंकवाद के मसले पर एकजूट होकर शिध कार्य करे ..............दिल्ली के जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय की तर्ज़ पर पूरे राष्ट्र में नये सामयिक शोध पाठ्य क्रम संचालित किये जाए  ,यहाँ के अखबार भारतीय उपमहादीप पर साप्ताहिक विशेष सामग्री प्रकशित करे .............भारतीय उपमहादीप अपनी एक स्वतंत्र विदेशी नीति तैयार कर गौरी चमड़ी वालो को उनकी सरहद और हद समझाए  ,शाइनिंग इंडिया और दरिद्र भारत का फासला कम करने वास्ते विश्वविद्यालय के स्टुडेंट आगे आये .........कॉर्पोरेट सिर्फ कागज पर कॉर्पोरेट सोशल रेसपोंसबिलितिस न चलाये ..........हम पर्यावरण को हमारी  गुड  मोर्निंग में शामिल कर ले  , .............एक लेख में तमाम बाते कह पाने की मेरी सामर्थ्य नहीं हैं ...........पर जो ज़रूरी हैं वह यह कि दुनिया के सबसे  ज्यादा युवा शक्ति संपन्न    मुल्क़ 







में अपनी सच्ची आज़ादी के लिए इंकलाब होना ही चाहिए ................आप सफलता-असफलता की फ़िक्र के करे ही क्यों .........शायर कह गया है 
.".गिरते हैं सहस्यार ही मैदान-ऐ-जंग में वो शख्स क्या गिरेंगे जो घुटनों के बल चले" ........अपने आपको आत्म केन्द्रित होने से बचाए ,अपने सपनों को परिवार की  हद से ज़रा दूर तलक फैलने दीजिये कोई सपना टूट भी जाए तो  गम  कर महाकवि  नीरज  ने हमें सीखाया है ------" छुप-छुप अश्रू बहाने वालो जीवन व्यर्थ लूटने वालो कुछ सपनो के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता हैं ................"
इस मुल्क़ को आपकी निहायत ज़रुरत हैं मित्रो ................आप ही अग्रिम पंक्ती  हैं मेरे हिन्दुस्तान की ,
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' ने आपके लिए ही लिखा ............."इस पथ का उद्देश्य नहीं हैं शांत भुवन में टिक जान ,किन्तु पहुचना उस सीमा तक जिसके आगे राह नहीं हैं ..............."
कविवर मेथ्लिशिशरण शरण गुप्त जी  की अखंड भारत भारती आपको पुकारती हैं ............
अपने राष्ट्र की पीड़ा को पहचानो मित्रों इस पीड़ा के हरण छरण के लिए आओ पुनः भारतीय एक्य का परचम लहराए ...............
जिंदगी हैं चार दिन की ,और अब आई वतन की बात ............
आजा मथ ले जिंदगी  को ,और करे विषपान ,  
जब घायल अंतर्मन भारत का तो कैसे अमृत पिए सुकरात ................

Sunday 15 August, 2010

क्या पाकिस्तान आज़ाद है ?????????

१४ अगस्त अखंड भारत के विघटन की तिरेसठ बरस पुरानी तारिख़ . ना ही पाक़िस्तान के उदय से उस वक़्त कोई ताज़्ज़ुब रहा और ना ही वर्तमान परिपेक्ष्य में हम यह उम्मीद करे कि भारत ,पुनः संगठित होकर एक अखंड राष्ट्र शक्ति बनेगा . बकौल ज़िन्ना भारत एक नहीं दो राष्ट्र हैं .गाँधी ने कप्तान नेहरु  को बनाया और जिन्ना वेवफा हो गए


, ज़िन्ना की महत्वकांक्षा के ज्वर ने अलग मुल्क पाकिस्तान के राष्ट्रपति की कुर्सी का ख्वाब सजाया.ज़िन्ना जिंददी थे जो चाहा वह कर कर दिखाया . पंडित जी महान हैं और सत्ता पाकर और भी महान हो गए ......बस एक पाकिस्तान बनने से ज़िन्ना और नेहरु अपने-अपने मुल्क में महान हो गए .असंख्य दिल टूट गए .......कितने घर बर्बाद हुए, अपनी हीरों से रांझे दूर हुए ,    अंततः मुल्क की तकसीम हुयी.........और ज़िन्ना ने कहा ये रहा पाकिस्तान .........हमारा पाक़ पाकिस्तान ,मानो एक लकीर भर खींच देने से मुल्क का बंटवारा हो गया हो ................लाहोर ,करांची ,ढाका और रावलपिंडी को हिन्दुस्तान से पाक़िस्तान बनने में जो कत्लो खून हुआ उससे सत्ता के पैरोकारो ने यह सीखा की कितनी भी विषम स्थिती हो कुर्सी का मोह नहीं छोड़ना चाहिए ,संवेदना को ह्रदय से निकाल बाहर कर दो लक्ष्य की प्राप्ती अवश्य ही होती हैं ........ आज 63 बरस बाद क्या कोई सरकारी ,गैर सारकारी संसथान दोनों मुल्को को वापस एक हो जाने की कोशिश में नहीं दिखाई देता.........ये साज़िश हैं जो अनवरत ज़ारी हैं ........बांग्लादेश के निर्माण के बाद अब यह साजिश द्वपक्षीय नहीं रह गयी ..................यह सर्क्कारी भ्रष्टाचार की अंतररास्ट्रीय शक्ल हैं जिसे राष्ट्रिय स्तर पर पहचानकर हमें भारत ,पाकिस्तान और बांग्लादेश की सरकारों के खिलाफ मुहीम तेज़ करनी होगी.........साथ ही बराक ओबाम और उनके उतराधिकारियों को उनके मुल्क की सरहद और हद को समझना होगा .


पाक़िस्तान (१९४७ के पहले का हिन्दुस्तान)को बरगलाकर अमेरिका ना सिर्फ हिन्दुस्तान को उलझा रहा हैं बल्कि गहरे तौर पर एशिया के विकास को बाधित कर रहा हैं असल में यह उसकी मोनोपाली कायम रखने का गैर लोक्तान्तिक तरीका हैं .....आज पाक़िस्तान जल रहा हैं .........बारूद पर बैठे मुल्क को कैसे समझ आये के ज़म्हुरियत का विकल्प बन्दूक नहीं होती......इंसान चाहे किसी कौम का हो उसे जीने के लिए रोटी चाहिए ,रोटी के रोज़गार चाहिए और रोज़गार का बन्दूक से कोई ताल्लुक नहीं ...........जहाँ कुछ बदतमीज़ गुट बन्दूक के सहारे न्यायपालिका और मीडिया पर हावी हो जाए वहां अवाम अपने सपने नहीं बुन सकता ...........और  जहाँ


ख्वाब नहीं बुने जाते वहां मोहोबत्त नहीं बस्ती ............इश्क़ नहीं फैलता .............बिना इश्क़ के इंसान इंसान नहीं कहलाता ............... पर


पकिस्तान में भी मोहोबत्त बस्ती हैं और हिन्दुस्तान भी ..................और नफरत का धंधा भी दोनों तरफ ज़ारी हैं और नफरत के उस कारोबार में जो सबसे बड़ी रूकावट हैं वह हैं अमन मोहोबत्त प्यार इश्क-विश्क ..................तो कोई भी कारोबारी अपने रस्ते में आने वाली रूकावटो को पहचानकर उन्हें सदा के लिए दूर कर देना चाहता हैं ...........और हमरे ये नेता भी ऐसे ही कारोबारी हैं................वो हमें नफरत का एक उत्पाद मान रहे हैं .........................क्या हम इश्क बाँट कर उनके उत्पादन में कमी नहीं करना चाहेगे....???????.........और अब सिर्फ नेता ही नहीं बहुत सी शक्तिया है जी इस साज़िश में शामिल हैं ....................हम प्यार बाटने वाले लोग हैं ................और पकिस्तान में प्यार की ही दरकार हैं ......................दरअसल जो मुल्क नफरत की बुनियाद में बना हो वहा अमन बेहद मुश्किल हैं लेकिन


 हमें भूलना नहीं होगा जी ४७ के पहले पकिस्तान पकिस्तान नहीं था .........पकिस्तान पकिस्तान हैं क्योंकि हिन्दुस्तानियों ने गलती की और वह


जो भी था हिंदुस्तान था और जब आज पाकिस्तान जल रहा हैं ..................रोटी रोज़गार और मोहोबत्त मांग रहा हैं ..तो वहा की अवाम को यह बतलाना हमारे लिए ज़रूरी हो जाता हैं की आपके यहाँ लोकतंत्र नहीं हैं ऐसे में आप भले ही आज़ादी के गीत गाये कोई मायने नहीं .............लोकतंत्र  बहाल


होगा आपके जागने से तो आइये हम मिलकर पहले जागरण का शंखनाद करे





.............यह कैसे संभव हैं हिंदुस्तान का एक भूभाग हिन्दुस्तान के खिलाफ आतंक हिंसा और नफरत का प्रायोजक बना हुआ हैं ??????? नफरत के सौदागरों ने इसे संभव बना दिया हैं ..........................और यह वहशीपन पिछले १०० सालो से अनवरत ज़ारी हैं .........आओ के आज पाकिस्तान के स्वाधीनता दिवस पर उम्मीद करे के नफरत का ये कारोबार ख़त्म हो ...............और हिन्दुस्तान वापस अखंड भारत बन सतरंगी मोहोबत्त का गीत गाये ........................

Wednesday 7 July, 2010

..वज़ूद ............

 मेरे अंतस की भ्रष्ट पाखण्ड प्रिय हरकतों ...............आदतों 
 ज़रा खुबसूरत ख़त लिखने की भी थोड़ी इज़ाज़त दो . 
  कि ज़रा ज़िक्र  हो मेरी मोहोबत्त का ज़रा सा ,
मेरे सारे दिन और सारी रात लील लो ...... मैं शपथपूर्वक कथन कहता      हूँ                                                                         मैं आजीवन भ्रष्टचार के व्यसन में लिप्त रहूगा ............
बस एक रात की  इज़ाज़त दे दो ............सुबह ही वापसी करुगा .
अपने सपने को एक निहायत ज़रूरी गर्भ में रोप आने के बाद ........................

Thursday 22 April, 2010

चेतना का अनुपात ........थोडा जीवन बाकी मृत्यु

उखड़ा पौधा हरा भरा हैं ,
एकाध दफ़ा तो मरकर देखों ,
फूल खिला हैं कांटे भी हैं ,
काँटों  पर थोडा चलकर देखों ,
मन मैला और हरामी ,मीरा की पायल पहन के देखों ,
मन की आदत जलने कि हैं 
अपने अन्दर हवन जलाकर देखों ,
जलती काया मातम जैसी ,
ज़िस्म में रूह पिरोकर देखों .................







Saturday 17 April, 2010

हथेली में दंतेवाडा

हथेली की लकीरें गुस्से से उबल रही हैं ............
बेशक इनमें कहीं किसी दंतेवाडा का ज़िक्र छुपा हुआ हैं ..........
साँसों के साथ अब हथेली भी सुलगती हैं ,
और सुलगती हुयी कोई भी हथेली कभी सामान्य नहीं रह पाती ..........
सोचता हूँ किसी आदिवासी कि ऐसे ही सुलगती हथेली बन्दूक पकड़ लेती हैं ..................















 



Tuesday 13 April, 2010

तू ..............

मेरा इश्क़  तेरी ज़ुल्फ़ में कहीं उलझा हैं जानम ,
छत पर आ जाओ ,ज़रा अपनी जुल्फ़े संवार लो ,
कि फ़लक पर फिर कोई ग़ज़ल होगी ....................


Monday 12 April, 2010

...............के आप मुझे कुबूल करों

अलाल्ह ! आज़ में फिर से अपनी ज़मीं पर खड़ा हूँ .....................
मेरे दोस्त मुझे युहीं संभाले रखना ....................... 
मृता जी मुझे माफ़ कर दो ...................बड़ा ही बदतमीज़ बच्चा हूँ तुम्हारा माँ ......................