हथेली की लकीरें गुस्से से उबल रही हैं ............
बेशक इनमें कहीं किसी दंतेवाडा का ज़िक्र छुपा हुआ हैं ..........
साँसों के साथ अब हथेली भी सुलगती हैं ,
और सुलगती हुयी कोई भी हथेली कभी सामान्य नहीं रह पाती ..........
सोचता हूँ किसी आदिवासी कि ऐसे ही सुलगती हथेली बन्दूक पकड़ लेती हैं ..................
ऋषभदेव शर्मा के काव्य में स्त्री विमर्श
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*शोध पत्र *
ऋषभदेव शर्मा के काव्य में स्त्री विमर्श
*- विजेंद्र प्रताप सिंह*
हिंदी में विमर्श शब्द अंग्रेजी के ‘डिस्कोर्स‘ शब्द के पर्याय के रूप में
प...
9 years ago
BEAUTIFUL
ReplyDeleteहर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteshayad sahi keh rahe hain aap...sarkari tantra aur rajneeti bhi isi daldal ha hissa hain...
ReplyDeletehttp://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
BAHUT KHUB
ReplyDeleteSHEKHAR KUMAWAT
http://kavyawani.blogspot.com/
हथेली की लकीरें गुस्से से उबल रही हैं ............
ReplyDeleteबेशक इनमें कहीं किसी दंतेवाडा का ज़िक्र छुपा हुआ हैं ..........
laazwaab ,bahut khoobsurat rachna .
आक्रोश को परिभाषित करती खूबसूरत रचना.
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