Saturday, 17 April 2010

हथेली में दंतेवाडा

हथेली की लकीरें गुस्से से उबल रही हैं ............
बेशक इनमें कहीं किसी दंतेवाडा का ज़िक्र छुपा हुआ हैं ..........
साँसों के साथ अब हथेली भी सुलगती हैं ,
और सुलगती हुयी कोई भी हथेली कभी सामान्य नहीं रह पाती ..........
सोचता हूँ किसी आदिवासी कि ऐसे ही सुलगती हथेली बन्दूक पकड़ लेती हैं ..................















 



6 comments:

  1. हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  2. shayad sahi keh rahe hain aap...sarkari tantra aur rajneeti bhi isi daldal ha hissa hain...

    http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/

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  3. BAHUT KHUB

    SHEKHAR KUMAWAT

    http://kavyawani.blogspot.com/

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  4. हथेली की लकीरें गुस्से से उबल रही हैं ............
    बेशक इनमें कहीं किसी दंतेवाडा का ज़िक्र छुपा हुआ हैं ..........
    laazwaab ,bahut khoobsurat rachna .

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  5. आक्रोश को परिभाषित करती खूबसूरत रचना.

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