इन दिनों मेरे मुल्क़ में किसान ,किसानी के अलावा खुदकुशी भी कर रहे हैं ,
..............................और हैं सियासी लोग यहाँ जो अब ज़िन्दगी के बाद मौत की भी सियासत करते हैं ,
चाहे हो मर्दाना याकि ज़नाना ज़िस्म उनका पर रुह से ये सियासतबाज़ हमको नपुंसक ही दिखते हैं ,
साठ लाख का एक-एक हाथी ,और अट्ठारह हज़ार क़र्ज़ किसान पर ,
मुल्क़ की तक़दीर यही हैं ,हम भी मल्टीनेशनल में जाब करते हैं ,
प्रेमचन्द्र की सालगिरह ,सावन जैसी सूखी-पाखी अभी निकल कर चली गयी ,
नाथूराम की मौत ने मुझको याद दिलाई प्रेमचन्द्र की ,वरना अरसा गुज़र गया हैं क्यों याद करू मैं प्रेमचन्द्र की ,
लिखते थे वे गल्प-कहानी पर मैं नहीं वैसा हिन्दुस्तानी ,
सर्विस-वर्विस करता हूँ मैं ,शादी-वादी बीबी-बच्चे ,इतना ही फ्यूचर देखा हैं ,अब करना हैं जुगाड़ मनी का ,
अरे भूल गया मैं तुम्हे बताना ,मेरे कांटेक्ट में भी हैं एक नेता (दरअसल नेता जी ),
उसकी थोडी अप्प्रोच लगेगी ,नाथूराम की ज़मीन मिलेगी ,
हाँ बदले में उनको पैसे भी दूंगा ,उसके भी बीबी-बच्चे हैं ,वो तो खुद मर कर चला गया ,
उनका फिर क़र्ज़ पटेगा ,ज़मीन का क्या हैं ,उनकी हो या मेरी ,
यह तो धरती माता हैं न , ऐसे ही संस्कार हैं मेरे ..........................
सुन्दर रचना मन को छू गयी दुनिया के नियम -कायदों के संतुलन दर्शाती हुई ,आप आये ब्लॉग pe बहुत ख़ुशी हुई .
ReplyDelete...yah to dharti maata hai....
ReplyDelete...badiya sanskaar hain ji aapke .
ya chand ke nayak ke (hahaha)
kavita ka vyangaatam lehja bahut accha laga...
aftab ji aapko ek blogger aur dost ki kasam ki jab bhi aapki approch lage to mera bhi khayal rakhiyega...
ReplyDelete...baaki samajh lenge !!
hahahaha