हैं माँ आँचल में जीवन अमृत लेकर ऐसे कैसे बहती हो ,
साँझ सबेरे धूप ओड़कर नित्य दुखों से प्रसव वेदना सहती हो ?
आँचल में जीवन को बांधे हमको अमृत देती हो ,
और आप स्वयं नित्य दुखों की प्रसव वेदना पीती हो ।
हैं माँ आँचल में जीवन को बांधे ऐसे कैसे बहती हो ,
सदियों से ही इंसानी ज़ुल्म सितम सहती हो ?
बारिश में भीगा तेरा आँचल हम सबको अच्छा लगता हैं ,
पर कभी नही यह जाना - चाहा क्या तुझको अच्छा लगता हैं .............
हैं माँ सोन्दर्यमयी तुम शक्ती जगत की ,
हम सब को यह बात पता हैं ,
पर मेरे जीवन की चाहत में माँ तेरे जीवन का हाल बुरा हैं ...
तेरे तट पर किया बसेरा और तुझको ही डसता मैं ,
धरती पर वरदान हैं माँ तू ,
और मैं भस्मासुर इस धरती का ....,
कैसी कठिन कहानी हैं माँ तूने ही पाला पोसा हैं इस अभिशापी भस्मासुर को
जीवन के हर कठिन समय को तूने सरल बनाया हैं माँ ,
प्राणों ने मेरे चेतना प्रवाह तेरे आचल में पाया हैं
तेरा मेरा रिश्ता माँ इस स्रष्टि से भी पहले का ,
तूने ही तो मेरे जीवन को विष से अमृत बनाया हैं ,
प्राणों में मेरे तेरी पैठ हैं ,
तूने ही मुझको प्राण दिया ,फ़िर मैं क्यो तुझको भूल गया ,
चंचल हूँ अपनी वृत्ति से ,
आँचल को तेरे छोड़ दिया ,
रमा रहा हूँ अपनी ही अभिलाषा के उत्तेज़न में ,
जीवन बना व्यापार मुझे ,
हाय तेरे प्यार भरा आँचल क्यों छोड़ दिया ,
धंसता ही गया उस दलदल में , jaha तू मैली हो जाती हैं ,
मेरे अतीत का साया तू ,
माँ प्यार भरा हैं आँचल तू ,
जीवन हैं तू मेरा, प्राण हैं तू ,
तेरे आँचल अमृत से मेरी सांसों में यौवन छायाँ ,
यौवन मेरा ज्वाला हैं ,
तेरे प्राणों का स्नेह रक्त ,माटी में तेरी संकल्प मेरा ,
जीवन से अब ना भागूंगा ,
अब जीवन हैं तुझको अर्पण माँ ,
तेरा ही यह मेरा प्राण हैं ,
पश्चाताप का मेरा निवेदन ,
तू फ़िर मुझको माफ़ करेगी ,
बहुत थका चुका माँ तुझको ,
कृपा करो माँ मेरी मुझ पर ,
कुछ सेवा का अवसर दो ,
अयोग्य रहा हूँ जीवन भर मैं ,
कुछ योग्य बनू ऐसा सुख दो ,
बहुत सही माँ पीड़ा तुमने ,
अब तनिक ज़रा विश्राम करो ........
मैं श्रद्धा से तुमको नमन करूँ ,
जीवन को मेरे स्वीकार करो ...............................
ऋषभदेव शर्मा के काव्य में स्त्री विमर्श
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*शोध पत्र *
ऋषभदेव शर्मा के काव्य में स्त्री विमर्श
*- विजेंद्र प्रताप सिंह*
हिंदी में विमर्श शब्द अंग्रेजी के ‘डिस्कोर्स‘ शब्द के पर्याय के रूप में
प...
9 years ago
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