मिट्टी के दीपक में तारों का सजना ,
धरती के ख्वाबों का बादल बन उड़ना ,
हवाओं में आंधी की ताकत का होना ,
तूफानों का मेरे घर में आकर के रुकना ,
आगन में तुलसी का पौधा लगा हैं ,
मेरी माँ का हर रोज़ सज़दे में रहना ,
सुबह-शाम मोहोबत्त का कलमा यूँ पढना ,
मेरे घर की दीवारे जड़वत नहीं हैं ,
वो हिलती हैं लेकिन गिरती नहीं हैं ,
टकरा कर मुझसे एक दीवार बोली -तूफ़ान से कह दो वो आये संभल कर ,
टूटे हैं सपने कई बार लेकिन, आँखों में आँसूं ठहरते नहीं हैं ,
मोहोबत्त की मर्जी हैं काँटों पर चलना ,
वफाओं का दिल में अहसास लेकर ,
कई दोस्त मिलते हैं ,मिलकर बिछड़ते ,मिलना-बिछड़ना वफ़ा के किनारे ,
वफ़ा एक नदी हैं जो बहती ही जाती ,
कोई दोस्त आता हैं अपना सा बनकर सज़दे में मैं हूँ और कलम की मोहोबत्त ,कागज़ पर चलती हैं अहसास बनकर ,
दिल में उतरती हैं कोई ख्वाब बनकर ,..................................और आज मेरे दोस्त दर्पण का जन्म दिन हैं ................
हम सब जिसे कहते हैं दर्पण साह "दर्शन".............
सलाम दोस्त मैं रूठ ही गया होता तेरे अचानक से 23 september ka equinox बता देने पर ....................पर वफ़ा की नदी में बहकर पहुँच रह हूँ प्राची के पार ......................निसंदेह हर स्वस्थ्य रचना शील समाज को आलोचना की आवशकता होती ही हैं ...............इसी क्रम मैं मैं चाहूँगा तुम्हारा आलोचक भी बनूँ ,...........................सारथी को अचानक से बताओगे कि आज 23 september हैं तो रथ थोडा बहुत हलचल करेगा ही हलाकि होगा कुछ भी नहीं मैंने कहा न ,मेरे घर की दीवारे हिलती हैं लेकिन ढहती नहीं ...............मोहोबत्त,मित्रता ...........कभी ढह भी नहीं सकती ................... ढह गयी तो कुछ था ही नहीं .............ढकोसला था .........और मित्र मैं ढकोसला ,नहीं तुम्हारा मित्र होना चाहता हूँ .................मुंशी प्रेम चन्द्र कह गए हैं - प्रेम गहरा होता हैं ,मित्रता और भी गहरी ......................इसीलिए कहते नहीं हैं ?.............. माँ-बाप बेटी-बेटे ...............को सिर्फ़ बेटा बेटी माँ बाप ही नहीं दोस्त भी होना चाहिय ................दांपत्य तो बिना मित्रता के ढकोसला ही हैं ......मित्रता तो इंसानों का विशेषाधिकार हैं ............ .......सो जन्म दिन के साथ मित्रता मुबारक ..............
शाह जी को बधाई व शुभकामनाएँ
ReplyDeleteयह अवसर यहाँ यहाँ चिन्हित कर लिया गया है किन्तु Belated की श्रेणी में आ जाने के कारण माहांत में उल्लेख किया जाएगा।
बी एस पाबला
सबसे पहले दर्पण शाह जी को ढेरो बधाई
ReplyDeleteदूसरी ऐसी दोस्ती सबको नसीब होती ........
आपकी दोस्ती ऐसे ही बरकरार रहे.....
आगन में तुलसी का पौधा लगा हैं ,
मेरी माँ का हर रोज़ सज़दे में रहना ,
सुबह-शाम मोहोबत्त का कलमा यूँ पढना ,
मेरे घर की दीवारे जड़वत नहीं हैं ,
वो हिलती हैं लेकिन गिरती नहीं हैं ,
आफताब जी .....बहुत ही पावन रचना है ....जहा प्यार की ताकता हो तो हिलती हुई दिवार भी जीवित हो उठी है ...........
आपकी दोस्ती को सलाम
शाह जी नूं साड्डी वी बधाईयां पहुंचें
ReplyDeleteपोस्टां लगावें अक टिप्पणियां पोस्टावें
बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ दर्शन जी को उनके जन्म दिन के अवसर पर
ReplyDeleteदर्पण साह जी को जन्मदिन की ढेरो बधाई और शुभकामना ....
ReplyDeletetumen likha hjai "तुम्हारा मित्र होना चाहता हूँ ... ?"
ReplyDeleteye kya baat hui?
ho nahi kya mere mitra....
Mere sarthi?
abh bhi koi prmaan ki zaroorat hai 'taat' ?
dost mujhe itna samman na do....
yakeen mano main iske kadapi layak nahi hoon !!
bus pyasar se 2 meethe baatein kar liya karo kaafi hain....
aur haan tumhar sabhi tippaniya sahej ke ek jagah poast kar di hain.....
...itni acchi betarteeb nahi suha rahi thi !!
.....ek baar phir mere priya dost ko dhanyavaad !!
दर्पण जी को जन्मदिन की ढेरो बधाई और शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया । शुभकामनायें ।
ReplyDeletedarpan bachwa ko janmdin ki bahut saari badhaiyan...
ReplyDeleteaDaDi
दर्पण शाह को जन्मदिन मुबारक्!
ReplyDeleteदर्पण जी जन्मदिन मुबारक..!!
ReplyDeletevaवह दोस्ती हो तो ऐसे भी और ऐसी भी। एक दूसरे से पूछ कर दोस्ती?? दर्पन को जन्म दिन की बहुत बहुत बधाई और आपको भी मगर मिठाई हम आपसे ही खायेंगे।
ReplyDeleteDERI SE HI SAHI PAR ..दर्पण जी को ढेरो बधाई ......
ReplyDeleteआपकी रचना भी कमल की है आफताब जी ...... सुन्दर और बहुत ही पावन लिखा है .......
kahan ho luptpray mitr?
ReplyDeletemain palak pavdein bichakar intzaar kar raha hoon..
dosti salamat rahe sada ,darpan ji ko janmdin mubarak ho .tum jiyo hazaro saal .
ReplyDeleteमेरे घर की दीवारे हिलती हैं लेकिन ढहती नहीं ...............मोहोबत्त,मित्रता ...........कभी ढह भी नहीं सकती ................... ढह गयी तो कुछ था ही नहीं .............ढकोसला था .........और मित्र मैं ढकोसला ,नहीं तुम्हारा मित्र होना चाहता हूँ .................मुंशी प्रेम चन्द्र कह गए हैं - प्रेम गहरा होता हैं ,मित्रता और भी गहरी...in pankatio ko kyee baar padha or kitni der sochti rahi...isliye nahi ki kuch mushkil tha..dosti kitni gahri hoti hai...ye to pata tha aapki bate fir se yaad dila gyee...
ReplyDeletedarpan ji ko janam din mubark is sundar rachna ke saath .
ReplyDeleteTum aa gaye dost???
ReplyDeleteइस अच्छी रचना के लिए
ReplyDeleteआभार .................
सही कहा आपने
ReplyDeleteसुन्दर रचना
आभार