मैं जानू अहसास नया जो तेरे अन्दर चलता है
जीवन की वे बातें तुमसे जो शाम सवेरे हो जाती है
मुझको तो वरदान लगे है
मन सागर मंथन जैसा है
कैसे कह दूं कोई कविता ,
हाँ तुझ तक शब्द पहुचते हैं
पर तेरे आँचल मैं जाकर के वे
तेरे ही हो जाते हैं ।
ना ओर दिखे ना छोर दिखे
मुझे शब्दों की ना कोई डोर दिखे
कैसे पकडूं उन शब्दों को जो जीवन के हो जाते हैं
जो जीवन से भी प्यारे है
मन सागर मंथन जैसा है
अच्छी बुरी वे बातें सारी
जो तेरे स्वर मैं हो जाती है
मुझको तो वरदान लगे हैं
मन सागर मंथन जैसा है
कैसे लिख दूं प्रेम तुम्हे मैं
जो पाती मैं लिख हूँ प्रेम अगन में जल जाती हैं
इन बातों का इतिहास नया हैं
तुम जैसे चाहो बन जाएगा
पर मुझको इतना बतला दो तुम
कैसे जीता इतिहास बिना मैं जो ये वर्तमान में ना घटता
घटनाओं का क्या है जानम
जब घट जाए तब घट जाए ,कब घट जाए
पर तेरे मेरे जीवन की यह अमीत कहानी
ना इतिहास नया हैं ना प्रीत नयी हैं
यह बात पुरानी
तुम मेरे जीवन की आवाज़ पुरानी
तुम मेरे ह्रदय की हो प्यास पुरानी .......................................
ऋषभदेव शर्मा के काव्य में स्त्री विमर्श
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*शोध पत्र *
ऋषभदेव शर्मा के काव्य में स्त्री विमर्श
*- विजेंद्र प्रताप सिंह*
हिंदी में विमर्श शब्द अंग्रेजी के ‘डिस्कोर्स‘ शब्द के पर्याय के रूप में
प...
9 years ago
bahut hi acchi aur shaandar rachna .bahut der se ise padhkar chup hoon , jkya kahun , samaj nahi aaya .. bus yaar maun hoon ..
ReplyDeletebadhai sweekar kare ..
vijay
pls read my poem "jheel " on my blog : www.poemsofvijay.blogspot.com
हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
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