Tuesday, 6 January 2009

याददाश्त

रतज़गे की आदत मुझको बचपन से तो नही ,

बस यूँ ही जागता रहता हूँ इनदिनों

सच तो ये हैं अब सोने कि कोई चाहत ही नही

हा मुझे याद हैं एक बार रात के सन्नाटे में सुनी थी एक चीत्कार

चेतना के पार महाचेतना कि झंकार

पर ना जाने क्यों मेरे यौवन ने वहां जाने से कर दिया इंकार

सोचता रहा हूँ रातों रातों ,सिर्फ़ उस एक रात की बात

दिल की तड़प अकेली थी उस वक्त

वक्त का वो दौर ........................... .............................

अब कौन दोहराएगा ...........

2 comments:

  1. vartman paristhiti main ratjage to chal rahe hai ; apni surksha ko lekar ratjaga , apni mehtavkanshao ke ratjage .. intzar hai us ratjage ka jab yuva pidi desh ki unnati aur vikas ke liye ratjaga karegi.... vandematram

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  2. दिल की तड़प अकेली थी उस वक्त

    वक्त का वो दौर ......

    अब कौन दोहराएगा .



    बहुत खूब, लाजबाब !

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