दोस्तों , इश्क़ ! ! ! तेज़ भागती हमारी दुनिया में दरअसल कोई खबर नहीं बन पाता. खबरे तो देश ,दुनिया और समाज की होती हैं न ,उन लोगो की जो इस समाज में रहते हैं, उन घटनाओ की जो दुनिया में आये दिन घटती रहती हैं. और अंततः इंसान ,समाज ,सरकारों और संस्थाओ के अन्दर पलते-बनते-बिगड़ते रहने वाली अपच की , उन वेगो-संवेगों की जिन्हें हम कभी साज़िश कहते हैं, कभी,राजनीती, कभी पाखण्ड , बुद्धिजीवियों की नज़र में जो डिप्लोमेसी हैं ,क़ानून हैं, इकोनोमी हैं ,इन्फ्लेशन जैसे भारी खरकम शब्द , पेचीदगिया और तमाम मसले......... जो खबर गंभीर खबर बनते हैं.....अभी मैंने क्रिकेट ,करीना कपूर और ऐश्वर्य राय के प्रेगनेंसी वैगेरह की कोई बात ही नहीं की......असल में ये और भी ज़रूरी खबरे हैं , और तमाम खबरे और भी हैं जो शायद इनसे भी ज़रूरी हो .........पर ऐसी खबरों के बारे में आपसे बाते करना मुझे ज़रूरी नहीं लगा. सत्तर फीसदी युवाओं के मुल्क़ में इश्क़ ,अमृता और इमरोज़ किस किस कदर बेखबर हो गए हैं न ये तो कोई खबर हैं और न ही खबर नवीसो को ऐसी कोई फिकर ही हैं. वरना हमें इश्क़ की वो इमारत, इश्क़ का वो घर के-२५ होजखास ज़रा बहुत तो ख़ास लगता.पूछा जा सकता हैं ऐसा क्या हुआ हैं, कितनी ही बिल्डिंगे बिकती हैं...अच्छा अमृता प्रीतम उनका घर था ,कब बिका ,क्यों कुछ ख़ास था. इसमें काहे की खबर आप तो हर एक बात को मुद्दा बना लेते हैं. दोस्तों यह मुद्दा नहीं दरअसल मुद्दतों और शिद्दतों के बाद ऐसे घर बनते हैं . ईंट ,गारे और कांक्रीट आप भी जुटा लेंगे ,हम भी , बढिया से बढिया ड्राइंग बना लेगे.......और तमाम तामझाम और इस हद तक की कोई इमारत, और मकान घर बने न बने बाज़ार की दुनिया में खबर ज़रूर बन जाएगा ...पिछली तारीखों में कई उदाहरण मिल जायेगे ऐसी तमाम बिल्डिंगे बनी भी हैं और बिकी भी. और अब भी बन रही होगी. पर के-२५ होजखास जो भी हैं मात्र बिल्डिंग नहीं हैं,एक अदद घर हैं. अमृता-इमरोज़ का. और अमृता-इमरोज़ हमारे वक़्त और मुल्क का इश्क़ ....हां साहब सही सुना वही ढाई अक्षर जिसका अहसास होने में उम्र बीत जाती हैं ,और ज़रूरी नहीं की इस अहसास को आप जी ही ले.....ज़िंदा रहने के लिए रोटी कपड़ा और मकान चाहिए, और ज़िंदा रहे तो जिंदगी ...और जिंदगी के लिए इश्क़ . और इश्क़ का पता हैं के -२५ होजखास .पर यह पता अब खोने वाला हैं, खो गया हैं . पर दोस्तों यह महज़ पता नहीं हैं. इस पते के साथ इश्क़ भी लापता घूमेगा कही ,कोन जाने किस हालत में . हम प्यार बाटने वाले मुल्क है दोस्तों .तो क्या अपने ही वक़्त और मुल्क का प्यार ,इश्क़ ,हमारे रहते ही कही खो जाएगा ,ज़िंदा कोमे इश्क़ को लावारिस और लापता नहीं होने देती.......पर यह हो रहा हैं,दोस्तों हो गया हैं. अमृता-इमरोज़ के रिश्ते को पहचानिए ,इश्क़ को कही अपनी रूह में टटोलिये .अमृता की नज्मों में ,इमरोज़ के रंगों में ,उनकी दीवानगी ,83 बरस की उम्र में उनकी रूमानियत में और अंततः के-२५ होजखास में हमने इश्क़ को देखा हैं ........और अगर नही देखा हैं तो इश्क़ के इस घर में हमेशा देख सकते हैं.....पर सिर्फ अमृता-इमरोज़ के घर में .........दोस्तों इमरोज़ के दुःख में ज़रा आहिस्ता से शामिल हो जाइए आप भी इश्क़ की इस ईमारत के लिए तड़प उठेंगे ...सोते-जागते -सुबह-शाम-रात और दिन वो अमृता से नज्मे सुनते हैं कभी अमृता को सुनाते हैं ,अपने रंगों और खयालो में अमृता के माथे पर बिंदिया लगाते हैं, कभी चाय पीते हुए इंतज़ार करते हैं की अमृता कोई अधूरी नज़्म कब पूरी कर दे ........चाँद को देखकर इमरोज़ को अमृता की रोटी याद आती होगी और कभी अमृता के वो रूहानी सपने जो के -२५ होजखास में अमृता के साथ अब भी रहते हैं...बकौल इमरोज़ "रिश्ता बांधने से नहीं बनता -नहीं बंधता" अमृता ने कहीं कहा हैं.. मोहोबत्त और मज़हब दो ऐसी घटनाएँ हैं जो इंसान के अन्दर से आनी चाहिए ..........सच! इश्क़ लाखो लाखो में कभी कभी किसी किसी को घटता हैं....अमृता-इमरोज़ हमारे वक़्त के ऐसे ही दो नाम हैं . ..अल्टीमेट लव लेजेंड ...जो धर्म ,समाज क़ानून और संस्स्कारो से कही आगे की बात हैं.......अमृता की नज़्म ज़हन में हैं........आदि --धर्म
मैं थी -और शायद तू भी
शायद एक सांस के फासले पर खड़ा
शायद एक नज़र के अँधेरे पर बैठा
शायद अहसास के एक मोड़ पर चलता हुआ
लेकिन वह परा एतिहासिक समय के बात हैं .........
यह मेरा और तेरा वजूद था
यह तेरे और मेरे वजूद का एक यज्ञ था दोस्तों! इमरोज़ उस शख्स ,शख्शियत और अहसास का नाम हैं जो अमृता की नज्मों में बहुत होले से ,आहिस्ता से नुमायाँ हुआ हैं ,जहाँ कोरी बोध्धिकता के लिय कोई जगह नहीं हैं असल में हमें इसे इश्क़ का नूर कहना होगा जो हमारे हांथों में इश्क़ हकीकी का पैगाम हैं....... अमृता के लिए हमें हमारे इमरोज़ संभाल कर रखना होगा.
.-इमरोज़ आनायास ही ऐसे विस्मय लोक में पहंचा दिए गए हैं ,जहा वो चाह कर भी अपनी हथेली की लकीरों पर लिखे अमृता के नाम को छू नहीं पा रहे हैं ,और यही तड़प उनकी वसीयत हैं प्यार करने वालो को तड़पता हुआ देखना शायद हमें अच्छा भी लगता हैं ,अमृता के बच्चो को भी अच्छा लग रहा हैं .राधा-कृष्ण से लेकर हीर-रांझा तलक कही किसी न किसी रूप में इश्क़ तड़पता रहा हैं और हम हरबारी खुश होकर अपना मिथिहास और इतिहास बोध पुख्ता करने का भ्रम पालते रहे हैं. इमरोज़ ,के-२५ होजखास और अमृता के साथ भी हम यही करने जा रहे हैं. दोस्तों यह हमारा सौभाग्य हैं की हम हमारे वक़्त और मुल्क के इश्क़ अमृता-इमरोज़ को समय के किसी न किसी हिस्से में देख पाए हैं .वक़्त हमें इश्क़ का पता बता चुका हैं, यही वक़्त हैं जब हमें इस पते को इतिहास में दर्ज़ करना हैं...क्या राधा-कृष्ण ,शीरी-फरहाद के इस मुल्क़ में अमृता-इमरोज़ का घर हमेशा हमेशा के लिए इश्क़ और प्रेम के स्मारक के तौर पर नहीं पहचाना जाना चाहिए ? क्या इमरोज़ की तड़प में हमें उन्हें अकेला छोड़ देना चाहिए ? क्या मुल्क़ के और हमारे वक़्त में इश्क़ की जीवित किवदंती बन चुके अमृता-इमरोज़ को ऐसे ही भुला दिया जाना चाहिए? और इश्क़ की ईमारत के-२५ होजखास को यु ही बिक जाना चाहिए? क्या कोई साहित्यिक ,सामाजिक संस्थाए के २५ होजखास को बचाने के लिए कोई रचनात्मक पहल करेगी या सरकार के साथ किसी तरह का सकारात्मक बातचीत संभव होगी ? क्या हमारी यह ज़िम्मेदारी नहीं बनती की हम के - २५ होज्खास को हमारे समय-समाज और देश का प्रेम स्मारक, art gallery या स्रजन क कि कोइ निषाणि बनाकर अमर कर दे ?
जो दुनिया की आदि-भाषा बना
मैं की पहचान के अक्षर बने
तू की पहचान के अक्षर बने
और उन्होंने आदि-भाषा की आदि पुस्तक लिखी ...........
यह मेरा और तेरा मिलन था
हम पत्थरों की सेज पर सोए
और अन्हे,होंठ,उँगलियाँ ,पोर
मेरे और तेरे बदान के अक्षर बने
और उन्होंने उस आदि पुस्तक का अनुवाद किया
रेग्वेद की रचना तो बहुत बाद की बात हैं .............
मैं ने जब तू को पहना
तू दोनों ही बदन अंतर्ध्यान थे
अंग फूलो की तरह गूँथ गए और रूह की दरगाह पर अर्पित हो गए
तू और मैं हवं की सामग्री
जब एक-दूसरे का नाम होंठो से निकला
तो वह नाम पूजा के मंत्र थे
धर्म-कर्म की गाथा तो बहुत बाद की बाद हैं.......।।।।।।।
जिस माटी ने , वक़्त ने , मुल्क़ ने हमें ऐसा हसीं रूह और इश्क़ बक्शा हो उसके लिए की हम ज़रा बहुत ही इमानदारी नहीं बरत सके.....! 1 !
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