प्रिय तेरे प्राणों में प्राण मेरे ,
तेरी सांसों की हलचल से कुछ छुअन हुयी हैं मेरे अंग में ,
भाव-भंगिमा ही बदल गयी हैं ,
कहती हैं सब लोक की नज़रे ,
दशों दिशाओं से आमंत्रण पर मेरा कुछ अधिकार नहीं हैं ,
मेरा हुआ यह भाग्य भी तेरा ,
इन सांसों का सोभाग्य यही हैं ,
यौवन की मधुशाला में जीवन-अमृत बरसे हैं ,
सुख की क्या मैं बात करूँ अब दुःख भी सच्चा लगा रे ,
मेरी शक्ती ,प्रेम-प्राण तुम ,जीवन का वरदान -ज्ञान तुम ,
काव्यशास्त्र की मेरे कविता ,मेरी स्रष्टी मेरी सरिता ,
प्रेमांचल में बांध लिया हैं मेर्री चंचल वृत्ति को ,
मैं ठहरा गौरी-शंकर का राहगीर ओ प्रियवती ,
माँ पार्वती की घौर तपस्या ,और शिव का यूँ ओगढ़ होना ,
जीवन में अब अर्थ हुआ हैं ,अर्धनारीश्वर का सोभाग्य मिला ,
अर्धान्गिनी बन जाओ जानम मेरे अंतर्मन लावण्य की ,
चंचल - चितवन यौवन मेरा प्रेम-पीपासु जीवन हैं ,
मंत्र -मुग्ध कर दो मुझको तुम काव्यशास्त्र की सूक्ती से ,
प्रेमशास्त्र से घायल कर दो मेरे तन मन यौवन को ,
अन्तर्मन की तुम्ही वेदना ,तुम्ही हो मेरी अखण्ड चेतना ,
जीवन का सोन्दर्य तुम ही हो ,ह्रदय का झंकार हो जानम ,
तुम से पहले कितनी बातें मैंने नभ से बोली हैं ,
यौवन की गुफाओं में रानी मन व्याकुल था मिलने को ,
प्रेमपाश में भर लो मुझको ,नई कविता सिखलाओं ,
जीवन के श्रम -संघर्षों को न्रत्यागना बन कर गाओ ,
कैसा भी व्यवधान हो नृत्य - साधना नहीं थमेगी ,
वीर पलों की अभिव्यक्ती अब खजुराहो में ही होगी ,
दशो -दिशाओं में हैं आमंत्रण ,वात्स्यान का कामशास्त्र अब जीवन का संस्कार बनेगा ,
क्यों भूल गए हम नाट्यशास्त्र को ,क्या यह सिर्फ इतिहास रहेगा ?
भरत-मुनि का नाट्य शास्त्र अब जीवन गौरव गान बनेगा ,
न्रत्यागाना बन जाओ जानम ,
भरत-वर्ष का प्रताप जागेगा ................................................
bhavapoorn achchi rachana . badhai.
ReplyDeletebahut khoobsurat rachana padhte huye bachchan ji ki rachnaaye yaad aa gayi .
ReplyDeleteSachmuch ye premanchal ki kavita hai...
ReplyDeletebahut hi sundar hai .....jiwantera jiwan mera.........bahut hi sundar
ReplyDeleteSudarta-se sajee huee rachna..!
ReplyDeleteBahut alag-see...
खुबसूरत रचना , बेहद खुबसूरत अंदाज़ में .
ReplyDeleteअति सुन्दर
ReplyDeleteaditya ji jis shiddat se aap meri kavitaaein padhtein hain aapka baar baar shukriya karne ka man hota hai,
ReplyDeletekshama karein ki main aapke blog pe ek baar bhi nahi aa paya aur nazmon ka anmol khazana choot gaya...
"....nai kavita sikhalao"
.....bahut khoob !!
बहुत खूबसूरती के साथ आपने अपनी मातृभूमि के साथ प्रेमभाव दर्शाया है। बहुत बहुत अच्छा लगा। वाकई में....
ReplyDeleteamazing poem ji , shabd jaise ji uhte ho .... badhai sweekar karen...
ReplyDeletenamaskar
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
adbhut aur shaandar rachana .baaki sabne kah diya .bahut hi gahrai liye huye hai .
ReplyDeleteभाई वाह क्या भाव है। लाजवाब रचना।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना है बधाई जय हिन्द्
ReplyDeleteek khubsoorat rachana badhaaee
ReplyDeleteरचना बहुत अच्छी लगी....बहुत बहुत बधाई....
ReplyDeleteसुन्दर रचना की बधाई!
ReplyDeleteआज़ादी की 62वीं सालगिरह की हार्दिक शुभकामनाएं। इस सुअवसर पर मेरे ब्लोग की प्रथम वर्षगांठ है। आप लोगों के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष मिले सहयोग एवं प्रोत्साहन के लिए मैं आपकी आभारी हूं। प्रथम वर्षगांठ पर मेरे ब्लोग पर पधार मुझे कृतार्थ करें। शुभ कामनाओं के साथ-
रचना गौड़ ‘भारती’
behtarin rachna, bhai sahab
ReplyDeleteaditya ji ab to nai kavita sikhlaao?
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