चलो अब उठ भी जाओ प्रिय ,
खुबसूरत सी यह सुबह ,मेरे साथ तुम्हारे जागने को प्रतीक्षारत हैं ,
देखों अब करवटें ना बदलों ,
रात के साथ जिस्म की थकान भी ढल चुकी है जानम ..........................,
मेरी तरह दिलकश रात भी जैसे तुम्हें आगोश में भर लेने को मचलती हैं ,
मेरी जान यह सुंदर सुहानी सुबह भी बतिया रही हैं कि तुम्हारे अंतस ,तुम्हारी आत्मा से शबनम रात भर में तुम्हारे जिस्म पर उग आई हैं ,ये हमारे प्यार की निशानी हैं ,
उठो और मेरे साथ ,सुंदर मन भावन सुबह के साथ ,अपने जिस्म पर खिलते हुए आत्मा के सोंदर्य को निहार लो ........................,
प्रिय ये शबनम की बूंदें कदाचित प्रेमशास्त्र का अदभुत काव्य हैं ,
उठो आओ ,सुंदर सुबह को साक्षी मान साथ-साथ इस अदभुत आत्म-सोंदर्य की परिक्रमा करे ,
तुम्हारे बदन पर शबनम ,शबनम नही हमारे प्रेम का ताप हैं जानम ,
जीवन का उत्कर्ष यही हैं ,
दाम्पत्य का संयोग यही हैं ,
यही हैं बिन बांधें का बंधन ,
जो अनायास ही बंधता जाए ,
शादी ब्याह ,कोर्ट -कचहरी यह तो सब संघर्ष की बातें ,
जीवन तेरा प्रेम हैं मेरा ,यह तो स्यम स्वतंत्र ही बढता जाए ,
खैर ,कहाँ पहुच गया मैं जानम ...............,
चलो अब उठ भी जाओ .........................................................
बहुत सुन्दर रचना . बधाई .
ReplyDeleteरात की खूबसूरती आपकी कविता ने और बड़ा दी
ReplyDeleteप्रेम की चाहत हर दिल में आपने जगा दी
इसी तरह लिखते रहे