मानो सत्ता और राजनीति के आलिंगन ने प्रधानमंत्री के कान में अंगडाई ली हो और उन्होंने चुपचाप सुन लिया हो कि हम आज़ाद ख्याल लोकतंत्र हैं हम किसी तसलीमा के चक्कर में अपनी सरकारी आज़ादी क्यों दाव पर लगाये .........
दरअसल राजनीती की यही दिक्कत है
ं कि उसे किसी भी तरह की एकता में श़क होता हैं ........शायद यह श़क ही उनकी संजीवनी हैं सभी सरकारों और राजनितिक पार्टिया के मध्य यह बहुत बड़ा भ्रम हैं कि तमाम मसले जस के तस बने तो उनका अस्तित्व सुरक्षित हैं गोयाकि वे मुद्दों को सुलझाने का सिर्फ ढोंग करते हैं .............और आज़ाद भारत की जनता उनसे उनके इस पाखंड के विषय में कुछ कह भी नहीं पाती ...........यह एक बहुत बड़ी गुलामी में जिसमे यह आज़ाद मुल्क़ ज़ी रहा हैं ...........या शायद मर रहा हैं . इसी गुलामी के चलते एक सौ पच्चीस करोड़ के मुल्क़ में एक भी नहीं जो सरकार से कह पाए कि भले ही आप नपुंसक बन जाए पर हम हमारे लिए कलम थामने वाली तसलीमा के साथ हैं ...............हिंदी का सबसे छोटा शब्द्पुत्र मैं अपने ब्लॉग पर पहले भी कह चूका हूँ कि हमारी नपुंसक सरकार के खिलाफ मैं अपने घर हिन्दुस्तान में तसलीमा नसरीन का स्वागत करता हूँ ...........
कोई आश्चर्य !नहीं कि इन सियासी हुक्मरानों ने कभी लज्जा पढी ही ना हो .............गर ये एक दफ़ा भी पढ़ लेते तो खुद लज्जित शर्मशार हो जाते .........नहीं नहीं दरअसल लज्जा शर्म ये इंसानी तहज़ीब हैं .काश!!! के यह भेढीयें इंसान हो पाते ...............हाय रे भेधीयाँ धसान ...........
आखिर ये कहाँ कहाँ और कब तलक किस-किस बात पर शर्मशार होगें ......... लोकतं
त्र को ग्लोबलाईजेशन के बहाने लूटतंत्र बनाने वाले इन आकाओं के खिलाफ धीरे ही सही हमारा यंगिस्तान जाग रहा हैं युवाओं के बीच इनदिनों एक एसेमेस खूब लोकप्रिय हो रहा हैं .....................यह एसेमेस कुछ इस तरह हैं - हिन्स्तान एक ऐसा मुल्क़ जहा पिज्जा ,एम्बुलेंस ,पुलिस और दूसरी निहायत ज़रूरी सेवाओं के पहले पहुँचता हैं ,
जहाँ कार लोन ५% की ब्याज दर पर उपलब्ध हैं और शिक्षा ऋण के लिए आप १२% ब्याज चुकाते हैं ...जहाँ चावल ४० रूपये किलो और दाल ८० रुपये किलो हैं पर सिम कार्ड मुफ़्त मिलता हैं ,देवी मान नारी का गुणगान करते हैं और कन्या भ्रूण हत्या बहुत सहजता से करते हैं .जहाँ धोनी बल्ला घुमाये तो करोड़ का और मजदूर गड्डा खोदे तो भाव ताव करते हैं ........................ऐसा ही इनक्रेडिबल इंडिया
ऐसा नहीं हैं कि यह सिर्फ हमारी सरकार या राजनीतिज्ञों का चरित्र हैं ........हम भी जीवन भर दोहरे चरित्र का खेल खेलते रहते हैं ........तमाम रिश्तें झूठ के सहारे उम्र भर आराम से चलते हैं .........यहाँ जिसे जीते जी ढंग से रो जून की रोटी नसीब न हुयी हो मरने के बाद उसका श्राद्ध पकवान बनाकर किया जाता हैं........ यह अब जगजाहिर हैं कि यहाँ अक्सर वही इमानदार हैं जिसे बईमानी का मौका न मिला हो ...............यह बात रिश्तों से लेकर धंधे तक लागू होती हैं ..........निदा फ़ाज़ली साहब ने हमें इसी तरह टटोला हैं "हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी जिसे भी देखना कई बार देखना ........"
क्या सिर्फ पासपोर्ट ,पेनकार्ड ,चुनाव आयोग पहचान पत्र या किसी बाबू को रिश्वत देकर राशन कार्ड पर अपना नाम लिखवा भर लेने से हमारी आज़ादी प्रमाणित हो जाती हैं . बकौल महान सार्वकालिक पत्रकार प्रतिश नंदी " पहले भी भ्रष्टाचार होता रहा हैं .......पर आज के भ्रष्टतम दौर में आपके पास इमानदारी कोई विकल्प ही नहीं "
गोयाकि सिस्टम में रहना हैं काम करना-करवाना हैं फिर आप चाहे न चाहे आपको तयशुदा कमीशन अधिकारियों,मंत्रियों ,बाबुओं,दलालों .तक पहुचाना ही हैं .........अब शिक्षा और चिकित्सा जगत ने भी अपने अपने कमीशन जारी कर दिए हैं .........हां अपने वाले के लिए दो चार प्रतिशत की रियारत मोज़ूद हैं ........
.....मध्य प्रदेश के एक विश्वविद्यालय में जितने प्रतिशत (मार्क्स)आप बनवाना चाहे ......बस पैसा फैकियें ........दस से पंद्रह हज़ार सिर्फ एक सब्जेक्ट का.इसमें भी सत्तर परसेंट बनेगा .ज़्यादा मार्क्स चाहिए सिंपल हैं , पैसा ज़्यादा कर दीजिये .........सब गन्दा हैं पर धंधा हैं ये ........जो विद्यार्थी मेडिकल ,इनजिनिय्रिंग और एम् बी ए की सीट और डीग्री खरीदने के लिए रिश्वत दे रहे हो उनसे मुल्क़ को भला क्या उम्मीद रखनी चाहिये .................. आज़ादी की अफीम खाकर सो रहे हैं हम और आप ......और मन -मष्तिष्क के ज़हनी गुलामी हर रोज़ दो दूनी चार हो जाती हैं .................ज़हनी तौर पर गुलाम मुल्क़ तू ज़रा अमृता प्रीतम को सुन ले
काया का जन्म माँ की कोख से होता हैं ,
दिल का जन्म अहसास कि कोख से होता हैं
,मस्तिष्क का जन्म इल्म कि कोख से होता हैं ,
और जिस तहज़ीब कि शाखाओं पर अमन का बौर पड़ता हैं ,उस तहज़ीब का जन्म अंतर्चेतना कि कोख से होता हैं ......
दोस्तों पकिस्तान तो तिरेसठ बरस पहले बना दिया गया था ,पर उसके बाद आज़ादी की अफीम अपना असर दिखती रही और हिन्दुस्तान में कितने ही दरिद्र भारत बन गए .........
ये बटवारे बिलकुल चुपचाप हुए इसमें बन्दूक तलवार नहीं ........व्यवस्था की मार पढ़ी और पेट की आग में हिन्दुस्तान जल गया बंट गया.......और हम सिर्फ शाइनिंग इंडिया ही गाते रहे ...........किसी भी ने श न ल हाइवे से आप दस बीस किलोमीटर चले जाए फिर आप शाइनिंग इंडिया वाह नहीं दरिद्र भारत आह करेगें .............अब तो सरकार विज्ञापन में सफ़ेद झूठ बोलती हैं .........ये कहते हैं घरेलु गेस पर २२४ रुपये की सब्सिडी देते हैं ..........पर ये नहीं बताते कि पेट्रोल-डीज़ल के असली कीमत क्या हैं और कितना टेक्स लेते हैं ........सत्रह रूपए के पेट्रोल पर केंद्र सत्रह रूपए और राज्य सरकार इक्कीस रुपये मिलकर कुल अडतीस रुपये वसूली करते हैं ......सरकार शुरू से ही हर व्यवस्था पर अपना नियंत्रण चाहती हैं ........पहले यह दूघ बेचा करती थी .........यह तब की बात हैं जब अमूल और दुसरे ब्रांड बाज़ार में नहीं थे ......फिर सरकारी ब्रेड भी बेची गयी ,जगह जगह स्टाल लगाकर इडली डोसा बड़ा साम्भर ..........फिर जब बासा दूध ब्रेड और इडली नहीं चली तो उसे समझ आया कि यह सब सरकार का नहीं असल में व्यापारी वर्ग का काम हैं .सरकार का काम कुछ और हैं ...........पर जिस सरकार पर पूरे मुल्क़ को चलाने की ज़बब्दारी हैं वह आज़ तलक यह अपना काम नहीं इजाद कर पायी हैं तभी तो उत्तर प्रदेश में मायावती मुख्यमंत्री की बजाय तानाशाह बनती जा रही हैं मायावती के लक्षण देखकर लगता हैं उनके आदर्श लोकतंत्र में मोजूद ही नहीं हैं ........मायावती सरकार किसानो के साथ प्रोपर्टी डीलर का खेल खेल रही हैं .........और घोर आश्चर्य कि गंगा जमुना की उपजाऊ ज़मीं पर कंक्रीट का जंगल क्यों बसाया जा रहा हैं ................ऐसे ही पूरे लखनऊ में कितने ही हाथी और अपनी खुद की मूर्तिया लगवा दी ..एक हाथी पर कोई साठ लाख का खर्च आया हैं ...............और दुर्भाग्य देखिये जिस किसान पर मात्र अठारह हजार का क़र्ज़ हो वह आत्म हत्या कर लेता हैं .........साठ लाख का एक एक हाथी और अठारह हज़ार क़र्ज़ किसान पर ..............
उत्तर प्रदेश के गरीबों की तकदीर बदल जाती मायावती जी जितने पैसे में आपने वहां अपनी मूर्तिया गडवा दी ....ये कैसी आज़ादी हैं ???????????????????/और इस सारे तमाशे में हम तमाशबीन बन गए ..और बहुतेरे तो शादियों में ढोल बजाकर लाखों करोडो लूटा देते हैं ...........ये किस मुल्क़ है जहा तीस तीस आदमियों का खाना एक वी आई पी की थाली में हो और आधा हिन्दुस्ता भूखा मर रहा हैं .........किसी थ्री फाईव् स्टार के वेटर से पूछिए वो कहेगा रोज़ हज़ारो लोगो का खाना फेंक दिया जाता हैं ...............मध्य प्रदेश के भोपाल में आपको ऐसे कितने लोगो से मिलवाया जाए जो झूठन खाते हैं .........भोपाल सब्जी मंदी के पास एक महोदय नाली में से रोटी का टुकड़ा निकाल कर पेट की आग बुझाते हैं .........सुप्रीम कोर्ट ने तो सर्कार से आखिर कह ही दिया हैं कि अनाज अगर गोदाम में सड़ रहा हैं तो गरीबों को मुफ्त बांट क्यों नहीं देते ????????
कैसी खंड खंड तस्वीर हो गयी मेरे अखंड भारत की .......................दोस्तों किन किन मसलों को याद करूँ ...........भोपाल गेस त्रासदी .............कितने ही भ्रष्ट एन जी ओ ने झूठी रिपोर्ट बनाकर लह्को कूट लिए लूट तंत्र में ............एक मंत्री भोपाल आकर कहते हैं ..........अब इतना असर बचा नहीं गेस के रासयनिक दुष्प्रभाव का ..............वो बदतमीज़ पिछले पच्चीस बरसों को तमाच्चा सा मार गया ..और हम सुनते रह गए लोकतंत्र में .............
अमृता जी तहज़ीब बन कई मर्तबा कराह चुकी हैं .......ये दर्द गा चुकी हैं -
तूने ही दी थी जिन्दगी - ज़रा देख तो जानेज़हाँ !
तेरे नाम पर मिटने लगे - इल्मों-तहज़ीब के निशां,
तशद्दुद की एक आग हैं - दिल में अगर जलायंगे,
सनम की ख्वाबगाह तो क्या - ख्वाब भी जल जायेंगे .
दरअसल आज़ हम अपनी सतही ज़रूरतों की खातिर अपने आप को खोते जा रहे हैं ...........आप पैसा कमायेये ........कार खरीदेये ,बेंक बेलेन्से बढ़ाये ,सीमेंट कांक्रीट के महल या जंगल में शेम्पेन उढ़ाये ..........पर हमारी प्रक्रति की गोद में बैठकर माँ दुर्गा के वाहन हमारे राष्ट्रिय पशु को मारने का अधिकार आपको किसने दिया ............मीट मार्केट में जाने के बजाए जंगल में प्यारे मासूम हिरनों पर फायर करना इतना सहज कैसे लगता हैं भला ...........अपनी कामशक्ति बढाने के लिए जानवरों को मारकर उनकी उनके अस्थि-पंज़रों को निगल जाना कितना हैवानियत भरा हैं ..........अरे काम तो जीवन का उत्सव हैं .धर्म अर्थ काम और मोक्ष ये तो जीवन के महान संकल्प हैं ...........आप उन सर्वोतम अन्तरंग पलों में भी जीवन और प्रक्रति के अपराधी क्यों कर बनना चाहते हैं ...........ऐसा कर आप अपने सम्पूर्ण वंश को ही कलंकित कर रहे होते हैं .............ऐ इंसान ज़रा इंसान बनकर दिखाओ थोड़ी कशिश हैं और हैं मोहोबत्त तुम मोहोबत्त से देखों किसी को कही भी ..........
हिन्दुस्तान एक सतरंगी ग़ज़ल है दोस्तों ............गर हम मिलकर इसे गुनगुनाये तो .............ये हमारी तहज़ीब का नया वरक होगा जिसे हमें हर हाल में खोलना ही होगा ............क्या आज़ यह मुमकिन हैं कि लाहौर ,ढाका और नयी दिल्ली से विद्य्थियों का एक जत्था आतंकवाद के मसले पर एकजूट होकर शिध कार्य करे ..............दिल्ली के जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय की तर्ज़ पर पूरे राष्ट्र में नये सामयिक शोध पाठ्य क्रम संचालित किये जाए ,यहाँ के अखबार भारतीय उपमहादीप पर साप्ताहिक विशेष सामग्री प्रकशित करे .............भारतीय उपमहादीप अपनी एक स्वतंत्र विदेशी नीति तैयार कर गौरी चमड़ी वालो को उनकी सरहद और हद समझाए ,शाइनिंग इंडिया और दरिद्र भारत का फासला कम करने वास्ते विश्वविद्यालय के स्टुडेंट आगे आये .........कॉर्पोरेट सिर्फ कागज पर कॉर्पोरेट सोशल रेसपोंसबिलितिस न चलाये ..........हम पर्यावरण को हमारी गुड मोर्निंग में शामिल कर ले , .............एक लेख में तमाम बाते कह पाने की मेरी सामर्थ्य नहीं हैं ...........पर जो ज़रूरी हैं वह यह कि दुनिया के सबसे ज्यादा युवा शक्ति संपन्न मुल्क़