उखड़ा पौधा हरा भरा हैं ,
एकाध दफ़ा तो मरकर देखों ,
फूल खिला हैं कांटे भी हैं ,
काँटों पर थोडा चलकर देखों ,
मन मैला और हरामी ,मीरा की पायल पहन के देखों ,
मन की आदत जलने कि हैं
अपने अन्दर हवन जलाकर देखों ,
जलती काया मातम जैसी ,
ज़िस्म में रूह पिरोकर देखों .................