Friday 18 September, 2009

सुलगती आँच हैं लेकिन ................

जिन्दगी,दर्द ..और  किताब 


दोस्तों मेरे सपने में बहुत अन्दर ,गहरे में कोई एक किताब हैं ३६५-३६६ पेज़ वाली , 
बारह या तेरह खंड हैं उसमें ,
हर एक खंड में कोई तीस-एकतीस घटनाएँ .......
उन सभी घटनाओं के पास अपनी पूरी रात है और हैं पूरा दिन .
माँ अमृता प्रीतम का ज़िक्र हर रात-दिन सुबह और शाम में हैं .शायद यही किताब मेरी जिन्दगी हैं
और मेरी इस जिन्दगी का मकसद अमृता प्रीतम के साहित्य का  मिशनरी बन कर पूरी कायनात के कण-कण में पहुचना हैं , यह सब क्यों-कैसे-किस तरह मुमकिन होगा -नहीं जानता ,पर इतना सा अहसास हैं  कि
अमृता जी का पूरा  का पूरा लेखन खालिस इश्क़ हैं और अगर पूरी दुनिया इश्क़ से सरोबार हो जायेगी तो देश-दुनिया की तमाम तह्ज़ीबो पर इश्क़ की हरी पत्तियाँ लहराएगी -    

हरी पत्ती से याद आया २८ नम्बर १९९० को एक सेमीनार "पीस थ्रू कल्चर"विषय पर अमृता जी की तक़रीर को इमरोज़ साहब ने मन-मंथन की गाथा पुस्तक में तहज़ीब की हरी पत्तियाँ शीर्षक से संकलित-प्रकाशित किया हैं .
और बात जब तहज़ीब-तमीज़-संस्कृति की होती हैं मेरे ज़हन में आग-अंगारे और आक्रोश मेरी रूह को सुलगाने लगते हैं
मेरी आत्मा अग्नि बन जलने-तपने ,लपटें मारने लगती हैं ,
यह अग्नि कभी कलम पकड़ लेती हैं तो कभी किसी किताब में जाकर हमारी संस्कृति की गंगा में स्नान कर शांति-शांति-शांति तलाशती तहज़ीब की पत्तियों को सूखा हुआ देखकर फिर से अशांत हो उठती हैं .................धधकती रूह जिन्दगी की चादर को समेटती हैं और चादर जलती जाती हैं .............
अमृता जी  तहज़ीब बन कई मर्तबा कराह चुकी हैं .......ये दर्द गा चुकी हैं -

तूने ही दी थी जिन्दगी - ज़रा देख तो जानेज़हाँ ! 
तेरे नाम पर मिटने लगे - इल्मों-तहज़ीब के निशां,
तशद्दुद की एक आग हैं - दिल में अगर जलायंगे, 
सनम की ख्वाबगाह तो क्या - ख्वाब भी जल जायेंगे .
     ...........................तहज़ीब का बीज                      


अमृता जी का ही चिंतन हैं और वे हमारा आव्हान करती हैं -दोस्तों हकीक़त हैं की इंसान को छाती में चेतना का बीज पनप जाए तो उसी से तहज़ीब की हरी पत्तियाँ लहराती हैं और उसी की शाखाओं पर अमन का बौर पड़ता हैं ...........तहज़ीब  और अमन की बात पर में आप सब को मुबारकबाद देती हूँ ....................हमारे मिथहास (पुराणशास्त्र) में एक कहानी कही जाती हैं की आदि शक्ति ने जब सारे देवता बना लिए ,तो उन्हें धरती पर भेज दिया .देवता धरती पर जंगलों और बीहडों में घूमते रहे और फिर थककर आदि-शक्ति के पास लौट गए . कहने लगे -"वहां न रहने की ज़गह .न कुछ खाने को हम वहां नहीं रहेंगे ."कहते हैं उस वक़्त आदि-शक्ति ने धरती की और  देखा ,इंसान की और .और कहा -"देखों  ! मैंने इंसान को संकल्प की माटी से बनाया हैं. जाओ उसकी काया में अपने-अपने रहने की ज़गह पा लो ." आदि-शक्ति का आदेश पाकर वे देवता फिर धरती पर आये और सूरज देवता ने इंसान की आँखों में प्रवेश कर लिया ,वायु देवता ने उसके प्राणों में ,अग्नि देवता ने उसकी वाणी में ,मंगल देवता ने उसकी बाहों में , ब्रहस्पति देवता ने उसके रोम-रोम में अपने रहने की ज़गह बना ली और चन्द्र देवता ने इंसान के दिल में अपने रहने का स्थान खोज लिया............   अमृता जी आगे समझाती हैं इन्सान का कर्म और चिन्तन इन सभी देवताओं की भूख को मिटाता हैं ,लेकिन जब इन्सान के अन्दर चिन्तन खो जाता हैं ,कर्म मर जाता हैं ,चेतना का बीज ही नहीं पनपता ,तो यह देवता भूख से व्याकुल होकर मूर्छित से पड़े रहते हैं ................हमारी चेतना ही इन देवताओं का भोजन हैं ,जो देवता ,जो कास्मिक शक्तियाँ हमारे सबके भीतर मूर्छित पड़ी हैं - और उनकी याद हमसे खो गयी ,जिन्हें हम भूल गए यह उसी का तकाज़ा हैं कि कभी-कभी एक स्मरण सा हमारे ज़हन में सुलगता हैं ,हमारी छाती में एक कम्पन कि तरह उतरता हैं और कभी-कभी हमारे होंठों दे एक चीख कि तरह निकलता हैं ................................
और मेरा ख्याल हैं जब-जब यह चीख मेरे अंतस से निकलती हैं ...............मैं कहता हूँ .........मेरी संवेदना-चेतना-आत्मा की चीख-पुकार .............मेरी त्रयी माँ अमृता - मेरी आत्मा-चेतना-संवेदना .....................आज मेरी यह चीख हमारी तहज़ीब कि हरी पत्तियों कि खातिर अन्दर तक लहुलुहान कर गयी ................
ये चीख ये पुकार  ........................................................

ओ खुदा तेरे सज़दे में मेरी रूह घायल हुयी, 
पत्थरों का देवता फिर भी अब खामोश हैं ,
चारों और हैं अँधेरा, तेरे बन्दे ही शैतान हैं ,
हर एक रूह कि हैं  ये दास्ताँ -सब ज़ीते ज़ी ही मर गये, 
चैन आयेगा मुझे कि  कब्र भी खामोश हैं ,
जिन्दगी के मायने अब  कब्र में दफ़न हुये ,
सो रहा हैं ज़हां ,और बुत बना हैं देवता ,
खून से सना हुआ कोई ज़िस्म ढूंढ़ लीजिये ,
जिन्दगी कि नस्ल की  नब्ज़ को टटोलिये ,
मिट गया हैं ज़िस्म पर ज़ी-जान से पुकारिये,
उस खुदा के पास में मेरी रूह उधार हैं ,
पत्थरों में देवता और ज़िस्म में अब जान हैं
एतबार हैं मुझे कि  "इश्क़" ज़िन्दा ही रहेगा ,
मेरे अन्दर झाँककर मेरी रूह को तलाशिये ....................

दोस्तों ये चीख, ये पुकार ,फिरकापरस्ती और शैतानियत के खिलाफ़ अंतस में धधकते आग-अंगारे और आक्रोश चेतना का वरदान हैं ...........तहज़ीब के पत्ते सदा हरे-भरे लहराते रहे ..........आइये इसके लिए अमृता प्रीतम के चिन्तन को बीज कि तरह छाती में बो ले और उसे पनपाने के लिए नफ़रत ,तशद्दुद,,और क्रिध कि बजाए सिर्फ़ और सिर्फ़ इश्क़ मंत्र का पाठ करे

रुक गए हैं रास्ते .............सस्ती हो गयी मंजिले 


.........................अमृता जी अगाह करती हैं - तहज़ीब लफ्ज़ को हम बड़ी आसानी से इस्तेमाल कर लेते हैं .,और चार दीवारियों में कैद कर देते हैं ,हम अपने घर की  , अपने मज़हब की,अपने स्कूल और कॉलेज की कबिलियायी सोच को ,किसी संस्था कि चेतना को ,हमारे संस्कारों कि संस्कारित चेतना  को तहज़ीब का नाम दे देते हैं ........ लेकिन तहज़ीब ,संस्कृति के अर्थ इन सीमाओं से कही बड़े होते हैं , - लियाकत,काबिलियत, तरबियत, और इंसानियत  के अर्थों में जब तहज़ीब खिलती हैं तो वह कायनात कि मज़्मूई चेतना ,सम्पूर्ण चेतना में तरंगीत होती हैं -उस तहज़ीब में "मैं" लफ्ज़ कि पहचान भी बनी रहती हैं ,और "हम"लफ्ज़ भी नुमायाँ होता हैं -  और फिर : -
किसी वाद या एतकाद के नाम पर - 
किसी भी तरह का तशद्दुद मुमकिन नहीं रहता .
किसी भी मज़हब के नाम पर कोई कत्लोखून  हो नहीं सकता  ,
और किसी भी सियासत के हाथ जंग के हथियारों को पकड़ नहीं सकते .........
............और थोडा सा विज्ञानं 

हमारी संस्कृति ,तहज़ीब ,निसंदेह वैज्ञानिक हैं ,
अमृता जी इसके विज्ञानं को ज़रा सा ज़हन में उतार लेने कि बात कर रही हैं -
एक साइंसदान हुये - लैथब्रिज़ .
उन्होंने ज़मीदोज़ शक्तियों का पता पाने के लिए जो पेंडुलम तैयार किया ,
उससे बरसो कि मेहनत के बाद जान पाए कि महज़  चांदी,सोना , सिक्का, जैसी धातुओं का पता नहीं चलता ,
इंसानी अहसास का भी पता लगाया जा सकता हैं ,
लेथब्रिज ने बताया कि -दस इंच के फासले से रौशनी का ,सच्चाई का ,लाल रंग का और पूर्व दिशा का पता मिलता हैं ,
बीस इंच के फासले से जिन्दगी का ,गर्माइश का ,सफ़ेद रंग का और दक्षिण दिशा का पता मिलता हैं .,
तीस इंच के फासले से आवाज़ का ,पानी का ,चाँद का ,हरे रंग का और पश्चिम दिशा का पता मिलता हैं ,
और चालीस इंच के फासले से मौत का ,झूठ का ,स्याह रंग और उत्तर दिशा का पता मिलता हैं .
उन्होंने ऐसे पत्थरों का मुआयना किया जो दो हज़ार साल पहले जंग में इस्तेमाल हुये थे तो पाया कि उन पर वह रेखाए अंकित हो चुकी हैं जो हजार साल के बाद भी इन्सान के क्रिध और तशद्दुद का पता देती थी .
वह नदियों के साधारण पत्थर उठा कर लाये और पाया कि इन मासूम पत्थरों पर ऐसी कोई रेखा नहीं थी ....................कहते हैं -एक बार चारो तरफ फैले हुये तशद्दुद से फिक्रमंद होकर कुछ लोग मीर  दाद के पास गये - एक सूफी दरवेश के पास - कहने लगे "साहिबे आलम  ! यह सब क्या हो रहा हैं हमने तो सोचा था इन्सान तहज़ीबयाफ्ता हो चूका हैं ............. उस वक़्त मीर  दाद कहने लगे -
"किस तहज़ीब की बात करते हो ? यह सवाल तो हवा से पूछना होगा .जिसमे हम सांस लेते हैं और जो हमारे ही खयालो के ज़हर से भरी हुयी हैं - सत्ता कि हवस से ,नफ़रत से ,इंतकाम से ..........."बकोल अमृता जी :-
काया का जन्म माँ  की कोख से होता हैं ,
दिल का जन्म अहसास कि कोख से होता हैं 
,मस्तिष्क का जन्म इल्म कि कोख से होता हैं ,
और जिस तहज़ीब कि शाखाओं पर अमन का बौर पड़ता हैं ,उस तहज़ीब का जन्म अंतर्चेतना कि कोख से होता हैं ............

16 comments:

  1. sabse pehle tippani karne ka lobh samvaran nahi kar paay isliye bina padhe hi comment kar raha hoon...

    ..phir aata hoon !

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  2. काया का जन्म माँ की कोख से होता हैं ,

    दिल का जन्म अहसास कि कोख से होता हैं

    ,मस्तिष्क का जन्म इल्म कि कोख से होता हैं ,

    और जिस तहज़ीब कि शाखाओं पर अमन का बौर पड़ता हैं ,उस तहज़ीब का जन्म अंतर्चेतना कि कोख से होता हैं ............

    akatya saty..
    maa Amrita Pritam ko tumhari ye shradhanjali bahut bahut pasand aa rahi hogi.
    tathyon par shabdon ka jaadu chalana bahut khoob aata hai tumhein..
    lekhni bahut painapan liye hue hai..
    bahut hi jyada khushi hoti hai tumhein padh kar...
    dil se dua nikalti hai..
    Didi

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  3. ,मस्तिष्क का जन्म इल्म कि कोख से होता हैं । मै तो उस उम्र से अमृता जी का फैन हूँ जबसे मैने साहित्य को जाना .. अच्छा लगता है यहाँ पढ़कर

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  4. अमृता जी का पूरा का पूरा लेखन खालिस इश्क़ हैं और अगर पूरी दुनिया इश्क़ से सरोबार हो जायेगी तो देश-दुनिया की तमाम तह्ज़ीबो पर इश्क़ की हरी पत्तियाँ लहराएगी - तहजीब के बीज के साथ ये चीख पुकार..अमृता जी की एक नज़्म ही पूरी गागर में सागर होती है और यहाँ तो पूरा सागर ही उमड़ घुमड़ कर बादलों को छूने जा पहुंचा ..!!

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  5. तूने ही दी थी जिन्दगी - ज़रा देख तो जानेज़हाँ !

    तेरे नाम पर मिटने लगे - इल्मों-तहज़ीब के निशां,

    तशद्दुद की एक आग हैं - दिल में अगर जलायंगे,

    सनम की ख्वाबगाह तो क्या - ख्वाब भी जल जायेंगे .
    waah क्या बात है jawab नहीं .ये दुनिया अलग ही है ,जहाँ अपनी दुनिया से juda हो जाते है .ada ji ne bahut khoob kaha main brabar sahamat hoon .tasvir behad sundar hai .

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  6. aditya bhai aap aDaDi ki ghazal chorne ki koshish kar rahe ho ?

    zara kaan idhar karo: "wo to khud bahut badi chor hain. Tum chori karo main tumhare saath hoon !!aur phir main keh doonga ki ye to originally ishq bhai ki hi thi" :P

    (Asha karta hoon aDaDi ne nahi suna hoga hahahaha huhahahah hu ha haha abhi ravan dehan main 6 din baaki hain . tab tak to ji bhar ke hans loon !!)

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  7. hummm !!
    ee sab ka ho raha hai baccha party log.
    hamre blog se chhori ka sajish, bagawaat...
    jante nahi ho ham Basanti hun..
    tum dono ko saara hindi blog jagat ka chaar chakkar laga kar vijit par chhod kar aayenge haan...
    ab lagao dhuni..
    ham chale ..jai ram ji ki ..
    aDaDi/Di

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  8. अमृता जी की बारे मे कुछ भी कहना मेरी कलम के बस मे नहीउन्हें पढ्ते हुये पता ही नहीं चलता कि कौन सी दुनिया मे आ गये हैं बहुत बहुत धन्यवाद्

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  9. Amrita ji par apki rachna acchi lagi.
    badhai

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  10. काया का जन्म माँ की कोख से होता हैं ,
    दिल का जन्म अहसास कि कोख से होता हैं,
    मस्तिष्क का जन्म इल्म कि कोख से होता हैं ,

    AADITY JI ...... AMRITA JI KO BAHOOT KAREEB SE PADHA LAGTA HAI AAPNE ...amrita ji ko padhte huve insaan apne aap hi kaheen aur dusr duniya ki tarak chal padhta hai ... ishq ki itni gahri anubhooti bas Amrita ji ko padh kar hi milti hai ......

    AAPNE BAHOOT HI MEHNAT AUR LAJAWAAB TARIKE SE IS POST KO LIKHA HAI ..... MERA SALAAM KABOOL KAREN ...

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  11. aapki lekhani........... tarif ke liye lafaz nahi....

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  12. वाह ! आपने आज दिल खुश कर दिया ...कितना पढूँ ...और क्या ,क्या पढूँ ...?अमृता जी मेरी पसंदीदा रचनाकार हैं...सर्व कालीन...लेकिन आपकी लेखन शैली मुझे उसी टक्कर की लग रही है..

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  13. http://shamasansmaran.blogspot.com

    http://shama-kahanee.blogspot.com

    http://lalitlekh.blogspot.com

    http://baagwaanee-thelightbyalonelypath.blogspot.com

    http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com

    Link nahee de payee thee..isliye dobara pahunch gayee...

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  14. शमा जी ............लेखन शैली वगैरह ..........बहुत दूर की बात हैं मेरे लिए .........लिखने की बात बहुत दूर हैं ठीक से बोलना भी नहीं जानता ..............और अमृता जी मेरे लिए ...............मेरे जीवन की त्रयी हैं -आत्मा-चेतना-संवेदना की त्रयी ..................इश्क़ जहाँ भी हैं अमृता जी वहां हैं ही .................मैं तो बस वहीँ किनारे ,बॉर्डर ,हाशिये पर सदा ही उन्हें महसूस करना चाहता हूँ ...................मेरा सलाम हैं आपको .................

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